Ravi Pradosh June 2022: 12 जून को शिव और सिद्ध योग में किया जाएगा रवि प्रदोष व्रत, ये है विधि और शुभ मुहूर्त

धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है। ये तिथि अलग-अलग वारों के साथ मिलकर विभिन्न योग बनाती है।

उज्जैन. इस बार 12 जून, रविवार को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी है। रविवार को प्रदोष तिथि होने से ये रवि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh June 2022) कहलाएगा। इस दिन सुबह और शाम को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाएगी, जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। ज्योतिषियों के अनुसार, इस दिन शिव, सिद्ध और रवियोग होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, रवि प्रदोष का व्रत करने से उत्तम स्वास्थ्य, आरोग्य और लंबी उम्र प्राप्त होती है। साथ ही धन, बल, संतान, सुख, सौभाग्य आदि भी मिलते हैं। 

ये है पूजा के शुभ मुहूर्त (Ravi Pradosh June 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 12 जून, शनिवार की रात लगभग 03.23 से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 12 जून, रविवार की रात 12.30 तक रहेगी। 12 जून की शाम को 07.23 से रात 09.23 तक प्रदोष काम में पूजा का शुभ मुहूर्त है।

इस विधि से करें शुक्र प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh June 2022 Puja Vidhi)
12 जून, रविवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद प्रदोष व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत रखें। संभव हो तो कुछ भी न खाएं और संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। शाम के ऊपर बताए गए शुभ मुहूर्त में शिव मंदिर में जाकर या घर पर ही शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पूजा करें। शिवलिंग का अभिषेक स्वच्छ जल से करें इसके बाद गाय के दूध से स्नान करवाएं। सफेद चंदन का लेप भी लगाएं। चावल, शमी का पत्ता, सफेद फूल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, आदि चीजें अर्पित करें।  इस दौरान ऊं नमः शिवाय बोलते रहें। इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें। घी का दीपक जलाएं और भोलेनाथ की आरती करें। इस प्रकार की शिवजी की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥  
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। 
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥


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