झारखंड में स्वास्थ्य मंत्री के पद का मिथक टूटा तो, विधानसभा अध्यक्ष का रहा बरकरार

Published : Dec 23, 2019, 08:21 AM ISTUpdated : Dec 23, 2019, 08:26 PM IST
झारखंड में स्वास्थ्य मंत्री के पद का मिथक टूटा तो, विधानसभा अध्यक्ष का रहा बरकरार

सार

झारखंड में विधानसभा अध्यक्ष के साथ स्वास्थ्य मंत्रियों को लेकर रोचक इतिहास रहा है झारखंड में जो भी स्वास्थ्य मंत्री रहा या फिर विधानसभा अध्यक्ष उसे अगले चुनाव में जीत नहीं मिल सकी है लेकिन इस बार स्वास्थ्य मंत्री के पद का मिथक टूट गया

रांची: झारखंड में विधानसभा अध्यक्ष के साथ स्वास्थ्य मंत्रियों को लेकर रोचक इतिहास रहा है। झारखंड में जो भी स्वास्थ्य मंत्री रहा या फिर विधानसभा अध्यक्ष उसे अगले चुनाव में जीत नहीं मिल सकी है। प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री दिनेश षाड़ंगी से लेकर राजेन्द्र प्रसाद सिंह तक की बात करें, तो अगली बार इनमें से कोई चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंचे। ऐसे विधानसभा अध्यक्ष के साथ भी मिथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में देखना है कि यह मिथ टूटता है या फिर नया इतिहास लिखा जाएगा।

स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी बिश्रामपुर सीट से मैदान में हैं। हालांकि उनका दावा है कि इस बार 19 साल का ये मिथक टूटकर रहेगा। ऐसे ही मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष दिनेश ओरांव सिसई विधानसभा सीट से मैदान में उतरे हैं और दावा है कि इस बार वो जीतकर विधानसभा पहुंचेगे।  

स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी 

पलामू जिले में पड़ने वाली बिश्रामपुर विधानसभा सीट पर इस बार स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे को धूल चटा दी। दूबे यहां के विधायक रहे हैं और दिग्गज नेता हैं। ऐसे में यह सीट हॉट सीट बनी हुई थी। इस बार बिश्रामपुर की जनता स्वास्थ्य मंत्रियों से जुड़े इस मिथक को तोड़ दिया हैं। हालांकि अबतक के स्वास्थ्य मंत्रियों को तो उनके क्षेत्र की जनता ने मौका नहीं दिया।

बात चाहे झारखंड के पहले स्वास्थ्य मंत्री दिनेश षाडंगी की करें या फिर भानु प्रताप शाही, हेमेन्द्र प्रताप देहाती, बैद्यनाथ राम, हेमलाल मुर्मू और राजेन्द्र प्रसाद सिंह की, सभी के सभी स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए विधानसभा चुनाव हारे। स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी का दावा था कि इस बार जनता उन्हें जरूर जीत का तोहफा देगी। और स्वास्थ्य मंत्रियों से जुड़ा हार का मिथक टूटेगा और ऐसा ही हुआ।

विधानसभा अध्यक्ष दिनेश ओरावं

ऐसे ही मिथ झारखंड के विधानसभा अध्यक्ष से भी जुड़ा हुआ है। पिछले 19 सालों में जो भी विधानसभा के स्पीकर बने हैं, उन सभी को हार का मुंह देखना पड़ा है। झारखंड में चौथी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। 2005 में जब झारखंड में पहली बार चुनाव हुआ तो इसके पहले एमपी सिंह विधानसभा अध्यक्ष थे। जमशेदपुर पश्चिम से सरयू राय के चुनाव लड़ने के कारण एमपी सिंह को टिकट नहीं मिला। नाराज विधानसभा अध्यक्ष ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें सरयू राय के हाथों हार मिली।

इसी तरह 2009 के चुनाव में आलमगीर आलम सिटिंग विधानसभा अध्यक्ष के रूप में पाकुड़ से चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें भी हार नसीब हुई और यहां से जेएमएम के अकील अख्तर चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद 2014 के चुनाव में भी तीनों पार्टियां अकेले ही मैदान में उतरीं और इस चुनाव में भी मौजादी स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता देवघर की सारठ सीट से चुनाव हार गए।

हालांकि, इस बार भी चुनावी मैदान में उतरे झारखंड के मौजूदा विधानसभा स्पीकर दिनेश ओरावं को हार का मुंह देखना पड़ा। दिनेश उरांव के खिलाफ जेएमएम से जग्गिा सुसान होरो मैदान में थे और जेवीएम से शशिकांत भगत भी अपनी किस्मत आजमा रहे थे। लेकिन जेएमएम के जग्गिा सुसान होरो इस सीट से भारी मतों से विजयी रहें।

 

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