Astrology: किन ग्रहों के अशुभ प्रभाव के कारण हो सकता है कैंसर, कब बनती है ये रोग होने की स्थिति?

ज्योतिष शास्त्र (Astrology) से हम ग्रहों के अशुभ होने से भविष्य में हो सकने वाली बीमारियों (Disease) के बारे में जान सकते हैं, जैसे कैंसर (Cancer) जैसे भयानक रोग की उत्पत्ति में कौन-कौन से ग्रहों का प्रभाव रहता है इसे जाना जा सकता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर (cancer) रोग किस अवस्था में होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है। साथ ही समय रहते प्रतिकूल ग्रहों को मंत्र जाप एवं अन्य उपायों के द्वारा शांत कर इस रोग से बचा भी जा सकता है।
 

Asianet News Hindi | Published : Aug 11, 2021 2:13 AM IST / Updated: Aug 11 2021, 11:56 AM IST

उज्जैन. मानव शरीर में कैंसर की उत्पत्ति में कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कोशिकाओं में श्वेत एवं लाल रक्त कण होते हैं। ज्योतिष में श्वेत रक्त कण का कारक कर्क राशि का स्वामी चंद्र तथा लाल रक्त कण का सूचक मंगल है। कर्क राशि का अंग्रेजी नाम कैंसर (cancer)  है तथा इसका चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है, उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का विशेष महत्व है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है।

जन्म कुंडली में पाप ग्रहों का प्रभाव
जन्म कुंडली में जब एक भाव पर ही अधिकतर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, विशेषकर शनि, राहु व मंगल से तब उस संबंधित भाव वाले अंग में कैंसर रोग के होने की संभावना अधिक होती है। कैंसर रोग जिस दशा में होता है, उसके बाद आने वाली दशाओं का आंकलन किया जाना चाहिए। यदि यह दशाएँ शुभ ग्रहों की है या अनुकूल ग्रह की है या योगकारक ग्रह की दशा आती है तब रोग का पता आरंभ में ही चल जाता है और उपचार भी हो जाता है। जानिए जन्म कुंडली में कौन से योग कैंसर कारक हो सकते हैं- 

- राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
- षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
- बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
- राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
- षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
- बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
- बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है। बृहत पाराशरहोरा शास्त्र के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है।
- सभी लग्नों में कर्क लग्न के लोगों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है।
- कर्क लग्न में बृहस्पति कैंसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है।
- शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है

उपाय
जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है और ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए। साथ ही चिकित्सकीय उपचार भी लगातार करते रहना चाहिए।

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