India@75: दुनिया के सबसे महान गणितज्ञ थे रामानुजन, महज 32 साल की उम्र में दुनिया छोड़ी

गणित में प्राचीन भारत का आश्चर्यजनक योगदान रहा है। यह आर्यभट्ट, भास्कर और संगमग्राम माधवन की भूमि है। जहां दशमलव और शून्य की खोज की गई। इस महान भारतीय गणितीय परंपरा की सबसे शानदार आधुनिक कड़ी श्रीनिवास रामानुजन थे।

Manoj Kumar | Published : Aug 18, 2022 6:33 AM IST

नई दिल्ली. दुनिया को दशमलव और शून्य देने वाला भारत गणित के क्षेत्र में हमेशा अग्रणी रहा है। यहां आर्यभट्ट, भास्कर और माधवन जैसे महान गणितज्ञ हुए। इनके बाद आधुनिक भारत में दुनिया के सबसे महान गणितज्ञ श्रीवास रामानुजन थे, जो महज 32 साल की आयु में ही दुनिया छोड़ गए। गरीबी और खराब स्वास्थ्य के कारण उनकी मृत्यु हो गई लेकिन इससे पहले ही वे दुनिया के सबसे महान गणितज्ञ बन गए थे। हैरानी की बात यह थी कि गणित में बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के भी रामानुजन ने संख्याओं के विज्ञान और शुद्ध गणित में अद्भुत काम कर दिखाया था। 

कौन थे रामानुजन
रामानुजन का जन्म 1887 में तब के मैसूर राज्य के इरोड में में एक गरीब तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कुप्पुस्वामी श्रीनिवास अयंगर तमिलनाडु के तंजावुर जिले के कुंभकोणम में कपड़े की दुकान पर क्लर्क थे। उनकी माता कोमलथम्मल मंदिर में गायिका थीं। रामानुजन का गणितीय कौशल कुम्भकोणम में स्कूल में रहते हुए ही प्रसिद्ध हो गया। 16 साल की उम्र तक वे जीएस कैर द्वारा लिखे गए गणित के सभी 5000 प्रमेयों को जान चुके थे। जब रामानुजन कॉलेज पहुंचे तो सब कुछ उल्टा हो गया। वह गणित के अलावा किसी अन्य विषय पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते थे। वह गणित को छोड़कर सभी में फेल हो गए। 

Latest Videos

गरीबी में बीता बचपन
रामानुजन के लिए डिग्री हासिल करना बड़ी बड़ी बात नहीं थी लेकिन उसमय तक उन्होंने जानकी से भी शादी कर ली और भुखमरी को दूर करने के लिए नौकरी करना आवश्यक हो गया। अंत में उन्हें 20 रुपये के मासिक वेतन के साथ मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क के रूप में नौकरी मिल गई। लेकिन वे कार्यालय में नहीं जा रहे थे। रामानुजन गणितीय समीकरणों और प्रमेयों को लिखते रहे, जो उन्होंने मुख्य रूप से अंतर्ज्ञान और प्रेरणा के माध्यम से सीखे थे। रामानुजन को बड़ा ब्रेक तब मिला जब बर्नौली नंबरों पर उनका शानदार पेपर इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित हुआ। उनकी प्रतिभा मद्रास के गणितीय हलकों में प्रसिद्ध हो गई। कुछ प्रोफेसरों की मदद से वे अपने शोधपत्र विदेशों में विद्वानों को भेजते रहे।

दुनिया रह गई थी दंग
कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज के प्रसिद्ध प्रोफेसर जीएच हार्डी उनके काम से अत्यधिक प्रभावित हुए और उस युवक के प्राकृतिक गणितीय कौशल से दंग रह गए, जो स्नातक भी नहीं था। इस प्रकार उनके बीच मित्रता हुई और अकादमिक सहयोग शुरू हुआ। हार्डी द्वारा समुद्र पार करने पर अपने ब्राह्मण नियमों को तोड़ने पर राजी करने के बाद रामानुजन 17 मार्च 1914 को लंदन के लिए रवाना हुए। तब से ट्रिनिटी में हार्डी और उनके सहयोगी जॉन लिटिलवुड के साथ रहे। दोनों के लिए यह यादगार अनुभव रहा। कई पत्र प्रकाशित होने के बाद रामानुजन 31 वर्ष की उम्र में प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के फेलो बनने वाले दूसरे भारतीय बन गए। जल्द ही वे ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले पहले भारतीय भी बन गए। उनकी तुलना यूलर और जैकोबी जैसे गणितीय विद्वानों से की जाने लगी। हालांकि वे पुरानी तपेदिक की बीमारी से पीड़ित थे और उन्हें भारत लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक साल बाद ही 32 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। 22 दिसंबर को राष्ट्र उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाता है।

यहां देखें वीडियो

यह भी पढ़ें

हर घर तिरंगा: भारतीय ध्वज के साथ 5 करोड़ से अधिक लोगों ने अपलोड की सेल्फी
 

Share this article
click me!

Latest Videos

Chhath Puja 2024: छठ पूजा में छठी मैया को क्या लगाएं भोग ?
इस एक वजह से बदली गई यूपी-पंजाब और केरल उपचुनाव की तारीख, जानिए क्या है नई डेट
Rahul Gandhi LIVE : तेलंगाना में जाति जनगणना पर राज्य स्तरीय परामर्श को सम्बोधन
LIVE: प्रियंका गांधी ने कलपेट्टा के मुत्तिल में एक नुक्कड़ सभा को संबोधित किया।
LIVE: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने झारखंड के हज़ारीबाग़ में जनता को संबोधित किया