नक्षत्र मंडल का राजकुमार है बुध, कैसा है इसका स्वरूप, जानिए क्या है ज्योतिष में इसका महत्व

Published : Jan 21, 2020, 09:44 AM IST
नक्षत्र मंडल का राजकुमार है बुध, कैसा है इसका स्वरूप, जानिए क्या है ज्योतिष में इसका महत्व

सार

हिंदू धर्म में नवग्रहों को भी देवता के रूप में पूजा जाता है। सभी ग्रहों को जुड़ी अलग-अलग मान्यताएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। 

उज्जैन. ग्रंथों में भी सभी ग्रहों के विस्तृत रूप, उनके कार्य आदि का वर्णन किया गया है, लेकिन बहुत कम लोग ग्रहों से जुड़ी इन बातों के बारे में जानते हैं। ग्रहों से जुड़ी इन जिज्ञासा को शांत करने के लिए आज हम आपको बुध ग्रह के बारे में बता रहे हैं।

नक्षत्र मंडल का राजकुमार है बुध
वैसे तो बुध नवग्रहों में से एक है, लेकिन माना जाता है कि वह नक्षत्र मंडल का राजकुमार है। कारण है, चंद्रमा का पुत्र होना। चंद्रमा को आदिराज कहा गया है इसीलिए बुध को राजकुमार या राजपुत्र कहते हैं। लेकिन बुध की एक खूबी है यह अपने पिता यानी चंद्रमा से शत्रु भाव रखता है। ज्योतिष ग्रंथों में इसकी पुष्टि होती है। ये बुद्धि का अधिष्ठाता है। ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर बुध को ग्रह बनाया। वैसे तो बुध हमेशा मंगल ही करते हैं, लेकिन जब ये सूर्य की गति का उल्लंघन करते हैं तब आंधी चलने, पानी गिरने और सूखा पड़ने जैसे अनिष्ट होने की आशंका बढ़ती है।

ऐसा है बुध का स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार, बुध देवता बहुत ही सौम्य स्वभाव के हैं। ये बड़े कृपालु और परोपकारी हैं। इनके शरीर का रंग कहीं हरा और कहीं पीला बताया गया है। मत्स्यपुराण के अनुसार, इनके शरीर का रंग पीला है। इनके चार हाथ बताए गए हैं।
पीतमाल्याम्बरधर: कर्णिकारसमधुति:।
खड्गचर्मगदापाणि: सिंहस्थो वरदौ बुध:॥ 
मत्स्यपुराण- 94.4

अर्थ- बुध के शरीर का रंग पीला है। ये पीले रंग की पुष्पमाला और वस्त्र धारण करते हैं। शरीर की कांति कनेर के फूल जैसी है। इनके हाथों में तलवार, ढाल और गदा रहती है। एक हाथ वरमुद्रा में है।

ज्योतिष में महत्व
- ज्योतिष में बुध का बड़ा महत्व है। इसे चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है। 32 से 35 वर्ष की अवस्था में इसका जातक के जीवन पर प्रभाव होता है।
- किसी भी राशि पर पहुंचने के सात दिन पहले से ही यह अपना फल देना आरंभ कर देता है। संपूर्ण राशि भोगकाल तक एक जैसा ही प्रभावशाली रहता है। यह समय समय पर अस्त, मार्गी तथा वक्री होता रहता है।
- सूर्य, शुक्र, राहू तथा केतु इसके नैसर्गिक मित्र हैं जबकि चंद्रमा इसका शत्रु है। मंगल, गुरु तथा शनि से यह समभाव रखता है यानी उदासीन रहता है।
- इसकी एक विशेषता यह भी है कि जब यह शुभ ग्रह से युक्त रहता है तो शुभ तथा पाप ग्रह से युक्त हो तो अशुभ माना जाता है। अकेले बुध की गणना शुभ ग्रह में होती है।
- मनुष्य शरीर में कंधे से लेकर गर्दन तक इसका अधिकार रहता है। इसके द्वारा भाई,  मामा, चाचा, भतीजा, विद्या, बुद्धि, चातुर्य आदि के संबंध में विचार किया जाता है।
 

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