आज (15 जून, मंगलवार) को सूर्य राशि बदलकर वृष से मिथुन में प्रवेश करेगा। सूर्य के मिथुन राशि में जाने से इसे मिथुन संक्रांति कहा जाएगा।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन स्नान-दान के साथ ही सूर्य पूजा की परंपरा है। सूर्य देवता की पूजा से हर तरह के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं। साथ ही इन्हें मनोकामना पूरी करने वाला भी कहा गया है।
ज्योतिष के जनक सूर्य
सूर्यदेव की पूजा 12 महीनों में अलग-अलग नामों से की जाती है। सूर्य देवता को ही ज्योतिष का जनक माना गया है। ये सभी ग्रहों के राजा हैं। इस ग्रह की स्थिति से ही कालगणना की जाती है। दिन-रात से लेकर महीने, ऋतुएं और सालों की गणना सूर्य के बिना नहीं की जा सकती।
वेदों और उपनिषद में सूर्य
ऋग्वेद में बताया गया है कि सूर्य पूजा से पापों से मुक्ति मिलती है। बीमारियां खत्म होती हैं। सूर्य पूजा से उम्र और सुख बढ़ता है। साथ ही दरिद्रता भी दूर होती है। यजुर्वेद में कहा है कि सूर्यदेव इंसान के हर कामों के साक्षी हैं। इनसे कोई भी काम या व्यवहार नहीं छुपा होता है। इसलिए इनकी आराधना करनी चाहिए। सूर्योपनिषद के मुताबिक, सभी देवता, गंधर्व और ऋषि सूर्य की किरणों में निवास करते हैं। सूर्य भगवान की उपासना के बिना किसी का भी कल्याण नहीं होता।
आज क्या करें- क्या नहीं
- मिथुन संक्रांति पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। ऐसा न कर पाए तो घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाकर नहा लेना चाहिए। इससे तीर्थ स्नान का पुण्य मिलता है।
- इसके बाद उगते हुए सूरज को प्रणाम करें। फिर अर्घ्य दें। उसके बाद धूप-दीप दिखाएं और आरती करें। आखिरी में फिर से सूर्य देवता को प्रणाम करें और 7 बाद प्रदक्षिणा करें। यानी एक ही जगह पर खड़े होकर 7 बार परिक्रमा करते हुए घूम जाएं।
- पूजा के बाद वहीं खड़े होकर श्रद्धा के मुताबिक, दान करने का संकल्प लें और दिन में जरूरतमंद लोगों को खाना और कपड़ों का दान करें।
- हो सके तो इस दिन व्रत भी कर सकते हैं। पूरे दिन नमक खाए बिना व्रत रखने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामना पूरी होती है।
- सूर्य पूजा के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें। थाली में लाल चंदन, लाल फूल और घी का दीपक रखें। दीपक तांबे या मिट्टी का हो सकता है। अर्घ्य देते वक्त लोटे के पानी में लाल चंदन मिलाएं और लाल फूल भी डालें।
- ऊँ घृणि सूर्यआदित्याय नमः मंत्र बोलते हुए अर्घ्य दें और प्रणाम करें। अर्घ्य वाले पानी को जमीन पर न गिरने दें। किसी तांबे के बर्तन में ही अर्घ्य गिराएं। फिर उस पानी को किसी ऐसे पेड़-पौधे में डाल दें। जहां किसी का पैर न लगे।
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