धारा 144 के चलते खुद CAA और NRC के विरोध में धरने पर नहीं बैठ सके तो क्या हुआ..जूते-चप्पल तो हैं 'धरने' को

Published : Mar 06, 2020, 12:29 PM IST
धारा 144 के चलते खुद CAA और NRC के विरोध में धरने पर नहीं बैठ सके तो क्या हुआ..जूते-चप्पल तो हैं 'धरने' को

सार

यह तस्वीर किसी धार्मिक स्थल के बाहर की नहीं है..और न ही किसी भंडारे के बाहर की है। यहां पुरानी नई-पुरानी चप्पलों की सेल भी नहीं लगी है। यह है CAA और NRC के विरोध का तरीका।  

जमशेदपुर, झारखंड. यह तस्वीर किसी धार्मिक स्थल के बाहर की नहीं है..और न ही किसी भंडारे के बाहर की है। यहां पुरानी नई-पुरानी चप्पलों और जूतों की सेल भी नहीं लगी है। यह है CAA और NRC के विरोध का तरीका। दरअसल, जमशेदपुर में धारा-144 लगा दी गई है, ताकि जुलूस और धरना-प्रदर्शन पर रोक रहे। ऐस में CAA और NRC का विरोध करने वालों ने यह तरीका अपनाया। न कोई टेंट लगाया..न माइक और न ही बैनर-पोस्टर...बस एक छोटा-सा मैसेज लिखकर रखा और आगे व्यवस्थित तरीके से रख दिए अपने-अपने जूते-चप्पल। ये जूते-चप्पल लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। यही नहीं, जूते-चप्पलों को भी काली पट्टी बांधकर रखा गया था।

खामोशी की गूंज..
इस अनूठे आंदोलन को खामोशी की गूंज नाम दिया गया था। यह आंदोलन 8 जगहों पर दो हफ्ते तक चलाया गया। इसमें हर उम्र के लोगों ने अपनी-अपने जूते या चप्पल धरनसास्थल पर छोड़े। इसमें जुगसलाई, धतकीडीह, बर्मा माइंस, गुरु नानक नगर, आजादनगर, जाकिरनगर, गोलमुरी  और सिदगोड़ा के लोग शामिल हुए। चप्पल सत्याग्रह की अगुवाई कर रहे छात्र संजय सोलोमन और साराह काजमी ने बताया कि हम शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। हमने करीब एक घंटे तक यह प्रतीकात्मक विरोध जताया। बता दें कि गिरीडीह और लोहरदगा में CAA और NRC के खिलाफ हिंसा के बाद प्रशासन ने जमशेदपुर में धारा 144 लागू कर दी थी।

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