गांव वालों ने जब बेटे से कहा कि चलकर कंधा दो तो उसने साफ-साफ मना कर दिया कि वह नहीं आएगा। इसके बाद काफी देर तक लोग उसे समझाते रहे लेकिन वह नहीं माना। आखिरकार आंखों में आंसू लिए बेटियां आगे आईं और अंतिम संस्कार का फर्ज निभाया।
गुमला : झारखंड (Jharkhand) के गुमला (Gumla) जिले में जब बेटियों ने पिता के शव को कंधा दिया तो पूरा गांव बेटे को धिक्कार पड़ा। गांव वालों ने बेटियों की तारीफ की और कहा कि आज बेटियों ने मान रख दिया। दरअसल कामडारा प्रखंड के सालेगुटू गांव में पिता की मौत के बाद बेटे ने उसकी अर्थी को कंधा देने से इनकार कर दिया। काफी देर तक मान-मनौव्वल चली लेकिन जब वह नहीं माना तो पांच बेटियां आगे आईं। उन्होंने न सिर्फ पिता के अर्थी को कंधा दिया बल्कि श्मशान तक भी पहुंचाया। अंतिम संस्कार के सारे फर्ज भी निभाए। इसके बाद जब गांव वालों ने बेटे के धिक्कारना शुरू किया तब वह सामाजिक दबाव में घाट पहुंचा और पिता की चिता को मुखाग्नि दी।
बेटियों ने कंधा देकर निभाया फर्ज
75 साल के लक्ष्मी नारायण साहू का उनके इकलौते बेटे भुवनेश्वर के काफी दिनों से विवाद चल रहा था। दोनों को बातचीत किए भी एक लंबा समय हो चुका था। मंगलवार को लक्ष्मी नारायण की मौत हो गई। जब यह खबर भुवनेश्वर तक पहुंची तो उसने कुछ नहीं बोला। जब गांव वालों ने कहा कि चलकर कंधा दो तो बेटे ने साफ-साफ मना कर दिया कि वह नहीं आएगा। ग्रामीण, बड़े-बुजुर्ग औऱ रिश्तेदार काफी देर तक उसे समझाते रहे लेकिन वह राजी नहीं हुआ। तब बुजुर्ग की पांच बेटियों ने कहा कि वह अपने पिता की अर्थी को कंधा देकर सारे रिवाज निभाएंगी। उसके बाद विमला देवी, सुमित्रा देवी, शांति देवी मैनी देवी और पदमा देवी ने पिता की अर्थी को श्मशान घाट तक पहुंचाया।
ऐसे बेटे पर धिक्कार है-ग्रामीण
कोयल नदी के किनारे बालाघाट श्मशान पर पूरी तैयारी हो चुकी थी। चिता को आग देने के लिए बड़ी बेटी आगे की रस्म निभा रही थी। इसी दौरान गांव के लोगों ने बेटे को खूब धिक्कारा। आखिरकार गांव और समाज के दबाव में वह श्मशान पहुंचा और पिता को मुखाग्नि दी। लेक की चिता को आग देने के लिए आगे बढ़ी। इस बीच ग्रामीणों ने बेटे घुनेश्व को धिक्कारना शुरू किया। गांव व समाज के दबाव में आखिरकार बेटा पिता के शव को मुखाग्नि देने के लिए तैयार हुआ। इसके बाद बेटे ने शव को मुखाग्नि दी। लेकिन इसके बाद भी गांव में इसकी चर्चा हो रही है। हर कोई कह रहा है कि ऐसी औलाद से अच्छा है औलाद ही न हो।
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