
रांची : झारखंड (Jharkhand) में भाषा विवाद को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। अखिल भारतीय भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका मंच के नेतृत्व में गैर-आदिवासी संगठनों ने ने आज झारखंड बंद का ऐलान किया है। उनकी मांग है कि भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में शामिल किया जाए। संगठन राज्य की डोमिसाइल पॉलिसी के लिए भूमि अभिलेखों के प्रमाण के रूप में 1932 की कट-ऑफ तारीख की मांग का भी विरोध कर रहा है। बंद को सफल बनाने के लिए लोगों से समर्थन की मांग भी की गई है।
क्या है विवाद
दरअसल, झारखंड सरकार ने 18 फरवरी को भोजपुरी और मगही को धनबाद और बोकारो जिले की क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से हटा दिया था। जिसके बाद कुछ विधायकों ने 1932- खतियान यानी भूमि दस्तावेज का प्रमाण आधारित अधिवास नीति को लागू करने की मांग की है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने इस मुद्दे पर विधानसभा में जवाब भी दिया था। उन्होंने कहा, 1932-खतियान आधारित अधिवास नीति को लागू करने पर विचार किया जा रहा है और जल्द ही इस संबंध में समिति गठित करने या नियम बनाने का फैसला लिया जाएगा।
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क्या नौकरियों पर पड़ेगा असर
राज्य में थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियां दो कैटेगरी में बांटी गई हैं। पहली राज्य स्तरीय और दूसरी जिलास्तरीय। सरकार ने झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग के जरिए ली जाने वाली थर्ड और फोर्थ ग्रेड वाली नौकरियों की परीक्षाओं के लिए क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से मगही, मैथिली, भोजपुरी और अंगिका को बाहर रखा है। दूसरी कैटगरी यानी जिलास्तरीय थर्ड और फोर्थ ग्रेड नौकरियों के लिए जिला स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं की अलग सूची है, जिसमें कुछ जिलों में भोजपुरी, मगही और अंगिका को शामिल रखा गया है।
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कहां से शुरू हुआ विरोध
दरअसल, उर्दू को राज्य के सभी 24 जिलों में क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। इसे लेकर सरकार ने 23 दिसंबर, 2021 को नोटिफिकेशन भी जारी किया था। इसके बाद से ही क्षेत्रीय भाषाओं की सूची पर विरोध और समर्थन की सियासत तेज हो उठी। क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में भोजपुरी, मगही, मैथिली और अंगिका पर एतराज जताने वाले संगठन और सियासी कुनबे इन्हें बाहरी भाषाएं बताते हैं। उनका कहना है कि इन भाषाओं का मूल बिहार है। इन्हें झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं में शामिल रखने से थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में बिहार (Bihar) से आए लोग ही काबिज हो जाएंगे।
14 मार्च को प्रदर्शन
वहीं, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद, आदिवासी जन परिषद, केंद्रीय सरना समिति और आदिवासी लोहरा समाज सहित कई आदिवासी संगठनों ने भी इस नीति का विरोध शुरू कर दिया है। हालांकि उन्होंने झारखंड बंद की आलोचना की है। ये संगठन 1932 की खटियान आधारित अधिवास नीति की अपनी मांग के समर्थन में 14 मार्च को राज्य विधानसभा का घेराव का ऐलान किया है।
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