आरएसएस का बैकग्राउंड, बैंक की नौकरी छोड़कर पॉलिटिक्स में आए। दो बार निर्दलीय विधायक भी रहे। रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ खोल दिया था मोर्चा।
अनिल विज हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में अंबाला छावनी सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हैं।
अंबाला कैंट/चंडीगढ़। हरियाणा की राजनीति में बीजेपी के तेज तर्रार आक्रामक नेता अनिल विज हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। मनोहर लाल खट्टर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज बीजेपी के ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने एक वक्त में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का जीना दूभर कर दिया था। रॉबर्ट वाड्रा के जमीन खरीदने वाले मामले को विज ने खूब जोर-शोर से उठाया था।
विज यूं तो शालीन माने जाते हैं, मगर बहुत बार उनके दो टूक बयान बवाल भी खड़े कराते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में अनिल विज का राजनीतिक सफर भी दिलचस्प रहा है। इन्हें हरियाणा की राजनीति में बेदाग छवि का नेता माना जाता है।
घर की जिम्मेदारियों के चलते नहीं की शादी
अनिल विज 66 साल के हैं। बहुत कम उम्र में पिता का देहांत हो गया था। पिता रेलवे में अधिकारी थे। पिता के गुजरने के बाद घर की जिम्मेदारियां विज के कंधों पर आ गई थीं। दो भाई और बड़ी बहन की परवरिश उन्होंने खुद की है। घर की जिम्मेदारियों की वजह से कभी शादी नहीं करने का भी फैसला ले लिया, कुंवारे ही रहे।
आरएसएस बैकग्राउंड के अनिल विज साइंस ग्रैजुएट हैं। संघ के प्रचारक भी रहे हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से छात्र राजनीति भी की। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री विज, कभी बैंक अधिकारी भी रहे हैं। साल 1974 में उन्हें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी मिली थी। 16 साल तक बैंक अफसर के रूप में काम किया। फिर सुषमा स्वराज के राज्यसभा जाने के बाद संगठन के आदेश पर नौकरी छोड़ दी और राजनीति में आ गए।
बीजेपी से हुआ बैर, तो निर्दलीय ही लड़कर जीता चुनाव
1990 में अम्बाला कैंट विधानसभा के उपचुनाव में खड़े हुए और जीते भी। पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। मगर कुछ समय बाद अनबन की वजह से नाराज हो गए और बीजेपी का साथ छोड़ दिया। हालांकि वो अपने इलाके में इतने लोकप्रिय थे कि 1996 और 2000 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय लड़कर जीत हासिल की।
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2005 में की बीजेपी में वापसी
2005 में विज ने फिर बीजेपी में वापसी कर ली। हालांकि इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। मगर हार का अंतर करीब 600 से ज्यादा मतों का ही रहा। धीरे-धीरे पार्टी के अंदर विज का कद बढ़ता गया। उन्हें विपक्ष में विधायक दल का नेता भी बनाया गया था। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद विज मंत्री बने।