झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ सबसे बड़ा अभियान, ऑपरेशन में सुरक्षा बलों की 40 से अधिक कंपनियां शामिल

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के सम्मेलन में झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ विशेष अभियान चलाने पर जोर दिया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में दिल्ली में बैठक हुई थी। करीब 50 नक्सलियों के सूचना पर शुरू हुआ ऑपरेशन।

रांची. झारखंड में नक्सल समस्या बहुत गंभीर है। यहां लगातार पुलिस और बटालियान नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। झारखंड का गढ़वा जिला कभी नक्सलियों के लिए जाना जाता था। लेकिन अब यह यहां नक्सलियों की संख्या में कमी आई है। अब नक्सली सिर्फ जिले के बूढ़ा पहाड़ तक ही सीमित हो गये है। पुलिस यहां नक्सलियों के साथ निर्णायक लड़ाई लड़ रही है। झारखंड-छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ पर नक्सलियों के खिलाफ पुलिस-जवानों द्वारा महाअभियान चलाया जा रहा है। 2018 के बाद इस इलाके में माओवादियों के खिलाफ अब तक का सबसे बढ़ा अभियान बताया जा रहा है। एरिया को नक्सलियों से छुटकारा दिलाने के लिए पहाड़ों पर पुलिस की 40 से अधिक कंपनियां चढ़ाई कर रही है। पुलिस के अनुसार, अभियान के दौरान सुरक्षा बल पूरी सतर्कता से आगे बढ़ रहे हैं। 

 50 नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर ऑपरेशन
पुलिस को सूचना मिली है कि 25 लाख के ईनामी माओवादी सौरव उर्फ मरकस बाबा के नेतृत्व में 40 से 50 की संख्या में माओवादी कैंप कर रहे है। इसी इलाके में माओवादी कमांडर नवीन यादव, रविंद्र गंझू, मृत्युंजय भुइंया, संतु भुइंया व छोटू खेरवार ने शरण ले रखी है। यहां से नक्सली अपनी रणनीति बनाते रहे है। इस सूचना मिलने के बाद नक्सलियों के मंसूबे को विफल करने के लिए पुलिस संयुक्त अभियान चला रही है। 

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माओवादियों के खिलाफ कर रहे स्ट्राइक
नक्सलियों के खिलाफ इस महाअभियान के दौरान सीआरपीएफ, जैप व आईआरबी ने इलाके में घेराबंदी की है, जबकि कोबरा और जगुआर माओवादियों के खिलाफ स्ट्राइक कर रही हैं। वर्तमान अभियान में सुरक्षा बलों की 40 से अधिक कंपनियों को शामिल किया गया है। इस संयुक्त महाअभियान में कोबरा, जगुआर एसॉल्ट ग्रुप, सीआरपीएफ, जैप और आईआरबी शामिल हैं।

कभी जिले के 800 गांवों तक था नक्सलियों का असर
जानकारी के अनुसार, झारखंड के गढ़वा जिले के करीब 800 गांवों तक नक्सलियों का दबदबा था। हालांकि अब उनकी पैठ घटी है। इलाके में अपना असर रखनेवाले व हथियारबंद दस्ता के साथ सक्रिय नक्सली अब सिर्फ बड़गड़ प्रखंड के बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र तक सीमित रह गए हैं। भौगोलिक रूप से दुरूह क्षेत्र की वजह से बूढ़ा पहाड़ पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है। बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा छतीसगढ़ में पड़ता है। इसके अलावा झारखंड के लातेहार जिले व गढ़वा जिले में भी इसका क्षेत्र आता हैं। नक्सली पुलिस से नजरें बचाकर दूसरे क्षेत्रों में घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं।

पहाड़ के रास्तें में सीआरपीएफ व आईआरबी के 140 पिकेट बनाए गए हैं
घने जंगल व दुरूह क्षेत्र की वजह से इस पहाड़ की चोटी तक पहुंचना हमेशा से पुलिस के लिये चुनौती भरा रहा है। पुलिस चोटी तक भले नहीं पहुंच सकी है, लेकिन इसके काफी करीब तक जरूर पहुंच चुकी है। हाल के कुछ सालों के अंदर भंडरिया व बड़गड़ क्षेत्र के घने व दुरूह क्षेत्रों में तेजी से सड़कों का निर्माण किया गया है इसका लाभ यह हुआ कि बूढ़ा पहाड़ तक जाने वाले रास्ते में सीआरपीएफ व आईआरबी के 10 कैंप व पिकेट स्थापित कर दिये गए है। इस वजह से नक्सलियों को मजबूरन बूढ़ा पहाड़ की चोटी क्षेत्र में सिमटना पड़ा।

माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना है बूढ़ा पहाड़
बूढ़ा पहाड़ माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना रहा है। इसे मुक्त कराना सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती है। माओवादियों ने वर्ष 2013-14 में बूढ़ापहाड़ को झारखंड-बिहार उत्तरी छत्तीसगढ़ सीमांत एरिया स्पेशल कमिटी का मुख्यालय बनाया था। एक करोड़ के इनामी दिवंगत माओवादी कमांडर अरविंद ने बूढ़ा पहाड़ को अपना मजबूत ठिकाना बनाया था। 

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के सम्मेलन में झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ विशेष अभियान चलाने पर जोर दिया गया है। सम्मेलन में झारखंड पुलिस ने बताया कि नक्सली संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद कई अहम जानकारियां मिली। झारखंड पुलिस की सूचना पर ही रंजीत बोस उर्फ कंचन की गिरफ्तारी असम से हुई है। गिरफ्तारी के बाद माओवादियों की बड़ी योजना विफल हो गयी। उल्लेखनीय है कि 17-18 अगस्त को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में दिल्ली में बैठक हुई थी।

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