मृत्यु के देवता यमराज और यमुना ने शुरू की थी रक्षाबंधन की परंपरा, पढ़ें 6 कहानियां

नोबल विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाल के विभाजन के दौरान हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए रक्षाबंधन मनावाया था।

Asianet News Hindi | Published : Aug 14, 2019 8:52 AM IST / Updated: Aug 14 2019, 02:58 PM IST

रांची. 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। कहा जा रहा है कि ऐसा संयोग 19 साल बाद बना है। आखिरी बार रक्षाबंधन, स्वतंत्रता दिवस के दिन साल 2000 में मनाया गया था। इस दिन बहन भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधती है और भाई उनकी रक्षा की कामना करता है। ऐसे में आपको रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ कहानियों के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे।

पौराणिक कथा

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रक्षाबंधन से जुड़ी इस पौराणिक कथा की मानें तो मृत्यु के देवता और यमुना भाई-बहन थे। एक बार यमुना ने अपने भाई यमराज को रक्षासूत्र बांधा था और उनकी लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया था। तभी से कहा जाता है कि ये परंपरा हर श्रावण पूर्णिमा को चलती आ रही है।

दूसरी पौराणिक कथा

इस दूसरी पौराणिक कथा की मानें तो एक बार राजा इंद्र और दानवों के बीच घमासान युद्ध हुआ और इंद्र इस युद्ध में हारने की कागार पर आ गए थे। तब इंद्र की पत्नी शुची ने गुरु बृहस्पति के कहने पर इंद्र की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था और इंद्र की जीत हुई थी। तभी से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है।

महाभारत में राखी का महत्व 

महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी की रस्म का सुझाव दिया था। तब कुंती ने अपने पौत्र अभिमन्यु और द्रोपदी ने श्रीकृष्ण को राखी बांधी थी।

रक्षाबंधन की ऐतिहासिक कहानी 

नोबल विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाल के विभाजन के दौरान हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए रक्षाबंधन मनावाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे देश में शान्ति का माहौल चाहते थे।

सिकंदर से जुड़ी राखी की कहानी 

एक बार राखी के कारण सिकंदर की जान बच पाई थी। दरअसल, एक बार सिकंदर और हिंदू राजा पुरु के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में पुरु ने राखी की लाज रखते हुए सिकंदर को छोड़ दिया था क्योंकि उन्होंने सिकंदर की पत्नी से राखी बंधवाई थी।

राजा बाली और देवी लक्ष्मी की कथा

एक बार राजा बाली अपनी प्रजा की रक्षा के लिए भगवान विष्णु को अपने साथ ले गए। लेकिन देवी लक्ष्मी ऐसा नहीं चाहती थीं। श्रावण पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जी ने बाली को धागा बांधा और उन्हें अपना उद्देश्य बताया। इसके बाद बाली ने विष्णु से घर ना छोड़ने का अनुरोध किया।

 

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