मूल नक्षत्र में जन्में लोगों पर रहता है राहु और गुरु का प्रभाव, जानिए इनके नेचर से जुड़ी खास बातें

किसी भी बच्चे का जन्म किस नक्षत्र में हुआ है, इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव पर भी पड़ता है।

उज्जैन. जब किसी बच्चे के जन्म मूल नक्षत्र में होता है तो कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है। नक्षत्र मंडल में मूल का स्थान 19वां है। अश्विनी, अश्लेषा, मघा, जयेष्ठा, मूल, रेवती ये सभी मूल नक्षत्र कहलाते हैं। आगे जानिए मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों का स्वभाव कैसा होता है…

1. अगर बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो सबसे पहले ये देखें कि बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है और किस कारण से उसको समस्या हो सकती है। पिता और माता की कुंडली जरूर देखें कि उनका और उन पर इस नवजात के जन्म का क्या प्रभाव है।
2. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मुला, मघा और अश्विनी के प्रथम चरण का बच्चा पिता के लिए, रेवती के चौथे चरण और रात्रि का नवजात माता के लिए, ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का नवजात पिता तथा आश्लेषा के चौथे चरण संधिकाल में जन्म हो तो स्वयं के लिए हानिकारक होता है।
3. मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक शुभ प्रभाव में है तो वह सामान्य बच्चों से कुछ अलग विचारों वाला होता है यदि उसे सामाजिक तथा पारिवारिक बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो ऐसा बालक जिस भी क्षेत्र में जाएगा एक अलग मुकाम हासिल करता है।
4. ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी, नित्य नव चेतन कला अन्वेषी होते हैं। यह इसके अच्छे प्रभाव हैं। अगर वह अशुभ प्रभाव में है तो इसी नक्षत्रों में जन्मा बच्चा क्रोधी, रोगी, र्इष्यावान होगा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
5. मूल नक्षत्र में जन्में लोग आमतौर पर लक्ष्य केंद्रित होते हैं तथा कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी तब तक प्रयास करते रहते हैं, जब तक या तो ये अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें या फिर इनकी सारी ऊर्जा समाप्त न हो जाए।
6. मूल नक्षत्र का स्वामी केतु है, वहीं राशि स्वामी गुरु है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति पर केतु और गुरु का प्रभाव जीवनभर रहता है। केतु जहां नकारात्मक घटनाओं को जन्म देता हैं, वहीं गुरु जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है।
7. मूल नक्षत्र के लोग अपने विचारों पर दृढ़ होते हैं और इनमें निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल होते हैं।
8. ये खोजी बुद्धि के होते हैं। शोधकार्य में सफलता मिल सकती है। ये कुशल और निपुण व्यक्ति होने के साथ- साथ उत्कृष्ट वक्ता भी होते हैं।
9. ये डॉक्टर या उपचारक भी हो सकते हैं। ये भावुक प्रवृत्ति के होने के कारण दयालु और सभी का भला करने वाले भी होते हैं।
10. यदि केतु और गुरु की स्थिति कुंडली में सही नहीं है तो ये बेहद जिद्दी किस्म के हो जाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। इनकी विनाशकारी कार्यों में रुचि बढ़ जाती है।

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