अब्दुल कलाम के दौरे के बाद बदल गई झारखंड के इस गांव की स्थिति, लोगों ने भेंट की थी एक खास टोपी

डॉ कलाम यहां झारखंडी कला-संस्कृति के लेकर यहां के रहन-सहन व जीवन शैली से अवगत हुए थे। लोगों ने यहां आदिवासी परंपरा से पैर पखार कर उनका स्वागत किया था। उनके पुण्यतिथि पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी उन्हें नमन किया।

Pawan Tiwari | Published : Jul 27, 2022 10:39 AM IST

रांची. मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध देश के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की आज पुण्यतिथि है। देशभर में लोग उन्हें याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। झारखंड से डॉ. कलाम की विशेष यादें जुड़ी हुई हैं। बता दें कि डॉ. कलाम दो बार झारखंड आ चुके थे। 2004 में ख्ररसवां के मरांगहातु गांव पहुचे थे। इसके तीन साल बाद 2007 में टाटा स्टील के 100 साल पूरे होने पर लौहनगरी जमशेदपुर आए थे। उनके पुण्यतिथि पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी उन्हें नमन किया। उन्होंने अपने संदेश में कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश के युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत थे। एपीजे अब्दुल कलाम अब तक के सबसे महान शिक्षकों एक के रूप में भी याद किया जाता है। बता दें कि 27 जुलाई, 2015 को शिलांग में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। 

टाटा स्टील में कर्मचारियों को किया था संबोधन
बता दें कि टाटा स्टील के सौ साल पूरे होने पर 21 अगस्त 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम शहर आए थे। उन्होंने टाटा स्टील परिसर में आयोजित एक सभा में कर्मचारियों और अधिकारियों को संबोधित किया था।

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सरायकेला-खरसावां जिला के कुचाई प्रखंड के मरांगहातु गांव से देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की यादें जुड़ी हुई हैं। डॉ. कलाम वर्ष 2004 में सरायकेला-खरसावां जिला के कुचाई प्रखंड के मारंगहातु गांव में आये थे। डॉ कलाम पहले हेलीकॉप्टर से कुचाई के जोबजंजीर गांव पहुंचे थे। इसके बाद मरांगहातु गांव पहुंचे कर विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक अर्जुन मुंडा के आग्रह पर कुचाई आये तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ कलाम करीब यहां करीब ढाई घंटे गुजारे थे। डॉ कलाम के इस दौरे के बाद से भी कुचाई और यहां का प्रसिद्ध सिल्क कपड़े को अलग पहचान मिली। 

आदिवासी परंपरा के अनुसार किया गया था स्वागत
डॉ कलाम यहां झारखंडी कला-संस्कृति के लेकर यहां के रहन-सहन व जीवन शैली से अवगत हुए थे। लोगों ने यहां आदिवासी परंपरा से पैर पखार कर उनका स्वागत किया था। कुचाई के बिरगमडीह में आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोगों ने डॉ कलाम को पत्ते से तैयार टोपी भेंट की। पत्ते की यह टोपी काफी दिनों तक राष्ट्रपति भवन में भी रखी हुई थी। 

छऊ व पाइका नृत्य से कलाकारों ने स्वागत किया था। स्थानीय लोगों द्वारा तैयार बाजा को द कलाम ने बजाया था। डॉ कलाम कुचाई प्रखंड के मरांगहातु गांव के स्कूली बच्चों से सीधे मुखातिब होने के साथ-साथ उनके सवालों के जवाब भी दिये थे। डॉ कलाम ने तब बच्चों को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का एहसास कराते हुए शपथ भी दिलायी थी।

डॉ. कलाम की प्रशंसा के बाद कुचाई के सिल्क को मिली नई पहचान 
डॉ. कलाम ने कुचाई में उत्पादित सिल्क के कपड़े व तसर कोसा की गुणवत्ता की काफी प्रशंसा की थी। इसके बाद से ही राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुचाई सिल्क को एक अलग पहचान मिली। डॉ कलाम ने मरांगहातु में कुम्हार समुदाय के लोगों द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य को भी प्रोत्साहित किया था। गांव में डॉ कलाम के दौरा के बाद मरांगहातु गांव को अलग पहचान मिली थी। 

मिसाइल मैन के नाम से क्यों जाने जाते हैं
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने SLV-III पर काम किया, जो पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान था, इसने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में स्थापित किया था। वह एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम के पीछे भी मुख्य व्यक्ति थे, जिसके बाद उन्हें भारत के मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा।

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