भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुरूआत 1857 से मानी जाती है, जब पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था। लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि 1857 से 2 साल पहले भी एक विद्रोह हुआ था, जिसे संथाल विद्रोह कहा जाता है।
नई दिल्ली. 1857 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पहला विद्रोह हुआ, जिसने अंग्रेजों को यह अहसास दिला दिया था कि अब भारत में उनके दिन कम ही बचे हैं। हालांकि इससे 2 वर्ष पहले यानि 1855 में भी एक विद्रोह हुआ, जिसने अंग्रेजी हूकूमत की नींद उड़ा दी थी। उस विद्रोह ने देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ चिंगारी जलाने का काम किया, जो धीरे-धीरे लौ बन गई और अंग्रेजों के खिलाफ बड़े विद्रोह का आधार बनी।
क्या हुआ था 1855 में
1855 का वह साल प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से दो वर्ष पहले का था। तब भारत के आदिवासी अंग्रेजों के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष में सामने आए थे। इसे पौराणिक संथाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है। तब विशाल संथाल के जंगल आज के चार राज्यों में फैले हुए थे। ये चार राज्य झारखंड से बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल हैं। यह वही भूमि है जो आज भी आदिवासियों द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करती है।
क्या बना था विद्रोह का कारण
तब विद्रोह को ट्रिगर करने का काम नया स्थायी बंदोबस्त कानून था, जिसे अंग्रेजों द्वारा लाया गया था। इस कानून ने आदिवासियों को उनकी अपनी वन भूमि से बाहर निकालने, सभी जमीनों को नीलाम करने में अंग्रेजों की मदद की थी। आदिवासियों को अपने स्वयं के वन संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति से वंचित कर दिया गया था। कंपनी के अधिग्रहण के लिए वनों को आरक्षित घोषित किया गया था। शेष संथाल भूमि जमींदारों को नीलाम कर दी गई। तब अपनी आजीविका और मातृभूमि से वंचित संथाल एक साथ आए थे। उनके नेता मुर्मू आदिवासी पुजारी के चार भाई और दो बहनें थे। जिनके नाम सिद्धू, कान्हू, चांद, भैरव और उनकी बहनें फूलो और झानो थीं।
7 जुलाई 1855 का दिन
7 जुलाई 1855 को भोगनाडीह गांव में हजारों संथाल एकत्रित हुए। उन्होंने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और अपने जंगलों को मुक्त करने का संकल्प लिया। गुस्साए आदिवासियों ने धमकी देने आए एक पुलिसकर्मी की हत्या भी कर दी थी। यह संघर्ष जंगल में आग की तरह फैल गया। अंग्रेजों और जमींदारों पर हमले शुरू कर दिए गए। संथालों ने झारखंड से लेकर बंगाल तक के जंगलों को आजाद घोषित कर दिया। ब्रिटिश सेना को विद्रोह को दबाने में एक वर्ष का समय लगा। सैकड़ों ब्रिटिश अधिकारी और जमींदार मारे गए। सिद्धू और कान्हू सहित 20000 से अधिक संथाल योद्धाओं ने भी अपनी जान दे दी। हालांकि इस विद्रोह को बेरहमी से दबा दिया गया लेकिन अंग्रेजों को वन कानूनों में संशोधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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