देवघर रोप-वे हादसे के असली हीरो से मिलिए, जिसने जान पर खेलकर पर लोगों को बचाया, पहाड़ों में ऐसे बना मसीहा

देवघर रोप-वे हादसे में  एनडीआरएफ और सेना ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर लोगों को जिंदगी बचा ली। लेकिन इस रेस्क्यू के दौरान एक असली हीरो भी सामने आया है। जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना कई  लोगों को बचाया है।
 

देवघर (झारखंड). तीन दिन पहले रविवार को झारखंक के देवघर (Deoghar) में हुए रोप-वे हादसे का रेस्क्यू मंगलवार को पूरा हो गया। जहां सेना और पुलिस ने मिलकर 45 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर 46 जिंदगियों को सही सलामत बचा लिया। हालांकि इस भयानक हादसे में अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है।  इस पूरे रेस्क्यू के दौरान पन्नालाल उर्फ पान पंजियार नाम का युवक रियल हीरो बनकर सामने आया। जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना अप कंधे पर बैठाकर कई लोगों की जिंदगियां बचाईं। 

कंधे पर बैठाकर लोगों को अस्पताल पहुंचाया
दरअसल, देवघर के दिल दहला देने वाले हादसे के हीरो बने पन्नालाल उर्फ पान पंजियार मूल रुप से बांसडीह गांव के रहने वाले हैं। वह रोपवे मेंटेनेंस कर्मचारी हैं। उन्होंने इस हादसे के दौरान कई लोगों को सुरक्षित निकाला। पन्नालाल ने स्थानीय लोगों की मदद से हादसे के शिकार लोगों को अपने कंधे पर उठाकर गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाया। पहाड़ और पत्थरों के बीचों-बीच जंगल पार कर कर लोगों को हॉस्पिटल तक लेकर गए। 

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पुलिस के जवान भी कर रहे उनको सैल्यूट
 रोप-वे हादसे के हीरो बन चुके पन्नालाल को आज हर कोई सलाम कर रहा है। उनके जज्बे की पुलिस के अधिकारी भी तारीफ कर रहे हैं। किस तरह उन्होंने समय गंवाए बिना लोगों को  त्रिकुट से लगभग चार किलोमीटर दूर एयर बेस तक लाकर हॉस्पिटल पहुंचाया। क्योंकि अगर जरा सी भी देरी हो जाती तो शायद किसी की जान भी जा सकती थी।

45 घंटे तक हवा में अटक गई थीं दर्जनों जिंदगियां
बता दें कि रविवार शाम 4 बजे त्रिकूट पर्वत पर रोपवे की ट्रालियां आपस में टकरा गई थीं। जिसके चलते करीब 6 से 7 ट्रालियां हवा में अटक गईं। इनमें करीबी 45 से 50 लोग सवार थे। इस दौरान हवा में अटके भूंखे-प्यासे लोगों को आर्मी के जवान, वायुसेना की टीम और NDRF ने 45 घंटे चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन चला कर उनकी बचाया।  हवा में फंसे लोगों ने बताया कि कैसे उन्होंने एक-एक पल काटा है, उसकी कहानी बहुत भयानक है। उन्होंने बताया सबसे बड़ी चुनौती थी कि बस हम सही सलामत बच जाएं। खाने-पीने की सुध तो थी नहीं लेकिन दैनिक क्रिया की सबसे बड़ी समस्या थी।

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