19 साल बाद श्राद्ध और नवरात्रि में 1 महीने का अंतर, जानिए क्या है इसका कारण?

इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 2 सितंबर से हो रही है जो कि 17 तारीख तक रहेगा। इन दिनों में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जाएगा। इस बार तिथियों की घट-बढ़ के बावजूद पितरों की पूजा के लिए 16 दिन मिल रहे हैं। आमतौर पर पितृपक्ष खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार 19 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब पितृपक्ष के खत्म होने के एक महीने बाद नवरात्र शुरू होंगे।

Asianet News Hindi | Published : Aug 29, 2020 3:21 AM IST / Updated: Aug 29 2020, 03:56 PM IST

उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के अनुसार इस बार तिथियों की घट-बढ़ के बावजूद पितरों की पूजा के लिए 16 दिन मिल रहे हैं। आमतौर पर पितृपक्ष खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार 19 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब पितृपक्ष के खत्म होने के एक महीने बाद नवरात्र शुरू होंगे।
पं. मिश्रा के अनुसार इससे पहले 2001 में ऐसा हुआ था जब 2 से 17 सितंबर तक पितृपक्ष था और नवरात्रि 17 अक्टूबर से थी। इस साल भी तिथियों और तारीखों का ये दुर्लभ संयोग बन रहा है। अधिक मास होने के कारण ऐसी स्थिति बनती है। हिंदू पंचांग में तिथियों की घट-बढ़ के कारण साल के दिन कम हो जाते हैं और उन्हें एडजस्ट करने के लिए अधिकमास की व्यवस्था की गई है। जिस तरह लिप ईयर 4 साल में एक बार आता है उसी तरह अधिकमास हर 3 साल में एक बार होता है।

ब्रह्म पुराण: श्राद्धपक्ष में वायु रूप में आते हैं पितृ
पं. मिश्र का कहना है कि भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या तक 16 दिनों को पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष कहा जाता है। उन्होंने बताया कि ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्धपक्ष के 16 दिनों में पितृ वंशजों के घर वायु रूप में आते हैं। इसलिए उनकी तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और पूजा-पाठ करने का विधान है। इस बार पितृपक्ष में पूर्णिमा का श्राद्ध मंगलवार को होगा। इस दिन पूर्णिमा सुबह साढ़े 9 बजे के बाद शुरू होगी जो कि अगले दिन सुबह करीब 11 बजे तक रहेगी। इसलिए पूर्णिमा का श्राद्ध 1 और 2 सितंबर को भी किया जा सकेगा।

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क्या है पितृपक्ष?
पितृ पक्ष अपने कुल, परंपरा और पूर्वजों को याद करने और उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेने का समय है। इसमें व्यक्ति का पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तर्पण यानी जलदान और पिंडदान यानी भोजन का दान श्राद्ध कहलाता है। पूर्वजों की पूजा और उनकी तृप्ति के लिए किए गए शुभ कार्य जिस विशेष समय में किए जाते हैं उसे ही पितृपक्ष कहा गया है।

जरूरतमंद लोगों को कराएं भोजन
पं. मिश्र के अनुसार पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पितरों को जलांजलि दी जाना चाहिए। परिवार के मृत सदस्य की तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म करना चाहिए। अगर तिथि नहीं पता हो तो सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है। इन 16 दिनों में जरूरतमंदों को भोजन बांटना चाहिए। पितरों का श्राद्ध और पिंडदान करने तथा ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों की आत्माएं तृप्त होती हैं। इसके परिणाम स्वरूप कुल और वंश का विकास होता है। परिवार के सदस्यों को लगे रोग और कष्टों दूर होते हैं।

सर्वपितृ अमावस्या 17 सितंबर को
पितृपक्ष का आखिरी दिन सर्वपितृ अमावस्या होती है। इस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या, पूर्णिमा या चतुर्दशी तिथि को हुई हो। अगर कोई सभी तिथियों पर श्राद्ध नहीं कर पाता तो सिर्फ अमावस्या तिथि पर श्राद्ध भी कर सकता है। अमावस्या पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये काफी होता है। जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि नहीं पता हो उनका श्राद्ध भी अमावस्या पर किया जा सकता है। इसीलिए इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या भी कहा जाता है। इसके साथ ही पूर्णिमा पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या पर किया जा सकता है। इस बार सर्वपितृ अमावस्या 17 सितंबर को है।
 

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