गरीबी से परेशान हैं पहलवान: चुनाव में मिल रहा बाउंसर का काम, हर रोज हो रही इतनी कमाई

हरियाणा पहलवानों का गढ़ है। यहां से निकलने वाले पहलवान इंटरनेशनल तक के दंगल में लड़कर देश के लिए गोल्ड ले आते हैं। पर हम शायद ही इनकी सफलता की कहानी जान पाते हैं। ऐसे कुछ पहलवानों की दर्द भरी कहानी सुनाने जा रहे हैं। ये पहलवान अपनी डाइट और प्रोटीन के पैसे जुटाने के लिए चुनावी मैदानों में पसीना बहाने को मजबूर हैं।  

चंडीगढ़.  हरियाणा पहलवानों का गढ़ है। यहां से निकलने वाले पहलवान इंटरनेशनल तक के दंगल में लड़कर देश के लिए गोल्ड ले आते हैं। पर हम शायद ही इनकी सफलता की कहानी जान पाते हैं। ऐसे कुछ पहलवानों की दर्द भरी कहानी सुनाने जा रहे हैं। ये पहलवान अपनी डाइट और प्रोटीन के पैसे जुटाने के लिए चुनावी मैदानों में पसीना बहाने को मजबूर हैं।  

बॉडीगार्ड और बाउंसर की नौकरी

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पहलवानी और ओलंपिक की तैयारी तक कोई काम न होने और घर की खस्ता हालत को ठीक करने के लिए ये पहलवान नेताओं के बॉडीगार्ड और बाउंसर पर दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं।  

दिहाड़ी पर कर रहे काम

15,00 और 2,000 से लेकर 3,000 रुपए दिहाड़ी पर ये पहलवान अपनी डाइट का पैसा जुटा रहे हैं। एक इंटरव्यू में इन पहलवानों ने चुनावी दौर में मिलने वाले अपने रोजगार की बता बताई है। 32 साल के रवि लडवाल पेशे से पहलवान हैं। लडवाल बच्चों को पहलवानी सिखाते हैं उनके पास पिछले काफी समय से कोई काम नहीं है। इस महीने कोई रेसलिंग प्रॉतियोगिता नहीं है और नाथुपुर के हरिपाल अखाड़ा के पहलवान लडवाल को अपनी जेब की चिंता हो रही है।

बेरोजगार रहने और गरीबी सहने से अच्छा है काम करें- 

दिवाली के बाद फिर से पहलवानी में लग जाएंगे लेकिन इस वक्त उनकी माली हालत खस्ता हो चुकी है। इसलिए चुनावी मौसम उनके लिए काम धंधा लेकर आया है। दसवीं पास लडवाल को चुनाव में नेताओं और सेलेब्रिटीज के बॉडीगार्ड और बाउंसर के रूप में काम मिल जाता है। इसके लिए उन्हें एक दिन के करीब 12,00 से 15,00 रूपए मिल जाते हैं। जेब खर्च निकलने और प्रोटीन जुटाने के लिए ये पैसा भले कम हो, लेकिन बेरोजगारी से बेहतर है।

रेसलर हूं ये सब करना अच्छा नहीं लगता इमेज खराब होती है-

टाइम्स ऑफ इंडिया दिए इंटरव्यू में लडवाल ने कहा कि, मुझे ये सब करना अच्छा नहीं लगता, इमे्ज खराब होती है, मैं एक रेसलर हूं और दंगल लड़ना मेरा काम है लेकिन जेब खर्च के लिए मुझे ये करना होगा। 100kg कैटेगरी की दंगल प्रतियोगिता में मुझे लड़ना है और जीतना है। इस दौरान मैं खाली हूं और पैसों की भी जरूरत है तो मैं 10-12 दिन बाउंसर का काम कर सकता हूं। 4-5 किलो वजन बढ़ाना है जिसमें मुझे अपनी डाइट मैनेज करनी होगी तो पैसों की जरूरत तो होगी ही। 

पार्टी या नेता सही खाना नहीं देता तो शेड्यूल बिगड़ जाता है

लडवाल की तरह सैकड़ों पहलवान खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं। लडवाल का कहना है कि आने वाले दिवाली दशहरा सीजन में पहलवानी और दंगल की कई प्रतियोगिताएं मिलेंगी। खाली समय और चुनाव भी तो हमें बाउंसर के तौर पर काम मिल जाता है। अक्टूबर का यह सही मौका है पैसा कमाने का। चुनावी और वेडिंग सीजन में ये रेसलर बाउंसर के तौर पर एक दिन का 15,00, 2,000 से लेकर 3,000 तक चार्ज करते हैं। साथ ही इवेंट टीम से सही डाइट और खाने की भी डिमांड होती है। अगर कोई पार्टी या नेता सही खाना नहीं देता या शेड्यूल बिगड़ जाता है ये अलगी बार उसके लिए काम करने से मना कर देते हैं। 

नाइट शिफ्ट से फिटनेस पर पड़ता है बुरा असर

चुनाव के समय इन रेसलर और बॉडी बिल्डर्स की डिमांड काफी बढ़ जाती है। रैली और चुनाव प्रचार के लिए नेतागण उनसे संपर्क करते हैं। साथ ही कई बार थोक के भाव उनके प्राइस फिक्स कर इनसे 8 से 9 घंटे काम लिया जाता है। जो कि एक पहलवान के लिए बहुत बुरा रूटीन है। रात में लगने वाली शिफ्ट में भी पहलवानों की फिटनेस और हेल्थ दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।कुछ पहलवान जहां रात की शिफ्ट करने से मना कर देते हैं वहीं कुछ पैसों की जरूरत होने पर अपनी फिटनेस को दांव पर लगा देते हैं। 

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