क्या है झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन का मामला, जिस कारण खतरे में पड़ सकती है उनकी कुर्सी

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला चल रह है।  सोरेन झारखंड के सीएम होने के साथ खनन और वन मंत्री भी हैं। उन्होंने अपने नाम से रांची के अनगड़ा में पत्थर की खदान लीज पर ली है। 

Pawan Tiwari | Published : Aug 19, 2022 11:53 AM IST

रांची. झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी पर खतरा मडंरा रहा है। चुनाव आयोग की सुनवाई इस मामले में पूरी हो चुकी है और वो कभी भी गवर्नर के पास अपना फैसला भेज सकता है। वहीं, दूसरी तरफ राज्य की सियासत भी तेज हो गई है। झारखंड की गठबंधन सरकार ने विधायकों के साथ बैठक की है। वहीं, स्पीकर ने अपने विदेश दौरा भी कैंसिल कर दिया है। राज्य में सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। 

क्या है मामला 
दरअसल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला चल रह है। बीजेपी ने हेमंत सोरेन पर मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए रांची के अनगड़ा में पत्थर की खदान लीज पर लेने की शिकायत की थी। बीजेपी ने फरवरी 2022 में रघुवर दास के नेतृत्व में झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंपकर आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए हेमंत सोरेन ने अपने नाम से रांची के अनगड़ा में पत्थर खनन लीज आवंटित करा ली। इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन बताते हुए हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराने की मांग की गई है।

बीजेपी ने आरोप लगाया था कि सोरेन झारखंड के सीएम होने के साथ खनन और वन मंत्री भी हैं। अपने अधीन वन विभाग से उन्होंने खनन की एक लीज ली है। उन्होंने जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9ए का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी ठेके लेने के कारण उन्हें विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य कर देना चाहिए। लाभ के पद मामले पर ईसीआई में अब सुनवाई पूरी हो गयी है। कभी भी फैसला आ सकता है।

आयोग ने लिखित में मांगा था जवाब
आयोग इसी शिकायत के आधार पर सुनवाई कर रहा है। उसने हेमंत सोरेन को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि क्यों नहीं विधानसभा से उनकी सदस्यता खत्म कर दी जाए? इस नोटिस पर हेमंत सोरेन की ओर लिखित जवाब सौंपा गया था। आयोग की ओर से ये भी कहा गया था कि वो खुद या वकील के माध्यम से पक्ष रखें, अन्यथा उनकी ओर से जो लिखित जवाब सौंपा गया है, उसी आधार पर फैसला लिया जाएगा। 

28 कंपनियों में सोरेन बंधुओं की भागीदारी का दावा
याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता राजीव कुमार की ओर से कोर्ट में 28 कंपनियों की डिटेल पेश की थी। जिसमें सोरेन बंधुओं की भागीदारी का दावा किया गया है। याचिकाकर्त्ता की ओर से आरोप लगाया गया है कि दोनों भाइयों ने शेल कंपनियां बनाकर अवैध संपत्ति अर्जित की है, लिहाजा, सीबीआई, ईडी और इनकर टैक्स से पूरे मामले की जांच कराई जानी चाहिए। याचिकाकर्ता शिवशंकर शर्मा ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और छोटे भाई बसंत सोरेन पर झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों में चलायी जा रही शेल कंपनियों में निवेश का आरोप लगाया है। 

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में हाईकोर्ट व चुनाव आयोग ले सकता है निर्णय
ऑफिस ऑफ प्रोफिट की तीन कंडीशन होते हैं। पहला- कोई पद होना चाहिए, दूसरा- इसके तहत कोई लाभ होना चाहिए और तीसरा यह सरकार के अधीन होना चाहिए। अगर यह है, तो वह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट होगा। मामला न्यायालय में विचाराधीन है। हालांकि, यह मामला चुनाव आयोग व झारखंड हाइकोर्ट में है। इस मामले में उन्हें ही निर्णय लेना है। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट दो तरह के हैं। एक नामांकन के समय का ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और एक जीत जाने के बाद का ऑफिस ऑफ प्रॉफिट। दोनों अलग-अलग चीज हैं। विधायक जीतने के बाद मंत्री-मुख्यमंत्री बनता है। यदि वह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट करता है, तो सदस्यता से अयोग्य घोषित हो सकता है। जहां तक हेमंत सोरेन द्वारा अपने नाम से माइनिंग लीज लेने का मामला है, तो यह देखना होगा कि लीज से किसको लाभ हो रहा है। लाभ लिया गया है या नहीं। चुनाव आयोग किसी सदस्य को सीधे अयोग्य घोषित नहीं कर सकता है। नियम है कि राज्यपाल चुनाव आयोग को भेजते हैं। आयोग जांच कर सुप्रीम कोर्ट को ओपेनियन के लिए भेजेगा। सुप्रीम कोर्ट का ओपेनियन मिलने पर आयोग उसे राज्यपाल के पास भेजेगा।

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