शून्य से शिखर तक का सफर तय करने वाले इस नेता ने बीजेपी को सिखाई है सियासत की ABCD

सरकारी स्कूल के अध्यापक की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखने वाले आरएसएस के निष्‍ठावान स्‍वयंसेवक और समर्पित भाजपाई बाबूलाल मरांडी ने सियासत में शुन्य से शिखर तक सफर तय किया है 

Asianet News Hindi | Published : Nov 26, 2019 6:25 AM IST / Updated: Nov 26 2019, 01:20 PM IST

रांची: झारखंड के इतिहास में पहले मुख्यमंत्री बनने वाले बाबूलाल मरांडी सरकारी स्कूल के अध्यापक की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा। एक दौर में आरएसएस के निष्‍ठावान स्‍वयंसेवक और समर्पित भाजपाई रहे बाबूलाल मरांडी ने सियासत में शून्य से शिखर तक सफर तय किया है। झारखंड में बीजेपी में नजर आने वाले दिग्गज नेता मरांडी के सनिध्य में सियासत की एबीसीडी सीखी है। झारखंड में आदिवासी समुदाय के दिग्गज नेता माने जाने वाले मरांडी ने नक्सली हमले में बेटे की जान गवां चुके हैं। इसके बाद भी हिम्मत नहीं हारी और इस बार के सियासी संग्राम में किंगमेकर बनने की चाह लेकर चुनावी मैदान में उतरे हैं।

संथाल समुदाय से आने वाले बाबूलाल मरांडी बीजेपी के बड़े नेता रहे। हालांकि 2006 में बीजेपी में मनमुटाव के बाद राजनीति में अपना एक अलग मुकाम बनाने के लिए उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ लिया था और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। इस बार झारखंड की सभी सीटों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं और खुद भी दो सीटों के किस्मत आजमा रहे हैं।

Latest Videos

मरांडी का सियासी सफर

बता दें कि बाबूलाल मरांडी का जन्‍म झारखंड के गिरिडीह के टिसरी ब्‍लॉक स्थित कोडिया बैंक गांव में 11 जनवरी 1958 को हुआ। मरांडी ने अपनी स्‍कूली शिक्षा गांव से प्राप्‍त करने के बाद गिरिडीह कॉलेज में दाखिला ले लिया और यहां से इन्‍होंने इंटरमीडिएट व स्‍नातक की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मरांडी आरएसएस से जुड़ गए थे और संघ से ही सियासत के हुनर सीखा हैं।

 मरांडी ने आरएसएस से पूरी तरह जुड़ने से पहले गांव के स्‍कूल में कुछ सालों तक शिक्षकी की नौकरी की, हालांकि बाद में उन्होंने टीचर की नौकरी छोड़ दी और संघ के कामों में पूरी तरह लग गए. व्यवस्था बदलाव और शिखर तक जाने की सोच के साथ शिक्षक की नौकरी त्यागने वाले बाबूलाल मरांडी काफी भाग्यशाली रहे। विधायक से होते हुए सांसद और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ। बाबूलाल मरांडी की 1989 में शांति देवी से शादी हुई। इनका बेटा अनूप मरांडी 2007 के झारखंड के गिरिडीह क्षेत्र में हुए नक्‍सली हमले में मारा गया था।

शिबू सोरेन को हराकर सियासत की उंची को छूआ

 बाबूलाल मरांडी को 1991 में बीजेपी ने दुमका से टिकट दिया, लेकिन वह इस चुनाव में हार गए। इसके बाद 1996 लोकसभा चुनाव में उनके सामने झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन खड़े थे और इस मुकाबले में बाबूलाल मरांडी को हार मिली, लेकिन हार का अंतर केवल 5 हजार वोट था। इस हार के बावजूद बाबूलाल मरांडी का कद पार्टी में बढ़ गया। उन्हें बीजेपी ने झारखंड का अध्यक्ष बना दिया गया था।

 मरांडी के नेतृत्व में ही बीजेपी ने 1998 के लोकसभा चुनावों में झारखंड क्षेत्र के तहत आने वाली 14 में से 12 संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही। वे संताल समुदाय के ही दूसरे बड़े नेता शिबू सोरेन को भी मात देकर सांसद चुने गए। यह उनके राजनीतिक करियर का शीर्ष दौर था। इस जीत के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार में बाबूलाल मरांडी 1998 से लेकर 2000 तक वन और पर्यावरण राज्य मंत्री भी रहे।

झारखंड के पहले सीएम बने मरांडी

2000 में बिहार से अलग होकर बने राज्य झारखंड में वह पहले मुख्यमंत्री बने। बाबूलाल मरांडी ने राजधानी रांची पर जनसंख्या और संसाधनों का दबाव कम करने के लिए ग्रेटर रांची स्थापित करने की योजना का खाका भी खींचा था, लेकिन सहयोगी जेडीयू के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी अर्जुन मुंडा के लिए छोड़नी पड़ी इसके बाद से उन्होंने राज्य की राजनीति से दूरी बनानी शुरू कर दी।

बीजेपी छोड़कर बनाई अलग पार्टी

2004 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी कोडरमा सीट से लड़े। बाबूलाल मरांडी इस चुनाव में झारखंड से जीतने वाले अकेले भाजपा उम्मीदवार थे इस दौरान उनके राज्य प्रभारियों से मतभेद बढ़ते गए और वह सार्वजनिक तौर पर अर्जुन मुंडा सरकार की आलोचना करने लगे। बात इतनी बिगड़ गई कि 2006 में बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा और भाजपा की सदस्यता दोनों से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा नामक पार्टी का गठन कर लिया।

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के पांच विधायक पार्टी छोड़कर मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा में शामिल हुए थे। कोडरमा लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद 2014 में जेवीएम ने मैदान में उतरी और 8 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।

हार नहीं मानी 

हालांकि चुनाव के बाद आठ में से छह विधायकों ने एक साथ मरांडी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। इसके बाद भी मरांडी ने सियासी हार नहीं मानी और संघर्ष के जरिए अपना राजनीतिक वजूद बनाने में जुटे रहे। इसी का नतीजा है कि मरांडी ने किसी से गठबंधन करने के बजाय अकेले चुनावी मैदान में उतरे हैं ऐसे में अब  देखना होगा कि मरांडी के  किंगमेकर बनने का सपना पूरा होता है कि नहीं।

(प्रतिकात्मक फोटो)

Share this article
click me!

Latest Videos

हरियाणा इलेक्शन 2024 के 20 VIP फेस, इनपर टिकी हैं देश की निगाहें
10 साल की बच्ची का किडनैप के बाद रेप-मर्डर, फिर दहल उठा ममता बनर्जी का पं. बंगाल
'हिम्मत कैसे हुई पूछने की' भरी अदालत में वकील पर क्यों भड़के CJI चंद्रचूड़
सामने आई Bigg Boss 18 के घर की PHOTOS, देखें कोने-कोने की झलक
हरियाणा चुनाव के10 अमीर प्रत्याशीः बिजनेसमैन सावित्री जिंदल से धनवान है यह कैंडीडेट