क्या है झारखंड का ऑफिस ऑफ प्रोफिट का मामला, जिससे खतरे में सीएम हेमंत की कुर्सी...जानिए पूरी कहानी

झारखंड में सियासी उठापटक के बीच शनिवार को सीएम हाउस से 3 लग्जरी बसों में विधायकों को शिफ्ट किया गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी ऑफिस ऑफ प्रोफिट मामले को चलते खतरे में पड़ गई है। मामला यहां तक पहुंच गया है कि उनको इस्तीफा देना पड़ सकता है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 27, 2022 12:26 PM IST

रांची. झारखंड की राजनीति में ऑफिस ऑफ प्रोफिट मामले को लेकर घमासान मचा हुआ है। मामला यहां तक पहुंच गया है कि झारखंड के मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ सकता है। राज्य में सत्ता पक्ष के विधायकों की बाड़ेबंदी तक शुरू हो गई है। तीन बसों में बैठाकर विधायक राजनीतिक टूर पर निकल चुके हैं। आफिस ऑफ प्रोफिट का मामला अभी कोई नया नहीं है। हेमंत सोरेन से पहले झामुमो के सुप्रिमो शिबू सोरेन, कांग्रेस के नेता सोनिया गांधी और जय बच्चन की भी सदस्यता जा चूकी है। 

ऑफिस ऑफ प्रोफिट को लेकर क्या कहता है कानून
ऑफिस ऑफ प्रोफिट का मतलब होता है लाभ का पद। इसका मतलब उस पद से होता है जिस पर रहते हुए कोई शख्स सरकार की ओर से किसी भी तरह की अन्य सुविधा नहीं ले सकता है। अगर कोई व्यक्ति इस पद का लाभ उठा रहा है तो वो सदन का सदस्य नहीं रह सकता है। उसकी सदस्यता जा सकती है। इसी कानून के तहत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस्तीफे देने की नौबत आ गई है। दरअसल, झारखंड में भाजपा के नेताओं ने हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते अपने लिए खनन पट्‌टा आवंटित करवाया है। उन्होंने अपने पद का इस्तेमाल नीजी लाभ के लिए किया है। जिसपर विस्तृत जांच हुई। 

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16 मई 2006 को यूपीए ने पास कराया था बिल
लाभ के पद को लेकर बनाया गया कानून 16 मई 2006 को यूपीए सरकार ने लोकसभा में लाभ के पद की व्याख्या के लिए एक बिल पास किया था। इसके बाद राष्ट्रीय सलाहकार परिषद समेत 45 पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया था। हालांकि अब तक लाभ के पद की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। 

विधानसभा में लाभ का पद
संविधान के अनुच्छेद 191(1)(ए) में इसका जिक्र है। इसके मुताबिक अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है। अगर राज्य सरकार कोई कानून बनाकर किसी पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखती है। तो विधायकों की सदस्यता अयोग्य नहीं ठहराई जा सकती है। 

संसद में लाभ के पद का मामले का निपटारा राष्ट्रपति करते हैं
संविधान में राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों के लिए भी लाभ के पद का भी जिक्र है। संविधान के अनुष्छेद 102 (1)(ए) में लाभ के पद के बारे में बताया गया। जिसके मुताबिक संसद के किसी सदन का सदस्य होने के लिए जरूरी है कि वह किसी भी तरह के पद पर ना हो। इसमें कहा गया है कि सांसद या विधायक ऐसे किसी भी पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या दूसरे फायदे मिलते हों। अगर संसद में किसी सदस्य के लाभ के पद का मामले सामने आता है तो उसमें राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा। अनुष्छेद 103 के मुताबिक इस संबंध में राष्ट्रपति चुनाव आयोग से सलाह ले सकते हैं। 

2001 में शिबू सोरेन 2006 में सोनिया गांधी और जया बच्चन को देना पड़ा था इस्तीफा
साल 2001 में हाईकोर्ट ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन की संसद सदस्यता रद्द कर दी थी। दरअसल, उस वक्त वे झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे। वहीं कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और जया बच्चन को लाभ के पद की वजह से सदन की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था। साल 2006 में यूपीए सरकार में सोनिया गांधी के 'लाभ का पद' का मामला सामने आया था। उस वक्त सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं। इसके साथ ही वो मनमोहन सिंह की सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी थीं। लाभ का पद होने की वजह सोनिया गांधी को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था। सोनिया गांधी दोबारा रायबरेली से चुनकर संसद पहुंची थीं। साल 2006 में ही राज्यसभा सांसद जया बच्चन को भी सदस्यता इसी वजह से चली गई थी। दरअसल उस वक्त जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष भी थीं। इसके बाद उनकी सदस्यता चली गई थी।

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