300 शवों का अंतिम संस्कार करने वाले कोरोना योद्धा को नहीं मिला एक बेड, आखिर में अलविदा कह गया हीरो

43 साल के प्रवीण हिसार म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की उस टीम के इंचार्ज थे, जो शहर की साफ सफाई करती है। वह करीब 700 सफाई कर्मचारियों की कमान संभाल रहे थे। वह अब तक  300 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार कर चुके थे। लेकिन जब वह संक्रमित हुए तो प्रशासन उनको समय पर एक बेड तक नहीं दिलवा सका।

Asianet News Hindi | Published : May 20, 2021 1:47 PM IST

हिसार (हरियाणा). महामारी के इस भयावह दौर में कई ऐसे कई लोग निकलकर सामने आए हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की सेवा में जुटे हुए हैं। लेकिन हरियाणा से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे देखकर लगता है कि यहां तो कोरोना योद्धाओं की सुरक्षा राम भरोसे है। हिसार जिले में करीब 300 से ज्‍यादा संक्रमित शवों का अंतिम संस्‍कार कर चुका एक शख्स जब संक्रमण की चपेट में आया तो उसे ना तो समय पर अस्पताल में बेड मिला और ना ही कोई इलाज, आखिर में वह दुनिया को अलविदा कह गया। लेकिन अफसोस इस बात का है कि जब इन लोगों को ही प्राथमिकता नहीं दी जा रही तो बाकी का क्या हाल होगा।

700 सफाई कर्मचारियों के इंचार्ज थे प्रवीण
दरअसल,  43 साल के प्रवीण हिसार म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की उस टीम के इंचार्ज थे, जो शहर की साफ सफाई करती है। वह करीब 700 सफाई कर्मचारियों की कमान संभाल रहे थे। उनके एक इशारे पर पूरे शहर की सफाई व्यवस्था पर ब्रेक लग जाता था। कोरोना वायरस का प्रकोप होने के बाद भी वह एक फोन पर अपनी टीम को लेकर उस इलाके में पहुंच जाते थे, जहां कोई गंदगी होती थी। लेकिन उन्होंने कभी सपने में नहीं सोचा होगा कि जब वह मुसीबत में होंगे तो शासन उनकी मदद नहीं करेगा।

दूसरों की मदद के लिए एक पल नहीं सोचते थे
बता दें कि प्रवीण पिछले साल 2 अप्रैल 2020 से ही कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार करवाते थे। वह अब तक  300 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार कर चुके थे। इतना ही नहीं वह जरूरतमंदों को लिए खाना से लेकर राशि तक दान देते थे। वह दूसरों की मदद करने के लिए एक पल भी नहीं सोचते थे और लोगों की सहायता करने निकल जाया करते थे।

दर-दर भटकता रहा परिवार..लेकिन नहीं मिला इलाज
कुछ दिन पहले प्रवीण कोरोना की चपेट में आ गए थे। परिवार वाले उनका घर पर ही इलाज करवा रहे थे। लेकिन दो दिन पहले उनकी अचानक तबीयत बिगड़ गई और ऑक्सीजन लेवल कम हो गया तो उनको अस्पताल में भर्ती कराने ले जाया गया। लेकिन 3 घंटे तक परिजन इधर से उधर भटकते रहे, पर उन्हें भर्ती नहीं किया गया। जब तक एक सरकारी अस्पताल में बेड मिला तब तक प्रवीण दुनिया को अलविदा कह चुके थे।
 

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