घर में सजाकर रखे इतने सर्टिफिकेट देखकर यह लड़की अकसर खाना-पीना छोड़ देती है, फिर आया जिंदगी में टर्निंग पॉइंट

सपने हमेशा ऊंचे रखिए...क्योंकि आप सपने देखेंगे, तभी कोई आपकी मदद को आगे आएगा। झारखंड के घाटशिला जिले की रहने वाली अनिमा नायक ने 2019 में 96% अंक लाकर जिले में तीसरा नंबर हासिल किया था। गरीब किसान की यह बेटी डॉक्टर बनना चाहती है। लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि फीस भरना मुश्किल हो गया। अकसर वो अपने सर्टिफिकेट देखकर रो पड़ती थी। लेकिन अब कई लोग उसकी मदद को आगे आए हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jun 27, 2020 8:11 AM IST


घाटशिला, झारखंड. दुनिया में मदद करने वालों की कोई कमी नहीं है। लेकिन कई बार हम ही हारकर अपना ड्रीम छोड़ देते हैं। सपने हमेशा ऊंचे रखिए...क्योंकि आप सपने देखेंगे, तभी कोई आपकी मदद को आगे आएगा। झारखंड के घाटशिला जिले की रहने वाली अनिमा नायक ने 2019 में 96% अंक लाकर जिले में तीसरा नंबर हासिल किया था। गरीब किसान की यह बेटी डॉक्टर बनना चाहती है। लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि फीस भरना मुश्किल हो गया। अकसर वो अपने सर्टिफिकेट देखकर रो पड़ती थी। लेकिन अब कई लोग उसकी मदद को आगे आए हैं। अनिमा बहरागोड़ा ब्लॉक से करीब 15 किमी दूर पाचांडो गांव में रहती है। गरीब किसान की बेटी अनिमा के लिए मैट्रिक में इतने अंक लाना भी आसान नहीं था। उसकी उपलब्धि को मीडिया में काफी प्रचारित किया गया था। कई लोगों ने उसे सम्मानित किया। लेकिन समय रहते स्थितियां बिगड़ती गईं।

पिता ने बेटी का एडमिशन कराया, पर फीस भरने में कमर टूटने लगी..
अनिमा के पिता विश्वदेव नायक बताते हैं कि वे अपनी बेटी को खूब पढ़ाना चाहते हैं। हालांकि उनकी माली हालत ऐसी नहीं है कि वे किसी बड़े कॉलेज में उसका एडमिशन करा सकें। फिर भी उन्होंने अपना पूरा धान बेचकर अनिमा का एडमिशन जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में करा दिया। अनिमा ने साइंस सब्जेक्ट लिया। लेकिन फीस भरना परिवार के लिए भरी पड़ने लगा। नौबत कॉलेज छोड़ने की आ गई। अनिमा को बहुत दुख होने लगा।

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गांव के कई लोग आए मदद को..
अनिमा के सपने को पूरा करने गांव के कई लोग आगे आए हैं। चित्रेश्वर हाई स्कूल के हेडमास्टर सुधाकर पड़िहारी सबसे पहले अनिमा की मदद को आगे आए। अब वे और कुछ अन्य लोग मिलकर अनिमा की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा उठा रहे हैं। यह हर महीने करीब 5 हजार रुपए पड़ता है। अनिमा की मां संगीता कहती हैं कि गांववाले उसकी बेटी की मदद को आगे आए। लेकिन तकलीफ होती है कि सरकार बच्चों के लिए कुछ नहीं कर रही।

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