आसान नहीं था 'गुरुजी' का बेटा होना, हेमंत सोरेन ने बखूबी निभाई हर जिम्मेदारी, अब झारखंड के दिग्गज

शिबू सोरेन की विरासत को संभालना उनके लिए किसी जोखिम से कम नहीं था हेमंत सोरेन ने समय समय पर अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके है
 

रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हेमंत सोरेन अपने पिता शिबू सोरेन की तरह राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। हेमंत सोरेन साल 2013 में आरजेडी, कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की मदद से झारखंड के पांचवें मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे और दिसंबर 2014 तक वो पद पर रहे। शिबू सोरेन की विरासत को संभालना उनके लिए किसी जोखिम से कम नहीं था हेमंत सोरेन ने समय समय पर अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके है। साल 1975 में जन्मे हेमंत सोरेन कम उम्र में ही अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके है।

उपमुख्यमंत्री पद पर भी काबिज रह चुके

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मुख्यमंत्री बनने से पहले हेमंत सोरेन राज्य में उपमुख्यमंत्री पद पर भी काबिज रह चुके हैं। अपनी लोकप्रियता कायम रखने में कामयाब रहे हैं। हेमंत सोरेन राज्य में शराब बिक्री पर पांबदी लगाने कि बात करते हैं। उनका मानना है कि झारखंड के गांवों में खासतौर पर शराब की दुकानें नहीं खुलनी चाहिए क्योंकि राज्य के भोले-भाले आदिवासी शराब के नशे में चूर होकर जिंदगी की दौड़ में और पिछड़ते चले जाएंगे। हेमंत सोरेन का मानना है कि राज्य की महिलाओं को आगे बढ़कर शराब बिक्री का विरोध करना होगा तभी राज्य सरकार गांवों में शराब का लाइसेंस बांटने का निर्णय वापस ले सकेगी।

डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के विरोधी

हेमंत डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के विरोधी हैं और उनका मानना है कि इससे कई गरीब सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। साल 2017 में कथित भूखमरी की वजह से सिमडेगा में एक लड़की की मौत की वजह का पता लगाने के लिए उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की थी। इसके लिए उन्होंने राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को भी आड़े हाथों लिया था। हेमंत सोरेन इस बात के विरोधी रहे हैं कि आधार नंबर के बगैर राशन नहीं दिया जाना सरकार का अमानवीय पहलू है।

आदिवासियों के हितों की रक्षा

राज्य के आदिवासियों के हितों की रक्षा करने का हेमंत सोरेन कोई भी मौका हाथ सें गंवाना नहीं चाहते हैं।  'छोटा नागपुर टीनेंसी एक्ट' और 'संथाल परगना टीनेंसी एक्ट' में बदलाव की कोशिशों का हेमंत सोरेन ने जबर्दस्त विरोध किया। दरअसल इन दोनों एक्ट में बदलाव कर राज्य सरकार उन जमीनों पर सड़क, ह़ॉस्पिटल और शैक्षणिक संस्थानों को साल 2016 में बनवाना चाह रही थी जिसका हेमंत सोरेन ने जोरदार विरोध किया।

झारखंड में साल 2017 में ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उन्हें शिरकत करने का न्यौता भेजा लेकिन हेमंत सोरेन ने उसे लैंड ग्रैबर्स मीट ( जमीन हड़पने वाला सम्मेलन) बताकर शामिल होने से इनकार कर दिया।

हेमंत के लिए बड़ी चुनौती

हेमंत फिलहाल अपनी पार्टी को संवारने में लगे हुए हैं। साल 2019 लोकसभा चुनाव में जेएमएम की सांठगांठ कांग्रेस से थी और वो महज दो सीटें जीत पाने में कामयाब रही जिसमें जेएमएम को महज़ एक ही सीट मिली। ऐसे में मजबूत बीजेपी को राज्य में पटखनी देना हेमंत के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष के तौर पर हेमंत सोरेन अपनी पार्टी की जीत के लिए क्या कर पाते हैं ये देखना वाकई दिलचस्प होगा।

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