जानलेवा कफ सिरप से गांबिया में 66 बच्चों की मौत और WHO के अलर्ट के बाद खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग पूरी तरह सक्रिय हो गया है। जानलेवा कफ सिरप बनाने वाली कंपनी मेडेन फार्मास्युटिकल्स की तरह ही प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन और सोर्बिटोल जैसे साल्वेंट उपयोग में लाने वाली हरियाणा की 350 दवा निर्माता कंपनियां भी जांच के दायरे में आ गई हैं।
हिसार(Haryana). जानलेवा कफ सिरप से गांबिया में 66 बच्चों की मौत और WHO के अलर्ट के बाद खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग पूरी तरह सक्रिय हो गया है। जानलेवा कफ सिरप बनाने वाली कंपनी मेडेन फार्मास्युटिकल्स की तरह ही प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन और सोर्बिटोल जैसे साल्वेंट उपयोग में लाने वाली हरियाणा की 350 दवा निर्माता कंपनियां भी जांच के दायरे में आ गई हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के एक्सपर्ट की टीम इन कंपनियों में बीते दो साल में उपयोग किए गए साल्वेंट की जांच करेगी।
गांबिया में 66 बच्चों की मौत के बाद सोनीपत की मेडेन फार्मास्युटिकल्स कंपनी का लाइसेंस रद्द करने की तैयारी भी चल रही है। कंपनी में 12 खामियां पाए जाने पर विभाग ने लाइसेंस रद्द करने के लिए कंपनी को नोटिस भेजा था। उसका जवाब देने की अवधि शुक्रवार को पूरी हो गई। कंपनी का उत्पादन बंद करने की शक्तियां औषधि नियंत्रक के पास हैं, वह बिना नोटिस दिए यह कार्रवाई कर सकता है, लेकिन लाइसेंस रद्द करने के लिए नोटिस देने की प्रक्रिया पूरी करना जरूरी है।
जांच में पाई गई कई खामियां
मेडेन फार्मास्युटिकल्स कंपनी के रिकॉर्ड की जांच में प्रोपीलीन ग्लाइकोल की खरीद और उपयोग से संबंधित उल्लंघन पाए गए हैं। विभाग ने हरियाणा के सभी दवा निर्माताओं को कहा है कि वे वैध खरीद वाउचर के तहत वैध दवा निर्माण लाइसेंस रखने वाले उत्पादकों से सीधे प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन और सोर्बिटोल जैसे सॉल्वेंट खरीदें। यह मानकों पर पूरी तरह खरा उतरने वाले होने चाहिए।
दवा निर्माताओं को ये भी चेतावनी
खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने साफ तौर पर कहा है कि अब दवा निर्माताओं को डायथिलीन ग्लाइकॉल, एथिलीन ग्लाइकॉल की अशुद्धियों के लिए कच्चे माल के प्रत्येक कंटेनर, पैक, उनके नमूने और परीक्षण, विश्लेषण इत्यादि का पूरा रिकॉर्ड बनाकर रखना होगा। साथ ही कंपनियों को संबंधित क्षेत्र के वरिष्ठ औषधि नियंत्रण अधिकारी के कार्यालय में पिछले दो वर्षों के दौरान प्राप्त कच्चे माल के विश्लेषण का प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत करना पड़ेगा। नियमों के तहत कच्चे माल का रिकॉर्ड रखना जरूरी है। जिसमें उसकी प्राप्ति की तारीख, चालान संख्या, निर्माता-आपूर्तिकर्ता का नाम और पता, बैच संख्या, प्राप्त मात्रा, पैक का आकार, निर्माण और उसकी एक्सपायरी तारीख होनी चाहिए। इसे पांच वर्ष तक संभाल कर रखना होगा।