नहीं काम आई मोदी-योगी-शाह की धुआंधार रैलियां, झारखंड में BJP पर भारी पड़ीं ये 7 गलतियां

पिछले कुछ सालों के दौरान राज्यों में एक पर एक सफलता हासिल करने वाली बीजेपी की रणनीति लगातार पराजयों के बाद सवालों में है। आखिर कई राज्यों में हैरान करने वाले नतीजे दे चुकी पार्टी से झारखंड में कहां और कैसी गलतियां हुईं।

Asianet News Hindi | Published : Dec 23, 2019 10:02 AM IST / Updated: Dec 25 2019, 12:16 AM IST

रांची. झारखंड में तमाम कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता बचाने में कामयाब नहीं हो पाई। हालांकि 81 विधानसभा सीटों पर पांच चरणों में चुनाव के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ समेत अलग अलग राज्यों में पार्टी के मुख्यमंत्रियों और दूसरे दिग्गजों ने राज्य में धुआंधार कैम्पेन चलाया।

मगर नतीजे लगभग एग्जिट पोल के मुताबिक ही रहे। बीजेपी को हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन के हाथों बुरी हार का सामना करना पड़ा। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बाद बीजेपी के हाथ से एक और राज्य निकल गया। पिछले कुछ सालों के दौरान राज्यों में एक पर एक सफलता हासिल करने वाली बीजेपी की रणनीति लगातार पराजयों के बाद सवालों में है। आखिर कई राज्यों में हैरान करने वाले नतीजे दे चुकी पार्टी से झारखंड में कहां और कैसी गलतियां हुईं।

आइए झारखंड में बीजेपी की हार के सात बड़े कारण जानते हैं।

#1. संघ से ट्यूनिंग नहीं, कार्यकर्ता भी नाराज  

विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड में "घर घर रघुवर" का नारा दिया गया था जो कैम्पेन के ज़ोर पकड़ने के साथ मोदी की खूबियां गिनाने वाले नारे के रूप में तब्दील हो गया। दरअसल मतदाता, पार्टी कार्यकर्ताओं, संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों के बीच रघुवर की पकड़ बहुत प्रभावी नहीं है। रघुवर का संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों से सीधा जुड़ाव भी नहीं रहा है। अब नतीजे साफ संकेत दे रहे हैं कि जनता को मुख्यमंत्री रघुवर का नेतृत्व लोगों को पसंद नहीं आया। वैसे रघुवर, राज्य गठन के बाद मुख्यमंत्री बनने वाले पहले गैरआदिवासी नेता हैं। पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री भी हैं।

#2. गठबंधन पर फैसला लेने में देरी की

झारखंड में चुनाव की घोषणा होने तक गठबंधन पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका। सीटों के बंटवारे को लेकर ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के साथ सहमति नहीं बन पाई। एनडीए में शामिल आजसू ने अलग चुनाव लड़ा। पिछली बार पांच विधायकों वाली आजसू ने सिर्फ 2 सीटें जीती है। सीटें बीजेपी की कम हुई हैं। जाहिर है कि सहयोगी दल के अलग होने से बीजेपी को नुकसान हुआ। एनडीए के दूसरे दलों जेडीयू और लोजपा का भी राज्य में थोड़ा बहुत आधार है। कई सीटों पर हार जीत का अंतर बेहद कम नजर आ रहा है। साफ़तौर पर दिख रहा है कि बीजेपी सहयोगी दलों का फायदा नहीं उठा पाया।

#3. पार्टी के दिग्गज ही हुए बागी

चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा में देर हुई। टिकटों पर असंतोष भी उभरकर सामने आया। पार्टी के कई नेताओं ने बगावत की। जमशेदपुर से सरयू राय, छातरपुर से राधाकृष्ण किशोर, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी, पूर्व मंत्री बैजनाथ राम, बिमला प्रधान, फूलचंद मंद और कई नेताओं ने बगावत कर दी। सरयू राय ने तो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मुख्यमंत्री के खिलाफ उनके ही गढ़ में मात दे दी। बागियों की वजह से राज्य में पार्टी को उच्छा खासा नुकसान हुआ है।

#4. CNT और SPT एक्ट बदलना पड़ा महंगा

विकास के नाम पर राज्य में आदिवासियों की जमीन खरीदने बेंचने को लेकर 1908 के सीएनटी और एसपीटी एक्ट में बदलाव किया गया। इसे लेकर आदिवासी इलाकों में विरोध प्रदर्शन भी हुए। विपक्ष का आरोप था कि "गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रघुवर के नेतृत्व में सरकार आदिवासियों के जमीन छीन लेंगी। विकास पहले भी हुए हैं मगर कभी इस कानून में बदलाव की जरूरत नहीं हुई।" गैरआदिवासी चेहरा होने की वजह से रघुवर के खिलाफ माहौल बना। जल, जंगल, जमीन के मुद्दे पर रघुवर सरकार के खिलाफ आदिवासियों के संस्कृति और सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद नहीं होने का आरोप बीजेपी के खिलाफ गया।

#5. नौकरियों के लिए परीक्षाएं हुईं पर नहीं निकले नतीजे

झारखंड में बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा था। राज्य के युवाओं का कहना था कि पिछले पांच साल में रघुवर सरकार एक भी परीक्षा ठीक से नहीं करा पाई। छठी जेपीएससी परीक्षा प्री और छठी मेंस परीक्षा का मामला कोर्ट में लंबित है। रोजगारपरक परीक्षाओं के या तो नतीजे नहीं आए या वो कानूनी पचड़े में फंस गए।

#6. नल पहुंचे पर पानी गायब

राज्य में पेयजल रघुवर सरकार की आलोकप्रियता की एक बड़ी वजह बनी। दूर-दराज के इलाकों में पेयजल बड़ी समस्या है। लोगों को पानी के लिए एक एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। राज्य सरकार ने घरों तक नल तो पहुंचाए मगर उसमें पानी नहीं पहुंच पाया।

#7. मोदी का चेहरा दिखा पर काम का नहीं ले पाए फायदा

हालांकि राज्य में केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर संतोषजनक स्थिति है। शहरी-ग्रामीण शौचालय योजना, आयुष्मान, उज्ज्वला, अन्नपूर्णा और दूसरी योजनाओं का लोगों को फायदा भी मिला। लोकसभा चुनाव में राज्य में बीजेपी के प्रदर्शन में इनका असर भी दिखा। मगर रघुवर दास की सरकार और पार्टी केंद्र की इन योजनाओं का लाभ विधानसभा चुनाव में उठा नहीं पाई।   

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