Navratri 2022: नवरात्रि के 9 दिन तक रोज देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। देवी के इन रूपों की पूजा से अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं और हर तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है।
उज्जैन. इस बार शारदीय नवरात्रि (Navratri 2022) का आरंभ 26 सितंबर, सोमवार से हो रहा है, जो 4 अक्टूबर तक मनाई जाएगी। नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। शैल का अर्थ है पर्वत। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने से देवी का यह नाम पड़ा। मां शैलपुत्री की पूजा करने से महिलाओं का सौभाग्य अखंड रहता है और वैवाहिक जीवन में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए नवरात्रि के पहले दिन के शुभ मुहूर्त और देवी शैलपुत्री की पूजा विधि…
ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त
सुबह 10.10 से 11 बजे तक- वृश्चिक लग्न
सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 तक- अभिजीत मुहूर्त
शाम 4.15 से 5.40 तक- कुंभ लग्न
रात 8.45 से 10.41 तक- वृषभ लग्न
चौघड़िया मुहूर्त
सुबह 9.18 से 10.48 तक
दोपहर 03.18 से 4.48 तक
शाम 4.48 से 06.18 तक
(उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मितेश पांडे के अनुसार)
ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा (Shilputri Puja Vidhi)
- घर में कोई स्थान पूजा के लिए नियत करें और उसे गोमूत्र से साफ करें। इसके बाद लकड़ी के एक पटिए पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर देवी शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
- प्रतिमा या चित्र पर शुद्ध जल छिड़कर शुद्ध करें। इसके बाद देवी को कुंकुम का तिलक लगाएं और चावल चढ़ाएं। थोड़े से चावल भगवान गणेश का ध्यान करते हुए पटिए पर रख दें और इस पर पूजा की सुपारी रखें।
- माताजी की तस्वीर के निकट ही पानी से भरा एक कलश भी स्थापित करें। उसके ऊपर आम के पत्ते लगाएं और नारियल रखें। कलश पर कुंकुम से स्वस्तिक का निशान लगाएं।
- कलश के ऊपर मौली (पूजा का धागा) बांधें। देवी को चुनरी उढ़ाएं और घी का दीपक जलाए। इसके बाद कुंकुम, अबीर, गुलाल, फूल, फल, लौंग आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाएं। इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार देवी को भोग लगाएं।
- इसके बाद देवी के मंत्रों का जाप करें कम से कम 11 बार करें।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
ये हैं देवी शैलपुत्री (Shilputri Aarti) की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
ये है देवी शैलपुत्री की कथा (Story of Devi Shailputri)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रण भेजा, लेकिन अपने जमाई शिव को नहीं। ऐसी स्थिति में भी शिवजी की पत्नी अपने पिता के घर यज्ञ में शामिल होने के लिए आ गई। उन्होंने जब देखा कि यज्ञ में उनके पति शिव का अपमान हो रहा है तो क्रोधित होकर उन्होंने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इसके बाद उन्होंने हिमालय के यहां पुत्री रूप में दोबारा जन्म लिया। हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण ही इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
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