रामनवमी पर गंगा-जमुनी तहजीब: धनबाद में 25 साल से बजरंगी पताखा बना रहा मुस्लिम परिवार, लड्डू भाई के नाम से फेमस

जिस दुकान में लड्डू भाई पताके को आकार देते हैं, वह उनके पिता ने खोली थी। पिता के बाद लड्डू भाी ने उनके काम को आगे बढ़ाया और उन्होंने बजरंगी पताका बनाना शुरू किया। उनके बनाए पताके लोगों को खूब भाते हैं। रामनवमी पर लोग यहीं पताके लेने आते हैं।

धनबाद : देशभर में आज रामनवमी (Ram Navami 2022) की धूम है। राम मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा है। ऐसे में झारखंड (Jharkhand) के धनबाद (Dhanbad) का एक मुस्लिम परिवार गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा है। यह परिवार है सलीम अख्तर उर्फ लड्डू भाई की। यहां के पुराना बाजार में एक छोटी सी दुकान है, जिसका नाम है बजरंगी पताके की दुकान। लड्डू भाई पिछले 25 साल से बजरंगी पताका बना रहे हैं। इस काम में उनका पूरा परिवार उनका साथ देता है।

लड्डू भाई के पताके मशहूर है
सलीम अख्तर रामनवमी के अवसर पर कई दिन पहले ही पताकों को बनाने में जुट जाते हैं। दुकान में रखी सिलाई मशीन से लाल कपड़ों को आकार देते हैं। उनके हाथ से बने पताके काफी पसंद किए जाते हैं। दुकान के अंदर जाने पर एक दीवार पर तिरंगा लगा हुआ है तो दूसरी तरफ बगदाद शरीफ स्थित पीर हजरत शेख अब्दुल गफ्फार और उनके मजार ए शरीफ की फोटो।
लड्डू भाई चूंकि रामनवमी पर बरजंगी पताका बनाते हैं तो इसको लेकर वे कोई मोलभाव नहीं करते। हर पताके का दाम कितना है, उस पर लिखा रहता है। जो भी दुकान पर आता है, वह कीमत देख समझ जाता है और लड्डू भाई के हाथों से पताका लेकर खुशी-खुशी जाता है।

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मैंने कभी हिंदू-मुस्लिम विवाद नहीं देखा
लड्डू भाई का कहना है कि कई लोग दुकान आते हैं तो कम पैसे भी देते हैं लेकिन उसकी भी कोई बात नहीं क्योंकि सब भगवान का रहमो-करम है। देश में हिंदू-मुस्लिम को लेकर चल रही चर्चाओं पर वो कहते हैं कि मैं पढ़ा लिखा नहीं तो ये बातें भी मुझे कम ही समझ आती हैं। मेरी दुकान पर हर धर्म के लोग आते हैं और उनमें ज्यादातर हिंदू भाई होते हैं। मैंने बचपन से आजतक दोनों समुदायों में कोई विवाद अपनी आंखों से नहीं देखा। मेरे यहां जो भी हिंदू भाई आते हैं, वो बहुत सम्मान देते हैं इसलिए मुझे नहीं लगता कि हिंदू-मुस्लिम में कोई अंतर है।

हर दिन तीन घंटे करते हैं काम
रामनवमी के काम को लेकर लड्डू भाई बताते हैं कि रामनवमी के पहले तीन महीने में वे हर दिन तीन घंटे तक काम करते हैं। उनका पूरा परिवार इस काम में उनका हाथ बटाता है। हर साल वे 1500 से 2000 तक छोटे-बड़े आकार का पताका बनाते हैं। उन्हें हर साल करीब 25 हजार तक का मुनाफा भी होता है और रामनवमी पर जो कमाई होती है वो उनकी सबसे बड़ी कमाई होती है।
 

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