
रांची (झारखंड). झारखंड में चल रही सीएम हेमंत सोरेन की जेएमएम कांग्रेस राजद महागठबंधन सरकार ने 1000 दिन पूरे कर लिए हैं। अपने इस कार्यकाल में सरकार ने कई अहम फैसले लिए, कई महत्वपूर्ण फैसला लेना बचा हुआ है। वहीं कई मुद्दों पर सरकार को विपक्ष की ओर से घेरा भी गया। आईए, जानते हैं कैसा रहा हेमंत सोरेन और महागठबंधन का हजार दिनों का कार्यकाल...
नीजी क्षेत्रों में 75 फीसदी आरक्षण, 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति बड़ा फैसला
अपने 1000 दिन के कार्यकाल में महागठबंधन की सरकार ने कई योजनाओं और नीतियों को राज्य में लागू किया। इनमें झारखंड की नई औद्योगिक नीति, झारखंड की नई खेल नीति, नई पर्यटन नीति अहम है। वहीं अगर बड़े फैसलों की बात किया जाए तो निजी क्षेत्र में 75 फीसदी आरक्षण देने का आदेश हेमंत सरकार ने दिया है। इसके अलावा पुरानी पेंशन योजना बहाल करना, 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने को लेकर कैबिनेट से प्रस्ताव पास करना, ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था का प्रस्ताव जैसे बड़े और अहम फैसले शामिल हैं।
मॉब लिंचिंग कानून और पेट्रोल सब्सडी योजना का नहीं दिखा असर
अपने कार्यकाल के दौरान सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड की सियासत में अपने विरोधियों को चित कर दिया है, हालांकि कई बड़े फैसले ऐसे भी रहे जिन को लेकर चर्चा तो खूब हुई लेकिन जनता ने उसे नहीं सराहा। झारखंड सरकार ने मॉब लिंचिंग को लेकर भी कानून बनाया। इस पर कानून बनाने वाला झारखंड देश का तीसरा राज्य बना लेकिन जनता का ज्यादा समर्थन नहीं मिला। इसके अलावा सरकार द्वार लाई गई पेट्रोल पर सब्सीडी देने की योजना भी ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाई। गरीबों को 10 लीटर पेट्रोल पर ₹25 प्रति लीटर की सब्सिडी देने की योजना हेमंत सरकार ने 26 जनवरी को लागू कराई और यह भी कहा कि इससे गरीब लोगों को सहायता मिलेगी। लेकिन इसका सीधा फायदा लोगों को दिखा नहीं और कई तरह की पेंच और विपक्ष के लगातार हमलावर होने की वजह से लोगों में भ्रम की स्थिति भी रही।
हेमंत सोरेन ने अपनी पार्टी को दिलाई मजबूती
अपने हजार दिनों के कार्यकाल के दौरान हेमंत सोरेन ने अपनी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को राजनीतिक रूप से मजबूती दिलाई। अपने फैसलों से गठबंधन सहयोगियों के साथ विरोधियों को भी बैकफुट पर धकेला। हेमंत सरकार बनने के बाद से कुल 4 विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए और सभी सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपनी जीत दर्ज की। कांग्रेस का कई मसलों पर विरोध भी रहा और लंबे समय तक कोऑर्डिनेशन कमेटी की मांग भी होती रही। हालांकि हेमंत सरकार के 2 साल के कार्यकाल पूरा होने के बाद ही कोऑर्डिनेशन कमेटी का गठन हो पाया अगर बड़े निर्णयों की बात करें तो 20 सूत्री का गठन भी झारखंड में हेमंत सरकार की बड़ी उपलब्धि में जोड़ा जा सकता है।
कई विवादों का भी करना पड़ा सामना, ऑफिस ऑफ प्रॉफिट सबसे बड़ा
1000 दिन के कामकाज में उपलब्धियां तो आईं लेकिन विवादों ने भी पीछा नहीं छोड़ा। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में हेमंत सोरेन का नाम आया तो उनके भाई बसंत सोरेन भी इस मामले में निर्वाचन आयोग की जद में हैं। झारखंड में भ्रष्टाचार के मामले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई में भी कई ऐसे नाम आए जो हेमंत सोरेन के करीबियों में शामिल हैं। इनका करीबी संबंध सीएम हेमंत सोरेन से रहा है।
कानून व्यवस्था के नाम पर विपक्ष के निशाने पर रही सरकार
अपने इस 1 हजार दिन के कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था के नाम पर भी विपक्ष ने हेमंत को खूब घेरा और हाल के दिनों में जिस तरीके से राज्य में विधि व्यवस्था के हालात बिगड़े हैं उसको लेकर झारखंड सरकार बैकफुट पर दिखी है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक हजार दिन का कार्यकाल पूरा होने पर सीएम को बधाई देते हुए कहा कि सोरेन सरकार ने अपने हजार दिन पूरे कर कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि इन दिनों में जो काम हुए हैं समें किस विषय की बधाई हेमंत सोरेन लेंगे, जल जंगल जमीन और खनिज संपदा की लूट की या हेमंत सोरेन ठप विकास योजनाओं की बधाई लेंगे। झारखंड में चल रही सरकार संवैधानिक कार्य की जगह मनमानी कर रही है और जनता को ठग रही है।
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