India@75: जिस कलम से निकली थी 'इंकलाब जिंदाबाद' की चिंगारी, उन्हीं हसरत मोहानी की गजलें गुलाम अली ने भी गाईं

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इंकलाब जिंदाबाद एक ऐसा नारा बन गया था, जो हर क्रांतिकारी का मूलमंत्र था। जब भी अंग्रेजों के विरोध में आवाजें उठतीं तो इंकलाब जिंदाबाद का ही नारा लगाया जाता था। न जाने कितने क्रांतिकारी तो यह नारा लगाकर फांसी के फंदे पर झूल गए। 

नई दिल्ली. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इंकलाब जिंदाबाद का नारा भारतीय क्रांतिकारियों के लिए प्राणवायु बन गया था। यह चिंगारी प्रसिद्ध कवि व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हसरत मोहानी के कलम से निकली थी। हसरत मोहानी स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही कवि भी थे। वे इस्लाम में भी दृढ़ विश्वास रखते थे और महान कृष्ण भक्त भी थे। वे सूफी संतों के अनुयायी भी रहे जिनका लिखा यह नारा ब्रिटेन तक गूंजता था। 

कौन थे हसरत मोहानी
हसरत मोहनी का जन्म 1875 में आज के उत्तर प्रदेश के उन्नाव के मोहन गांव में हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम सैयद फजल उल हसन रखा था। वे ईरान के प्रवासी थे और हसरत मोहनी उनका उपनाम था। ब्रिटिश समर्थक रहा मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज जिसे बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है, वहां उन्होंने पढ़ाई की थी। उस दौरान उन्हें ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया गया था। 1903 में मोहनी को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। 1921 के कांग्रेस पार्टी के अहमदाबाद अधिवेशन के दौरान हसरत मोहानी और स्वामी कुमारानंद ने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता की मांग उठाई थी। 

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भारत-पाक विभाजन का विरोध
1925 में हसरत मोहानी कानपुर में कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सम्मेलन के मुख्य आयोजक बने। वे कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। बाद में उन्होंने आजाद पार्टी नाम से एक नई पार्टी बनाई और फिर मुस्लिम लीग में शामिल हो गए। इसके बाद में जब भारत और पाकिस्तान के विभाजन की मांग उठी तो वे मुस्लिम लीग और जिन्ना से अलग हो गए। उन्होंने पाकिस्तान बनाने का कड़ा विरोध किया और विभाजन के बाद भी भारत में ही रहे। मोहनी को संविधान सभा के लिए चुना गया था जो धार्मिक सद्भाव में कट्टर विश्वास रखते थे। मोहनी ने हज के दौरान मक्का और कृष्णष्टमी के दौरान मदुरै की तीर्थयात्राएं कीं। कई उर्दू कविताओं और गजलों के लेखक हसरत मोहानी थे। बाद में गजल सिंगर गुलाम अली और जगजीत सिंह ने हसरत मोहनी की कई प्रसिद्ध गजलें गाकर उन्हें अमर कर दिया। 

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