झारखंड के जनक की कहानी-लकड़ी बेचने से शुरू किया था सफर

शिबू सोरेन के बचपन में ही महाजनों ने उनके पिता की हत्या कर दी थी। पिता कि हत्या के बाद शिबू ने लकड़ी बेचना शुरू किया। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 1, 2019 1:57 PM IST / Updated: Nov 02 2019, 03:36 PM IST

नई दिल्ली. झारखंड में हाल ही में विधानसभा चुनावों का एलान हुआ है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि झारखंड में 30 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच पांच चरणों में विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। पहले चरण में 30 नवंबर को वोटिंग होगी, जबकि  20 दिसंबर को मतदान का आखिरी चरण होगा। इसके बाद 23 दिसंबर को चुनाव के नतीजों की घोषणा होगी।   

झारखंड में चुनावों का एलान होते ही यहां के कई स्थानीय नेताओं का कद भी बढ़ गया है। झारखंड के सबसे बड़े नेताओं में शुमार शिबू सोरेन झारखंड के आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े राजनीतिक चेहरों में से एक हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस दौरान उन्होंने केवल 10 दिनों के लिए भी झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला था। शिबू 2006 में केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे हैं। शिबू झारखंड के दुमका से 8 बार सांसद रह चुके हैं। 

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महाजनों ने की थी पिता की हत्या
शिबू सोरेन के बचपन में ही महाजनों ने उनके पिता की हत्या कर दी थी। पिता कि हत्या के बाद शिबू ने लकड़ी बेचना शुरू किया। शिबू की शादी रूपी किस्कू हुई। उनके तीन बेटे दुर्गा, हेमंत, बसंत और एक बेटी अंजली है। शिबू के बेटे और बहू भी राजनीति में सक्रिय हैं। हेमंत सोरेन 2013-14 में झारखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। दुर्गा सोरेन जामा से 1995 से 2005 तक विधायक रहे हैं और फिलहाल उनकी पत्नी सीता सोरेन यहां से विधायक हैं। बसंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के यूथ संगठन झारखंड युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं।

आदिवासी नेता के तौर पर शुरू की राजनीति 
शिबू सोरेन ने 1970 के दशक में आदिवासी नेता के तौर पर राजनीति में कदम रखा। 1975 में उन्होंने कथित रूप से गैर-आदिवासी लोगों को निकालने के लिए एक आंदोलन भी छेड़ा। इस  दौरान कम से कम सात लोगों की मौत हुई थी। तब सोरेन पर हिंसा भड़काने समेत कई गंभीर आरोप लगे थे।

पहले ही चुनाव में मिली थी हार 
शिबू ने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था, जिसमें उन्हें हार मिली थी। इसके बाद साल 1980 में वह पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए। 1980 के बाद शिबू ने 1989, 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव जीते। 2002 में वह राज्यसभा में पहुंचे पर उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और दुमका से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा। इस चुनाव में भी उनको जीत मिली।  

सचिव की हत्या के लगे आरोप 
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन काफी विवादों भरा रहा है। सोरेन पर अपने सचिव शशि नाथ की हत्या के आरोप लगे थे। दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें 2006 में केंद्र सरकार में कोयला मंत्री रहने के दौरान हत्या का दोषी भी ठहराया था। यह चर्चित हत्याकांड 1994 में हुआ था। 2007 में जब उन्हें झारखंड की दुमका जेल ले जाया जा रहा था तभी उनके काफिले पर बम से हमला हुआ, हालांकि इस हमले में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। कुछ महीनों बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को पलट दिया और शिबू बरी हो गए। 

जारी हुआ था अरेस्ट वारंट 
चिरुधि केस में वह शिबू और 69 अन्य लोगों पर 10 लोगों की हत्या के आरोप लगे थे। इस केस में उनके खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी हो गया था। पहले तो शिबू अंडरग्राउंड हो गए, पर फिर उन्होंने इस्तीफा दिया और एक महीने की सजा काटने के बाद उनको जमानत मिल गई। 2004 में उन्हें फिर से कोयला मंत्रालय का प्रभार दे दिया गया। इसके बाद ही 2005 के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच गठबंधन बना था.

2019 में अहम होगा शिबू का किरदार 
शिबू 2019 का लोकसभा चुनाव भले ही हार गए हों पर विधानसभा चुनावों में उनकी और झारखंड मुक्ति मोर्चा की अहमियत को नहीं नकारा जा सकता। झारखंड में फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास 19 सीटें हैं और यह पार्टी भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर हैं। अबकी बार भले ही पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती न दिख रही हो, पर हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह झारखंड में भी गठबंधन सरकार की नौबत आ सकती है। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिबू का किरदार अहम होगा। 

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