शहीद उधम सिंह (Udham singh) ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था। वह इंग्लैंड गए थे और लंदन की रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी के हॉल में पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। लंदन की पैटनविले जेल में उन्हें फांसी दी गई थी।
नई दिल्ली। देश अपनी आजादी का 75वां सालगिरह मना रहा है। यह मौका हर भारतवासी के लिए खास है। आजादी हमें यूं ही नहीं मिली थी। इसके लिए असंख्य वीर सपूतों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। आज हम आपको आजादी के नायक कहे जाने वाले शहीद उधम सिंह (Shaheed Udham singh) के बारे में बता रहे हैं। उन्होंने राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया था।
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। इनके बचपन का नाम शेर सिंह था। कम उम्र में ही उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया था। उन्हें अनाथालय में रहना पड़ा। यहीं पर उन्हें उधम सिंह नाम मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ऊधम सिंह ने क्रांतिकारी बनने की राह पकड़ ली। वह सबसे पहले गदर पार्टी के सदस्य बने। इतिहासकारों का मानना है कि क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान उधम सिंह की मुलाकात भगत सिंह से हुई थी, इस दौरान वह भगत सिंह की विचारधारा से काफी प्रभावित हुए थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का जीवन पर पड़ा गहरा प्रभाव
जलियांवाला बाग हत्याकांड का उधम सिंह के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपनी आंखों से ब्रिटिश सरकार की क्रूरता और खूनी नरसंहार देखा। इसके बाद उन्होंने हत्याकांड के जिम्मेदार जनरल डायर को मारने का दृढ़ संकल्प लिया और अन्य युवाओं की भांति आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
उन्होंने फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, इटली, जापान, बर्मा, सहित कई देशों में मौजूद क्रांतिकारियों से संपर्क किया, लेकिन 1927 में ऊधम सिंह के प्रयासों से पहले ही जनरल डायर की बीमारी की वजह से मौत हो गई। इसी वर्ष उन्हें पर्चे बांटने के आरोप में पांच साल की सजा हुई। साल 1931 तक उधम सिंह जेल में रहे। रिहा होने के बाद भी उधम ब्रिटिश पुलिस की निगरानी में थे। कश्मीर जाकर उधम पुलिस से बचने में कामयाब रहे और 1934 में इंग्लैंड पहुंचे गए।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का लिया बदला
जनरल डायर की मृत्यु के बाद ऊधम सिंह ने जलियांवाला नरसंहार के समय के पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ डायर को मारने का निश्चय किया। 13 मार्च 1940 को लंदन की रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी के हाल में एक बैठक हो रही थी। बैठक में माइकल ओ डायर शामिल था। इस बैठक में उधम सिंह भी एक मोटी किताब में रिवॉल्वर छिपाकर पहुंचे और मौका मिलते ही डायर पर गोलियां चला दी। डायर ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। इस दौरान उधम सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
यह भी पढ़ें- आजादी के 75 साल: लालाजी की मौत से हिल गया था देश, महात्मा गांधी ने कहा था- भारतीय सौरमंडल से डूब गया एक सितारा
राम मोहम्मद सिंह आजाद से भ्रमित हो गई थी ब्रिटिश सरकार
हत्या के ट्रायल मुकदमे के दौरान राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से ब्रिटिश सरकार भ्रमित हो गई थी। उधम सिंह ने खुद अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद घोषित किया था। इसी नाम के साथ उन्होंने माइकल ओ डायर को गोली मारी थी। डायर की हत्या के आरोप में 31 जुलाई, 1940 को उधम सिंह को लंदन की पैटनविले जेल में फांसी दे दी गई। उनके पार्थिव शरीर को जेल के भीतर ही दफना दिया गया। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह के प्रयासों के बाद इंग्लैंड ने 31 जुलाई 1974 को उधम सिंह के अवशेष भारत को सौंपे। इतिहासकारों की मानें तो ब्रिटिश सरकार अब तक उधम सिंह से जुड़े कई अहम दस्तावेज भारत सरकार को नहीं सौपे हैं।
यह भी पढ़ें- जलियांवाला बाग हत्याकांड: दशकों बाद भी नहीं भरे जख्म, हजारों लोगों पर चलाईं गई थी अंधाधुंध गोलियां