झारखंड में सांप के काटने से अगर हो जाए मौत तो नहीं होता पोस्टमार्टम, जानें क्या इसकी वजह

राज्य में सर्पदंश के लिए मिलने वाले सरकारी लाभ के लिए जागरूकता अभियान की कोई योजना नहीं है। इसके बाद भी ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश को लेकर लोगों में तरह-तरह के अंधविश्वास हैं। यहां इलाज से पहले लोग झाड़-फूंक करवाते हैं। 

रांची. झारखंड जंगलों और पहाड़ों का राज्य है। यहां के अधिकांश ग्रामीण इलाका इन्हीं जंगलों और पहाड़ों के बीच है। राज्य में इन दिनों जहरीले सांपों ने कहर बरपा रखा है। इनके आतंक से लोग काफी भयभीत हैं। भीषण गर्मी के बाद बारिश होते ही जमीन के अंदर घुसे हुए सांप बाहर निकल आते हैं और बाहर की गर्मी से बचने के लिए ये सांप लोगों के घरों में भी घुस जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में इन दिनों अक्सर बड़े-बड़े जहरीले सांप निकल कर लोगों के घरों तक पंहुच रहे हैं। इन विषधरों से अंजान लोग बेवजह इनके डंक का शिकार हो रहे हैं। दरअसल झारखंड के ग्रामीण इलाकों के अधिकांश घर कच्चे और खपड़ों के होते हैं जहां असानी से सांप घुस जाते हैं। गर्मी से बचने को ज्यादातर ग्रामीण जमीन पर ही सोते है और इस कारण इन जहरीले सांपों का आसानी से शिकार हो जाते हैं। बता दें कि 16 जुलाई को स्नैक डे मनाया जाता है।  

भोले-भाले आदिवासी ग्रामीण अंधविश्वास का भी हो रहे शिकार
झारखंड के जंगलों और पहाड़ों के बीच निवास करने वाले अधिकांश भोले-भाले आदिवासी ग्रामीण अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर भी अपनी और अपने परिजनों की जान गवां रहे हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि सांप कांटने के बाद झाड़-फूंक से जान बचाई जा सकती है। इस चक्कर में मरीज को अस्पताल ले जाने से पहले झाड़-फूंक कराने ओझा के पास ले जाते हैं। इस चक्कर में देर हो जाती है और सर्पदंशं के शिकार मरीज की जान चली जाती है। कई मामले तो डर के कारण भी सरकारी रिकार्ड में नहीं आते हैं। ओझा गुणी अपने सब्जबाग से लोगों के दिलो दिमाग पर इस तरह कब्जा जमा लेते हैं कि लोग झाड़ फूंक के बाद मृत हो जाने पर मरीज का पोस्टमार्टम तक नहीं कराना चाहते। 

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ओझा का मानना है कि सर्पदंश ईश्वर का प्रकोप
ओझा गुणी अंधविश्वासी ग्रामीणों को यह समझाते हैं कि भगवान के प्रकोप के कारण की सांप काटते हैं। मौत के बाद शरीर पर चीरा लगाने से मृतक के आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। यही कारण हे कि ग्रामीण सर्पदंश के शिकार व्यक्ति का पोस्टमार्टम भी नहीं कराना चाहते। पिछले कई केस ऐसे हीं सामने आए हैं जहां सर्पदंश से मृत लोगों का पोस्टमार्टम कराने के लिए पुलिस प्रशासन को लोगों की विरोध का भी सामना करना पडा है। 

समय पर अस्पताल पहुंचे तो बच सकती है जान
चिकित्सकों का मानना है कि सांप कांटने के बाद अगर समय पर मरीज अस्पताल आ जाए तो कई मरीजों की जान बच सकती है। लेकिन लोग पहले झाड़ फूंक करवाते है और समय बीत जाने के बाद अस्पताल आते है। ऐसे में कई मरीजों की जान जो बचाई जा सकती थी उन्हें भी नहीं बचा पाया जाता है। अस्पतालों में सर्पदंश की दवा उपलब्ध होती है। 

झारखंड में 25 तो कोल्हान में 19 प्रकार के सांप मिलते हैं
दुनिया भर में लगभग 2500 प्रकार के सांप पाए जाते हैं, जबकि भारत में 300 प्रकार के। अगर झारखंड की बात करें तो यहां 25 प्रकार के सांप पाए जाते हैं, वहीं कोल्हान प्रमंडल में 19 प्रकार के सांप पाए जाते हैं। इन सांपों में महज 20 प्रतिशत सांप ही जहरीले होते हैं। झारखंड में पाए जाने वाले सांपों में नव विभाग ने कुछ सांपों के प्रजाति को अनसूचि में शामिल किया है। उनमें शामि हैं-: अजगर, गेहूंअन, भारतीय नाग, नगा प्रजाति की सभी उप प्रजातियां, किंग कोबरा, रसल्स वाइपर, धामन, चेकर्ड कीलबैक स्नेक, ओसिबेसियस कीलबैक स्नैक आदि।

जमशेदपुर के दलमा के जंगलों में रसेल्स वाइपर सांप, बंबू पिट वाइपर सांप, रेट स्नेक, ग्रीनकील बैक सांप, कॉमन कुकरी सांप, चेकर्ड कीलबैक सांप, बैंडेड करैत सांप, बैर्ड वुल्फ सांप, कॉमन सैंड बो सांप, भारत का सबसे छोटा अंधा सांप, कॉमन कैट, फॉरेस्टन कैट, ग्रीन वाइन सांप हल्का जहरीला होता है। इसके अलावा करैत, बैंडेड करेत, कोबरा आदि जहरीला सांप है। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 80 हजार से अधिक लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं, जिसमें से अकेले भारत में 11 हजार लोगों की मौत हो जाती है।

अस्पताल में हर साल पहुंचते 200 से अधिक सर्पदंश के शिकार मरीज
कोल्हान के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक जमशेदपुर स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल के आंकडे को देखें तो हर साल 300 से 350 सांप कांटने के मरीज आते हैं, इनमें सैंकड़ों की जान चली जाती है।

सरकारी नियम के तहत सांप कांटने पर मिलता है मुआवजा
वन्यप्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 2 (36) के अनुसार वाइल्ड एनिमल या जंगली जानवर का अर्थ उस हर जानवर से है, जो इस अधिनियम की अनुसूची 1 से 4 में शामिल हैं।  सांप के काटने पर मरने वाले के परिजनों को ढाई लाख रुपए मुआवजा मिलना चाहिए। यह सरकारी नियम है लेकिन वन विभाग की तरफ से मुआवजा दिया ही नहीं जाता। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि कोई दावा ही नहीं करता। फिर, किसे दें? लोगों को इस बारे में जागरूक करने के लिए उनके पास कोई योजना ही नहीं है।  सरे राज्यों में सर्पदंश से हुई मृत्यु पर परिजनों को एक से चार लाख तक का मुआवजा दिया जाता है। पंजाब-केरल में एक-एक, बंगाल में दो और ओड़िशा में तो चार लाख रुपये तक दिए जाते हैं। 

राज्य में सर्पदंश के लिए मिलने वाले सरकारी लाभ के लिए जागरूकता अभियान की कोई योजना नहीं
राज्य में सांप कांटने से मरने वाले लोगों के परिजनों को सरकारी लाभ देने का प्रावधान है, लेकिन जागरूकता की कमी से राज्य में ऐसे कोई केस सामने नहीं है जिसमें मृतकों के परिजनों को सर्पदंश के आद मुआवजा मिला हो। वन विभाग के पास लाेगों में इसके लिए जागरूकता फैलाने के लिए कोई योजना भी नहीं है। विभाग को इसके लिए लोगों को जागरूक करने की जरुरत है।

सिमडेगा में सबसे अघिक सर्पदंश की घटना
सिमडेगा सदर अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार पिछले डेढ़ सालों में सिर्फ सदर अस्पताल में 132 सर्पदंश के केस आए हैं जिनमें से 14 लोगों की मृत्यु हुई है। ये आकंडे सिर्फ सदर अस्पताल के हैं। पूरे जिला का आकंडा इससे अधिक है। इन आंकडों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां जहर का कहर कितना हावी है। सर्पदंश के बाद मौत के बढ़ते मामलों के पीछे अंधविश्वास भी एक सबसे बडा कारण है। यहां तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति यह है कि जब लोगों को सांप डंसता है तो लोग पहले झाड़ फूंक करवाते हैं।

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