90 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव में महज कुछ दिन ही बाकी है और यहां जाटलैंड इलाके में आने वाली सीटों पर विपक्षी चक्रव्यूह को भेदना बीजेपी के दिग्गजों के लिए अभी भी बड़ी चुनौती है।
चंडीगढ़. हरियाणा में प्रदेश का करीब 28 फीसदी जाट समुदाय किसी भी सरकार को बनाने और बिगाड़ने का सियासी माद्दा रखता है। 90 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव में महज कुछ दिन ही बाकी है और यहां जाटलैंड इलाके में आने वाली सीटों पर विपक्षी चक्रव्यूह को भेदना बीजेपी के दिग्गजों के लिए अभी भी बड़ी चुनौती है। बीजेपी को किसी सीट पर जेजेपी से तो किसी पर कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला करना पड़ रहा है। यहां कांटे की लड़ाई है।
हरियाणा के जाटलैंड में रोहतक, सोनीपत, पानीपत, जींद, कैथल, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी जिले की विधानसभा सीटें आती है। जाटलैंड इलाके में करीब 30 विधानसभा सीटें हैं, जहां जाट मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इन 30 सीटों पर बीजेपी के कई बड़े दिग्गजों को कड़ी चुनौती मिल रही है, जिसके चलते पार्टी के जाट नेता अपने इलाके से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं।
सभी पार्टियों ने दिल खोलकर उतारे हैं जाट उम्मीदवार
जाटलैंड में बीजेपी ने महज 20 जाट उम्मीदवारों को उतारा है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने सत्ता में फिर वापसी के लिए जाटों पर भरोसा जताया है और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कमान सौंपी है। कांग्रेस ने 27 जाट उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है तो दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी ने 34 जाट प्रत्याशियों पर दांव लगाया है।
बीजेपी के जाट समुदाय का चेहरा माने जाने मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ अपनी बादली, नारनौंद सीट पर कैप्टन अभिमन्यु के अलावा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला टोहाना सीट पर कड़े मुकाबले में फंसे हैं। इसके अलावा गढ़ी सांपला, किलोई, बेरी, महम, कैथल, ऐलनाबाद जैसी कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार को विपक्षी प्रत्याशियों से कड़ी चुनौती मिल रही है।
लोकसभा के नतीजे बढ़ा रहे हैं बीजेपी की बेचैनी
बता दें कि पिछले विधानसभा और हाल के लोकसभा चुनाव में भी जाटलैंड से जुड़ी सीटों पर बीजेपी विपक्ष का सियासी तिलिस्म नहीं तोड़ पाई थी। पिछले चुनाव में जाटलैंड की 30 में से बीजेपी महज 10 सीटें ही जीत सकी थी। यही नहीं इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में कई जाट बाहुल्य विधानसभा सीटों पर बीजेपी बढ़त नहीं बना पाई है। यह एक तरह से सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है।
जबकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ करने के बावजूद जाट बहुल विधानसभा सीटों पर पिछड़ गई थी। इनमें से एक सीट थी नारनौद जो बीजेपी के जाट नेता और कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की विधानसभा क्षेत्र है। जबकि दूसरे जाट नेता और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ की सीट बादली में भी यही हाल था। इसी तरह गढ़ी सांपला-किलोई, बेरी और महम में भी बीजेपी पीछे थी। अब विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी जाट समुदाय का दिल जीतती नजर नहीं आ रही है। पार्टी नेताओं को अपनी सीटें जीतने में लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं।