सूर्य की शुभ स्थिति से जीवन में यश कीर्ति और समृद्धि प्राप्त होती है, तो वहीं कमजोर सूर्य के कारण दरिद्रता, सम्मान हानि और खराब स्वास्थ्य का सामना करना पड़ता है।
उज्जैन. सूर्य को ज्योतिष में ग्रहों के राजा की संज्ञा दी गई है। सूर्य को पिता, राज्य, राजकीय सेवा, मान सम्मान, वैभव से जोड़कर देखा जाता है। इसके साथ ही मनुष्य के शरीर में पाचन तंत्र, आंखों और हड्डियों का संबंध सूर्य से होता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से मुख्य रूप से तीन तरह के शुभ योग बताए गए हैं। ये योग व्यक्ति को अपार मान-प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। जानिए इस शुभ योगों के बारे में…
पहला शुभ योग
- कुंडली में चंद्रमा, राहु और केतु को छोड़कर जब कोई भी ग्रह सूर्य के अगले घर में स्थित होता है तब वेशि योग का निर्माण होता है।
- इसके साथ ही कुंडली में सूर्य पाप ग्रहों से मुक्त और मजबूत स्थिति में होना भी आवश्यक है।
- इनका कुछ समय कठिनाई से बीतता है लेकिन इस योग के बनने पर व्यक्ति को आगे चलकर आने वाले समय में धन संपत्ति और यश-कीर्ति की प्राप्ति होती है।
दूसरा शुभ योग
- जिस तरह से सूर्य के अगले घर में किसी ग्रह के होने पर वेशि योग बनता है उसी तरह से सूर्य के पिछले घर में किसी ग्रह के होने पर वाशि योग का निर्माण होता है। लेकिन यहां पर भी चंद्रमा, राहु या केतु ग्रह नहीं होने चाहिए।
- इसके साथ ही यह योग तभी शुभ फल प्रदान करता है जब सूर्य पापक्रान्त न हो। जब किसी किसी की कुंडली में इस योग का निर्माण होता है तो व्यक्ति को बुद्धि, ज्ञान और धन की प्राप्ति होती है।
- इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कई विदेश यात्रा के योग बनते हैं और व्यक्ति का जीवन सुखमय रहता है। इस योग के बनने पर व्यक्ति घर से दूर रहकर खूब सफलता प्राप्त करता है।
तीसरा शुभ योग
- चंद्रमा, राहु या केतु के अलावा जब सूर्य के पहले और पिछले दोनों भाव में शुभ ग्रह उपस्थित हों तो उभयचारी योग का निर्माण होता है।
- जब किसी जातक की कुंडली में यह योग बनता है तब उसे अपने जीवन में ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं। वह व्यक्ति अपने क्षेत्र में खूब प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
- इस योग के बनने पर व्यक्ति को राजनीति और प्रशासन में बड़े पदों की प्राप्ति होती है। इस योग के प्रभाव को और भी ज्यादा शुभ बनाने के लिए रविवार को व्रत करना चाहिए।
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