Utpanna Ekadashi 2021 30 नवंबर को इस विधि से करें व्रत और पूजा, जानिए महत्व

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2021) कहते हैं। इस बार ये एकादशी 30 नवंबर, मंगलवार को है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी का व्रत करता है उस पर भगवान विष्णु जी की असीम कृपा बनी रहती है।

Asianet News Hindi | Published : Nov 5, 2021 6:45 PM IST

उज्जैन. पौराणिक शास्त्रों में सभी व्रतों में एकादशी व्रत को महत्वपूर्ण बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी एक देवी हैं जिनका जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु जी से हुआ था। मान्यता है कि यह एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्रत करने वालों के सभी पाप मिट जाते हैं।

उत्पन्ना एकादशी का महत्व
मान्यता है कि जो मनुष्य उत्पन्ना एकादशी का व्रत पूरे विधि- विधान से करता है, वह सभी तीर्थों का फल व भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त करता है। व्रत के दिन दान करने से लाख गुना वृद्धि के फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति निर्जल संकल्प लेकर उत्पन्ना एकादशी व्रत रखता है, उसे मोक्ष व भगवान विष्णु की प्राप्ति होती है। ये व्रत रखने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान व दान आदि करने से भी ज्यादा पुण्य मिलता है।

इस विधि से करें एकादशी का व्रत…
- जो लोग उत्पन्ना एकादशी का व्रत करना चाहते हैं, वे सभी दशमी तिथि (29 नवंबर, सोमवार) को शाम का भोजन करने के बाद अच्छी प्रकार से दांत साफ करें, जिससे अन्न का थोड़ा भी अंश मुंह में न रह जाएं। इसके बाद कुछ भी नहीं खाएं, न अधिक बोलें, न क्रोध करें।
- एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। जिस प्रकार का व्रत करना चाहते हैं वैसा ही संकल्प लें जैसे एक समय फलाहार करना चाहते हैं या निर्जला (बिना कुछ खाए-पीए) व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें।
- इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें और रात को दीपदान करें। रात में सोए नहीं। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा मांगनी चाहिए।
- अगले दिन यानी 1 दिसंबर, बुधवार को सुबह फिर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें व योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देने के बाद ही स्वयं भोजन करें। धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है। ये व्रत करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

 

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