India@75: ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाने वाली क्रांतिकारी महिलाओं का समूह

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में देश की वीरांगना महिलाओं ने भी हंसते-हंसते प्राणों की आहुति दी है। महिलाओं ने क्रांतिकारियों के समूह की लाजिस्टिक मदद भी की, जिससे अंग्रेजों के खिलाफ अभियान मजबूत हो सका। कई बार तो महिलाओं ने क्रांतिकारी ग्रुप ही बना लिया और अंग्रेजों से लोहा लिया।

Manoj Kumar | Published : Jul 18, 2022 11:56 AM IST

नई दिल्ली. ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाने वाली क्रांतिकारी महिलाओं के  समूह में बंगाल की साहसी महिलाएं शामिल थीं। इन महिलाओं में प्रीतिलता वड्डेदार, कल्पना दत्ता, बीना दास, कल्याणी दास, कमला दासगुप्ता और सुहासिनी गांगुली जैसी महिलाएं थी। इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाया था और क्रांति की अलख जगाई थी।

कैसे बना था समूह
समूह में शामिल सभी महिलाएं कॉलेज की साथी रही थीं। उन्होंने 18 अप्रैल 1930 को हुए चटगांव शस्त्रागार हमले में भाग लिया था। उनमें से ज्यादातर कोलकाता के प्रसिद्ध बेथ्यून कॉलेज जो कि भारत का पहला महिला कॉलेज भी था, कि छात्राएं थीं। वे सभी बंगाल विभाजन के खिलाफ उठे बंगाली क्रांतिकारी आंदोलन से प्रेरित थीं। वे जुगंतर और भगत सिंह की भारतीय रिपब्लिकन पार्टी जैसी क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हो गईं। बेथ्यून कॉलेज में क्षत्रिय संघ नामक क्रांतिकारी बालिका संगठन का गठन किया और हथियारों और छापामार युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त किया। कई महिलाएं इसमें पारंगत थीं। 

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कब हुआ था हमला
18 अप्रैल 1930 की रात 10 बजे तक वर्तमान बांग्लादेश में चटगांव में विभिन्न ब्रिटिश शस्त्रागारों पर सूर्य सेन, गणेश घोष और लोकनाथ बल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने हमला बोल दिया। सभी जगहों पर कब्जा कर लिया गया। दो दिन बाद जलालाबाद की पहाड़ियों पर क्रांतिकारियों और ब्रिटिश सेना के बीच आमना-सामना हो गया। भीषण युद्ध में 12 क्रांतिकारियों सहित कई मारे गए। बहादुर युवा लड़कियों के समूह ने जलालाबाद में क्रांतिकारियों की मौत का बदला लेने का संकल्प लिया।

महिलाओं ने लिया बदला
24 सितंबर 1932 को पहरतली में यूरोपीय क्लब पर 21 वर्षीय प्रीतिलता वडेदार के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने हमला किया था। यह क्लब अपने बोर्ड के लिए बदनाम था जिस पर लिखा था कि भारतीयों और कुत्तों को यहां आने की अनुमति नहीं है। आदमी की पोशाक पहने और बंदूक से लैस प्रीतिलता ने कई लोगों को मार गिराया लेकिन अंत में उसके पैर में गोली मार दी गई। जब वह हिलने-डुलने में असमर्थ हो गईं तो अंग्रेजों ने उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। प्रीतिलता ने तब साइनाइट की गोली खाकर शहीद हो गईं। 

कल्पना दत्ता की कहानी
कल्पना दत्ता बेथ्यून कॉलेज और संघ में प्रीतिलता की साथी थीं। पहरतला हमले की साजिश में शामिल कल्पना को एक सप्ताह पहले ही गिरफ्तार किया गया था। रिहा होने के बाद उन्होंने सूर्या सेन को शरण दिलाने में मदद की। जब सूर्या को गिरफ्तार किया गया तो कल्पना बाल-बाल बच गई और बाद में फिर पकड़ी गई। बाद में वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं और सीपीआई के महासचिव पीसी जोशी से शादी कर ली। सुहासिनी गांगुली चटगांव हमले में भी भागीदार थीं। वह भी बेथ्यून कॉलेज की छात्रा थी और क्षत्रिय संघ और जुगंतर की सदस्य थीं। वह कई साल जेल में रहीं और बाद में भाकपा में शामिल हो गईं।

बेथ्यून कॉलेज से जुड़ी रहीं
बेथ्यून कॉलेज में क्षत्रिय संघ की दो बहनें जिन्होंने क्रांतिकारियों से शस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त किया, वे थीं बीना दास और कल्याणी दास। वे सुभाष चंद्र बोस के शिक्षक की बेटियां थीं। बीना ने 1932 में तब इतिहास रच दिया, जब उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह के दौरान बंगाल के राज्यपाल स्टेनली जैक्सन पर गोली चलाई। जैक्सन बाल-बाल बच गए लेकिन बीना को गिरफ्तार कर लिया गया। उसने 9 साल जेल में बिताए। जहां उन्हें पुलिस की भीषण यातना का सामना करना पड़ा। बीना और कल्याणी दोनों बाद में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। कमला दासगुप्ता एक अन्य महिला क्रांतिकारी थीं, जो रिवॉल्वर लेकर आई थीं, जिससे बीना ने जैक्सन पर गोली चलाई थी।

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