इन दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माघ मेले चल रहा है। इस दौरान गंगा नदी में स्नान के लिए लाखों साधु-संतों की भीड़ यहां आ रही है।
उज्जैन. हर साधु किसी न किसी अखाड़े से संबंधित जरूर होता है और अखाड़े के संतों का अपना एक विशेष तिलक होता है। तिलक देखकर भी साधु के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके भी अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। जानिए कितनी तरह के होते हैं तिलक-
शैव
शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। अमूमन अधिकतर शैव साधु इसी तरह का तिलक लगाते हैं। त्रिपुंड तिलक भगवान शिव के सिंगार का हिस्सा है, इस कारण अधिकतर शैव संन्यासी त्रिपुंड ही लगाते हैं। शैव परंपरा में जिनके पंथ बदल जाते हैं, जैसे अघोरी, कापालिक, तांत्रिक तो उनके तिलक लगाने की शैली अपने पंथ और मत के अनुसार बदल जाती है।
शाक्त
शक्ति के आराधक तिलक की शैली से ज्यादा तत्व पर ध्यान देते हैं। वे चंदन या कुंकुम की बजाय सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है। ज्यादातर शाक्त आराधक कामाख्या देवी के सिद्ध सिंदूर का उपयोग करते हैं।
वैष्णव
वैष्णवों में तिलक के सबसे ज्यादा प्रकार मिलते हैं। वैष्णव पंथ राम मार्गी और कृष्ण मार्गी परंपरा में बंटा हुआ है। इनके भी अपने-अपने मत, मठ और गुरु हैं, जिनकी परंपरा में वैष्णव तिलकों में इतने प्रकार हैं। वैष्णव परंपरा में 64 प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख तिलकों की जानकारी इस प्रकार है-
लालश्री तिलक- इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।
विष्णु स्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भौहों के बीच तक आता है।
रामानंद तिलक- विष्णु स्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।
श्यामश्री तिलक - इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
अन्य तिलक
अन्य प्रकार के तिलकों में गणपति आराधक, सूर्य आराधक, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। इनकी अपनी-अपनी उपशाखाएं भी हैं, जिनके अपने तरीके और परंपराएं हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक भी लगाते हैं।