गांव और जाति-बिरादरी के लोगों ने महिला के अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। तब मृतका की बेटियां रोते बिलखते हुए मां की अर्थी को श्मशान तक लेकर गईं। जहां उन्होंने पूरे रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया।
हाजारीबाग (झारखंड). आज देश में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। वह पुरानी परंपराओं को तोड़कर हर फील्ड में अपनी काबिलियत का उदाहरण पेश कर रही हैं। झारखंड में हाजारीबाग जिले की बेटियों ने ऐसी की कुछ मिसाल पेश की है, जिनकी तारीफ इलाके के लोग कर रहे हैं। यहां जब एक महिला की मौत के बाद कोई उसका अंतिम संस्कार करने नहीं आया तो बेटियों ने बेटों का फर्ज निभाकर अपनी मां की अर्थी को कंधा देकर श्मशान तक लेकर गईं। जहां उन्होंने पूरे विधि विधान से मां का अंतिम संस्कार किया।
परिवार को समाज कर चुका था बहिष्कृत
दरअसल, हजारीबाग जिले के खम्भवा गांव में कुंती देवी (55) नाम की महिला का सोमवार को निधन हो गया था। मृतका की बेटियां रोती-बिलखती रहीं, लेकिन जाति-बिरादरी के लोग अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। क्योंकि कुंती देवी के परिवार को समाज के लोग किसी कारणवश बहिष्कृत कर चुके हैं। जिसके चलते कोई शमसान घाट तक नहीं गया।
8 बेटियों ने रोते-बिलखते किया अंतिम संस्कार
बता दें कि कुंती देवी का कोई बेटा नहीं था, उन्हें 8 बेटियां हैं। घंटों इंतजार करने के बाद इन बेटियों ने खुद ही मां का अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया। इसके बाद वह अर्थी को कंधा देकर शमसान तक रोते-बिलखते पहुंची। जहां सभी बहनों ने मिलकर अपनी मां का विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया।
बेटियों ने कही दिल छू लेने वाली बात
अर्थी को कंधा देने वाली बेटी अजंती देवी ने कहा किसी का बेटा नहीं होता तो उसके माता-पिता का अंतिम संस्कार नहीं होता है। हमारा कोई भाई नहीं है तो हम कुछ नहीं भाई नहीं हैं तो क्या हुआ, हम सभी बहनें मिलकर सारे क्रिया क्रम करेंगे। कंधा देनेवालों में अजंती, रेखा, देवकी, बाबुन कुमारी, केतकी कुमारी, भोली कुमारी थीं।
4 साल से चल नहीं सकती थी मृतका
बता दें कि कुंती देवी को चार साल पहले बीमार थीं, कुछ समय बाद लकवा से पीड़ित हो गईं। जिसके चलते वह चलने-फिरने में असमर्थ थीं। वहीं मृतका की 8 बेटियां में सात की शादी हो चुकी है। उसके पति देहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते है।