Research : लंबे समय तक बैठ कर काम करने से बढ़ता है हाइपरटेंशन का खतरा

एक नए रिसर्च से पता चला है कि लंबे समय तक एक ही जगह बैठ कर काम करने से हाइपरटेंशन का खतरा बढ़ जाता है। यह रिसर्च स्टडी कनाडा में हुई है। 

हेल्थ डेस्क। एक नए रिसर्च से पता चला है कि लंबे समय तक एक ही जगह बैठ कर काम करने से हाइपरटेंशन का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जॉब से जुड़े स्ट्रेस के मामले में कई बार रेग्युलर मेडिकल चेकअप के दौरान भी इस तरह के हाइपरटेंशन का पता नहीं चल पाता है। जिन लोगों पर काम का ज्यादा दबाव होता है और जो कई घंटों तक ऑफिस में बैठ कर काम करते हैं, उन्हें इस तरह का ब्लड प्रेशर होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह रिसर्च स्टडी कनाडा में हुई है और अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल 'हाइपरटेंशन' में प्रकाशित हुई है। 

3500 कर्मचारी शामिल किए गए स्टडी में
कनाडा इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ रिसर्च के शोधकर्ताओं ने 5 वर्षों तक तीन अलग-अलग संस्थानों में काम करने वाले करीब 3500 कर्मचारियों का करीब से अध्ययन किया। इनमें से वैसे कर्मचारियों का एक ग्रुप बनाया गया जो हर हफ्ते 35 घंटे काम करते थे। इसे कंट्रोल ग्रुप नाम दिया गया। इसके बाद वैसे लोगों का बारीकी से निरीक्षण किया गया, जो सप्ताह में 49 घंटे से ज्यादा काम करते थे। यह पाया गया कि इन लोगों में मास्क्ड हाइपरटेंशन की संभावना 70 प्रतिशत ज्यादा पाई गई। इसके साथ ही, इनमें ब्लड प्रेशर होने की संभावना भी ज्यादा थी। 
काम के घंटे कम तो रिस्क भी कम
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि काम के घंटे कम होने के साथ हाइपरटेंशन और ब्लड प्रेशर का रिस्क कम होता चला जाता है। सप्ताह में 41 से 48 घंटे काम करने वाले लोगों में इसी अनुपात में यह समस्या कम हो सकती है, लेकिन ये भी इस बीमारी के खतरे से बच नहीं सकते।

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दूसरी बातों का भी होता है असर
काम के ज्यादा घंटों के अलावा उम्र, लिंग, जॉब से संबंधित तनाव, शिक्षा का स्तर, धूम्रपान की आदत, नौकरी की स्थिति वगैरह का असर भी हाइपरटेंशन पर पड़ता है। इस तरह का हाइपरटेंशन इसलिए ज्यादा खतरनाक माना गया है, क्योंकि इसके लक्षणों का पता नहीं चल पाता। लेकिन इससे कार्डियोवैस्कुलर डिजीज होने की संभावना ज्यादा होती है।  

क्या कहा मुख्य शोधकर्ता ने
इस स्टडी के मुख्य शोधकर्ता और लेखक जेवियर ट्रूडेल ने कहा कि यह समस्या इसलिए ज्यादा गंभीर है, क्योंकि हाइपरटेंशन के लक्षण दिखते नहीं और जब बीमारी बहुत बढ़ जाती है, तब इसका पता चलता है। जेवियर ट्रूडेल कनाडा के क्यूबेक में लावाल यूनिवर्सिटी में सोशल एंड प्रिवेंटिव मेडिसिन डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा कि यह स्टडी बहुत ही सिस्टमैटिक तरीके से की गई है। स्टडी के दौरान लगातार इसमें शामिल लोगों के ब्लड प्रेशर का माप लिया गया और उनका क्लिनिकल विश्लेषण किया गया। रिसर्च में शामिल सभी लोगों के ब्लड प्रेशर का माप रखना आसान काम नहीं था। इसके लिए उन्हें वियरेबल इंस्ट्रूमेंट दिए गए थे। 

19 प्रतिशत कर्मचारी हाई ब्लड प्रेशर के शिकार
इस स्टडी में शामिल लोगों में जो ज्यादा समय तक काम करते थे, उनमें करीब 19 प्रतिशत हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से बुरी तरह जूझ रहे थे और इसके लिए दवाइयां ले रहे थे, वहीं 13 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो हाइपरटेंशन की उस समस्या से पीड़ित थे, जिसके लक्षण सामने नहीं आते। इस समस्या को खतरनाक माना जाता है, क्योंकि इससे कभी भी कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां हो सकती हैं।

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