India@75: कौन थे सर सीपी रामास्वामी अय्यर, जिनके समय में हुआ रक्तरंजित व्यालार विद्रोह

Published : Jul 10, 2022, 01:00 PM IST
India@75: कौन थे सर सीपी रामास्वामी अय्यर, जिनके समय में हुआ रक्तरंजित व्यालार विद्रोह

सार

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महाराजा बलराम वर्मा के दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने सशस्त्र सेना का विद्रोह दबाने के लिए मार्शल ला की घोषणा की थी। आखिर कौन थे सर सीपी रामास्वामी अय्यर, आप भी जानें।

नई दिल्ली. वह समय था 25 अक्टूबर 1946 को जिस दिन तिरुविथमकूर महाराजा चिथिरातिरुनल बलराम वर्मा का 34वां जन्मदिन था। इसी दिन महाराजा और उनके दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने शीघ्र ही स्वतंत्र भारतीय संघ से अलग होने की घोषणा की थी। दरअसल, थिरुविथमकूर उन पांच मूल राज्यों में से एक था, जिन्होंने स्वतंत्र राज्य बने रहने का फैसला किया था। 

क्या थे तब के हालात
उस वक्त द्वितीय विश्व युद् की वजह से भोजन की बड़ी कमी पैदा हो गई थी। अलाप्पुझा में चेरथला और अंबालाप्पुझा तालुका के गरीब किसान और मजदूर भुखमरी और बीमारियों से पीड़ित हो गए थे। पांच साल में 20000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। फिर भी जमींदारों ने पुलिस की सहायता से अपना क्रूर शोषण जारी रखा था। इसे अब और सहन करने में असमर्थ कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में लोगों ने पलटवार किया जिसमें एक पुलिसकर्मी मारा गया। किसानों ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। जल्द ही अस्तित्व के लिए संघर्ष के रूप में शुरू यह विद्रोह जल्द ही स्वतंत्र राज्य के लिए शाही सरकार के खिलाफ हो गया। धीरे-धीरे यह बड़ा राजनीतिक आंदोलन बन गया। 

मार्शल ला की घोषणा
तब महाराजा के जन्मदिन पर पड़ोसी वायलार के किसानों ने थाने पर हमला कर दिया था। इससे दीवान क्रोधित हो गया। उसने सशस्त्र सेना द्वारा विद्रोह को दबाने का फैसला किया। 27 अक्टूबर को उन्होंने इस क्षेत्र में मार्शल लॉ की घोषणा की। शाही जन्मदिन के दो दिन बाद सेना और पुलिस बलों की बड़ी टुकड़ी ने वायलार को घेर लिया। यह ऐसा क्षेत्र था, जिसके तीनों तरफ जलाशय थे। गांव के अंदर फंसे किसानों को सेना से कोई मुकाबला नहीं था। दोनों पक्षों के बीच कई घंटे तक फायरिंग होती रही जिससे वायलार के सफेद तट खून से लाल हो गया। थोड़ी ही देर में वहां 500 लाशें बिखरी पड़ी थीं। लाशों को सामूहिक कब्रों में फेंक दिया गया।

उपनिवेशवाद के खिललाफ आंदोलन
पुन्नपरा वायलर विद्रोह देशी शाही सरकार और विदेशी उपनिवेशवादियों दोनों के खिलाफ आंदोलन था। जमींदारों द्वारा गरीबी और यातना के खिलाफ प्रतिरोध स्वाभाविक था। जो बाद में बहुत बड़ा राजनीतिक आंदोलन बन गया। यह संगठित मजदूर वर्ग द्वारा स्वदेशी और विदेशी दोनों अधिकारियों के खिलाफ पहला आंदोलन भी था। पुन्नपरा वायलार के दमन ने शाही सरकार को भारत की स्वतंत्रता जीतने से दो महीने पहले ही एक स्वतंत्र तिरुविथमकूर बनाने की अपनी योजना को दोहराने के लिए प्रोत्साहित किया था।

क्रांतिकारी थे सीपी अय्यर
इस संघर्ष में दीवान सर सीपी गंभीर रूप से घायल हो गए। तब एक क्रांतिकारी ने उन पर प्राणघातक हमला किया था। इसके बाद दीवान तुरंत तिरुविथमकूर से मद्रास अपने घर चले गए। फिर कभी वापस नहीं लौटे। हालांकि एक हफ्ते बाद महाराजा ने राज्य को भारतीय संघ में शामिल करने की सहमति दे दी। 

यहां देखें वीडियो

 

यह भी पढ़ें

India@75:रास बिहारी बोस ने सुभाष चंद्र को सौंपी थी आजाद हिन्द फौज की कमान, बचपन से करते थे ब्रिटिश राज से नफरत
 

PREV

Recommended Stories

JEECUP Admit Card 2024 released: जेईईसीयूपी एडमिट कार्ड जारी, Direct Link से करें डाउनलोड
CSIR UGC NET 2024 रजिस्ट्रेशन लास्ट डेट आज, csir.nta.ac.in पर करें आवेदन, Direct Link