सार
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian freedom movement) में हर धर्म, जाति और संप्रदाय के लोगों ने हिस्सा लिया था। कोई देश में रहकर भारतीयों की मदद कर रहा था तो विदेश में रहकर भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बना।
नई दिल्ली. महात्मा गांधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा में एकमात्र क्रिस्चियन भी शामिल रहे, जिनका नाम थेवरतुंडिल टीटूस था। गांधीजी उन्हें प्यार से टीटूसजी कहा करते थे। नमक कानून को तोड़ने के गांधीजी ने 386 किलोमीटर दांडी यात्रा की थी, जिसमें कुल 81 सत्याग्रही शामिल थे। इनमें से एकमात्र क्रिस्चियन थे टीटूसजी। जब भी हम अपने स्वतंत्रता क्रांतिकारियों को याद करते हैं तो इनका नाम अक्सर भूल जाते हैं।
टीटूस जी ने झेला पुलिस टॉर्चर
गांधी जी की दांडी यात्रा में शामिल रहे अन्य सत्याग्रहियों की तरह टीटूस जी को भी पुलिस टॉर्चर सहने पड़े थे। उन्हें करीब 1 महीने के लिए यर्वदा जेल में भी रखा गया था। टीटूस जी का जन्म केरल के मरमम गांव में एक मिडिल क्लास फैमिली में 1905 में हुआ था। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे स्कूल टीचर बन गए थे। लेकिन टीटूस ने जीवन का बड़ा उद्देश्य बना लिया था। जब वे 20 साल के ही थे तो हाथ में 100 रुपया लेकर उत्तर भारत की एक ट्रेन पर सवार हो गए। उन्होंने इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट ज्वाइन किया। इसे अब सैम होग्गिनबॉथ यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर के नाम से जाना जाता है। टीटूस जी यहां अपनी पढ़ाई और हॉस्टल का खर्च निकालने के लिए खेतों में काम करते थे। यहां से उन्होंने डेयरी मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया और कैंपस की डेयरी में ही काम करने लगे।
गांधीजी के साबरमती आश्रम पहुंचे
जब वे इलाहाबाद में काम कर रहे थे तो उनके भाई ने बताया कि गांधीजी के साबरमती आश्रम में एक डेयरी एक्सपर्ट की आवश्यकता है। टीटूस तब गुजरात के अहमदाबाद स्थित आश्रम में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात गांधीजी से हुई और 1929 में दिवाली के दिन उन्होंने आश्रम को ज्वाइन कर लिया। आश्रम के नियम बहुत ही सख्त थे। वहां पर कोई सैलरी नहीं मिलती थी लेकिन रहने-खाने के अलावा दो जोड़ी कपड़े जरूर मिलते थे। वे वहां पर डेयरी फार्म को देखने के अलावा अन्य लोगों की तरह सारे काम करते थे। वे आश्रम की साफ-सफाई करते, किचन में काम करते, कपड़े धोते और खादी कातने के लिए चरखा भी चलाते थे। वे आश्रम की प्रार्थना में भी भाग लेते थे।
दांडी मार्च से भी जुड़े
टीटूसजी इस बात से खुश थे कि उन्हें गांधीजी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा के लिए चुना गया था। यह विरोध ब्रिटिश हुकूमत की मोनोपाली के खिलाफ था, इस तरह से वे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। गांधीजी जब 1937 में केरल की अपनी यात्रा कर रहे थे वे मरमग गांव पहुंचकर टीटूसजी के पिता से भी मिले। वहीं शादी होने के बाद टीटूसजी अपनी पत्नी अन्नम्मा को कुछ दिनों के लिए आश्रम लेकर भी गए। तब गांधीजी ने इस कपल के लिए अपना रूम खाली कर दिया था। स्वतंत्रता मिलने के बाद टीटूसजी ने मध्य प्रदेश के भोपाल में कृषि विभाग का काम शुरू किया। वे जीवन भर गांधीजी के आदर्शों पर चलते रहे। 75 वर्ष की उम्र में 1980 में उनका भोपाल में ही निधन हो गया।
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