रोटी को लाले पड़े हैं, ट्रेन के टिकट के लिए दलालों को देने 6000 रुपए कहां से लाता..यह कहते ही रो पड़ा मजदूर

Published : May 13, 2020, 04:24 PM IST
रोटी को लाले पड़े हैं, ट्रेन के टिकट के लिए दलालों को देने 6000 रुपए कहां से लाता..यह कहते ही रो पड़ा मजदूर

सार

लॉकडाउन ने गरीबों की फजीहत कर दी है। जैसे-तैस मजदूरी करके अपने परिवार के संग गुजर-बसर कर रहे गरीबों के लिए जैसे जिंदगी ही बोझ बन गई है। यह शख्स बिहार का रहने वाला है। अमृतसर में मजदूरी करता था। काम-धंधा बंद हुआ, तो पैदल ही फैमिली के साथ घर को निकल पड़ा। गुड़गांव पहुंचे इस शख्स ने बताया कि उनके पास खाने को पैसे नहीं, ट्रेन का टिकट कराने दलालों को 6000 रुपए कहां से देते?  

गुड़गांव, हरियाणा. इस शख्स का उदास चेहरा पूरी कहानी बयां करता है। यह शख्स अमृतसर में मजदूरी करता था। लेकिन लॉकडाउन ने फजीहत कर दी। जैसे-तैस अपने परिवार के संग गुजर-बसर कर रहे गरीबों के लिए जैसे जिंदगी ही बोझ बन गई है। यह शख्स बिहार का रहने वाला है। काम-धंधा बंद हुआ, तो पैदल ही फैमिली के साथ घर को निकल पड़ा। गुड़गांव पहुंचे इस शख्स ने बताया कि उनके पास खाने को पैसे नहीं, ट्रेन का टिकट कराने दलालों को 6000 रुपए कहां से देते? इस शख्स ने बताया कि हाथ से काम गया, तो धीरे-धीरे जो भी कुछ पैसे थे, वे खाने में खर्च हो गए। मकान मालिक ने घर से निकाल दिया, तो मजबूरी में पैदल घर को निकल पड़ा। इस शख्स के पास एक बोरी में घर-गृहस्थी थी। साथ में पत्नी और 6 साल की बेटी।

1600 किमी करना है सफर..
35 साल का रवि पासवान अपनी व्यथा बताते हुए कई बार रो पड़ा। उसकी बेटी मायूसी से पिता का चेहरा तांकती रही। पत्नी सुबकती रही। उसने बताया कि अमृतसर से उसके घर दरभंगा की दूरी करीब 1600 किमी है। यह परिवार करीब 500 किमी की दूरी तय करके गुड़गांव पहुंचा था। रवि एक फैक्ट्री में काम करता था। जब मकान मालिक ने घर से निकाला, तो कुछ दिन ये लोग सड़क पर रहे। फिर हिम्मत करके पैदल घर को निकल पड़े।

श्रमिक ट्रेनें किसके लिए?
रवि ने श्रमिक ट्रेनों के संचालन पर सवाल खड़े कर दिए। उसने एक ट्रेन में सीट लेने की कोशिश की, लेकिन नहीं मिली। दलाल इसके लिए 6000 रुपए मांग रहा था। रवि ने कहा-खाने को लाले पड़े हैं, दलाल को इतने पैसे कहां से लाकर देता? रवि 5 दिन के सफर के बाद अमृतसर से गुड़गांव पहुंचा था।

लोग कर देते हैं मदद, तो खा लेते हैं..
गुड़गांव में राजीव चौक के पास सुस्ता रहे इस परिवार ने बताया कि उनके पास एक बोरी में थोड़ा-बहुत घर-गृहस्थी का सामान है। पहले सोचा कि उसे फेंक देते हैं, कहां तक ढोएंगे? फिर लगा कि उनके पास इसके अलावा कुछ और है भी तो नहीं। बेटी चलते-चलते थक जाती है, तो मां-बाप को उसके लिए बीच-बीच में रुकना पड़ता है। रास्ते में कोई खाना खिला देता है, तो खा लेते हैं।
 

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