CJI ने कहा- कंगारू कोर्ट चला रहा है इलेक्ट्रानिक मीडिया, ये लोकतंत्र के लिए खतरा

CJI रांची में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ में एक कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि कई न्यायिक मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा चलाना लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।

रांची. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमन्ना शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची पहुंचे। उनहोंने प्रमंडलीय न्यायालय चांडिल और नगर उंटारी का उद्घाटन किया। प्रोजेक्ट शिशू के तहत छात्रवृति का वितरण भी किया। रांची में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ में एक कार्यक्रम को संबोधित किया। सीजेआई ने अपने संबोधन में कहा, कई न्यायिक मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा चलाना लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कंगारू कोर्ट चला रहा है। कार्यक्रम में सभी अतिथियों का स्वागत झारखंड के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन ने किया। मौके पर झारखंड हाईकोर्ट के सभी न्यायाधीश शामिल थे।

इससे पहले कार्यक्रम स्थल तक आने के पूर्व सीजेआइ को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इस अवसर पर रांची के उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा, वरीय पुलिस अधीक्षक किशोर कौशल, एसडीओ समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे। 

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अदालतों की छवि को गलत तरीके से पेश कर रही मीडिया
उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया जीरो एकाउंटेबिलिटी के तहत काम कर रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया अदालतों के आदेश को तोड़-मरोड़कर देश की न्यायपालिका की छवि गलत तरीके से पेश करते हैं। इससे देशभर के न्यायाधीशों के आदेश पर कई सवाल खड़े होने लगते हैं। रांची के ज्यूडिशियल अकादमी में जस्टिस एसबी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया खास कर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संयम रखें। सोशल मीडिया को ज्यूडिसीयरी स्वतंत्रता पर भी ध्यान देना होगा। हम लोग एक गाइडिंग फैक्टर के रूप में कोई मामले को नहीं सुलझा सकते। मीडिया ऐसे मामलों को भी उछालती है। यह हानिकारक (डेट्रीमेंटल) होता है। हमलोगों को समाज में लोकतंत्र की भावनाओं को देखते हुए काम करना पड़ता है।

लोकतंत्र को पीछे ले जा रहा मीडिया
उन्होंने कहा कि मीडिया अपनी जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर लोकतंत्र को पीछे ले जा रहा है। बार और बेंच ने सीजेआई के हवाले से कहा कि प्रिंट मीडिया की कुछ जवाबदेही है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं बची है। सोशल मीडिया की इससे भी बदतर स्थिति है। इन दिनों हम न्यायाधीशों पर शारीरिक हमलों की बढ़ती संख्या देख रहे हैं। बिना किसी सुरक्षा या सुरक्षा के आश्वासन के न्यायाधीशों को उसी समाज में रहना होगा, जिस समाज में उन्होंने लोगों को दोषी ठहराया है।

 

न्यायधीशों पर हो रहे हमलों पर जताई चिंता
न्यायाधीशों पर शारीरिक हमलों में वृद्धि के बारे में बोलते हुए सीजेआई रमना ने जोर देकर कहा कि राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को उनकी नौकरी की संवेदनशीलता के कारण सेवानिवृत्ति के बाद भी अक्सर सुरक्षा प्रदान की जाती थी, “विडंबना यह है कि न्यायाधीशों को समान रूप से संरक्षण विस्तारित नहीं किया जाता है। 

'विजयवाड़ा से शुरू की थी अपने कानूनी कैरियर की शुरुआत'
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमलोग एक क्राइसिस सोसाइटी में रह रहे हैं। न्याय के लिए हमें भटकना पड़ रहा है। न्यायिक अधिकारियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। रोल ऑफ जज भी बड़ी बात है। रोल ऑफ जज की भूमिका काफी बदल रही है। सामाजिक आर्थिक कंडीशन पर सब कुछ निर्भर है। एक सपोर्ट सिस्टम जरूरी है। पिछड़े इलाकों में न्याय जरूरी है। 70 दशक में न्यायाधीशों की नियुक्ति में काफी बदलाव हुआ है। हमारी पिछली भूमिका भी बिल्कुल अलग है। हम जब पढ़ाई कर रहे थे, तब सातवीं में अंग्रेजी का विषय पढ़ा। मैजिस्ट्रेट कोर्ट विजयवाड़ा में प्रैक्टिस शुरू की। हैदराबाद उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की। सुप्रीम कोर्ट में कई बार याचिका फाइल की। एडवोकेट जनरल भी बना। राजनीति में आना चाहता था। मेरी यात्रा काफी प्राकृतिक है। मैंने अपना कैरियर बनाया। आर्टिकल ऑफ जस्टिस डिस्प्यूट्स में काफी भाग ली। 

हमारे ऊपर भी लगते हैं आरोप
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमलोगों पर यह आरोप लगता है कि काफी मामले न्यायालय में लंबित हैं। हमें आधारभूत संरचना विकसित करनी होगी, ताकि जज फूल पोटेंशियल में काम कर सकते हैं। सामाजिक दायित्वों से जज भाग नहीं सकते हैं। मल्टी डिसिप्लीनरी एक्शन मोड में काम करना होगा। सस्टेनेबल मेथड ऑफ जस्टिस की अवधारना लागू करना होगा। भविष्य की चुनौतियों को भी देखना होगा। सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपना व्यायस का उपयोग लोगों को शिक्षित करने, उन्हें दिशा दिखाने में काम करें। हमें अपने ज्यूडिशियरी को स्ट्रेंथेन करना है। एक जज जो दशकों से कई हार्ड क्रीमिनल के खिलाफ आदेश दिये। पर सेवानिवृति के बाद उन्हें उसी समाज में आना पड़ता है, जो वहां रहते हैं। रिटायरमेंट के बाद उन्हें उन कनविक्टेड लोगों से जुझना पड़ता है, जिनके खिलाफ एक जज ने कई आदेश पारित किये। जज भी इसी समाज का हिस्सा हैं।

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