
2 अक्टूबर को इस बार दशहरा मनाया जा रहा है। दशहरा यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। इस दिन देशभर में रावण दहन के साथ खुशियां मनाई जाती हैं और स्वादिष्ट व्यंजनों का भी खास महत्व होता है। हर पर्व-त्योहार की तरह दशहरे से भी कुछ खास पकवान जुड़े हुए हैं, और उनमें से एक जलेबी है। इस दिन लोग जलेबी खाना पसंद करते हैं। कई घरों से इसके बनने की खुशबू आती है। बाजार में भी लोग इसे खरीद कर खाते देखें होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा क्यों निभाई जाती है? इसके पीछे की कहानी क्या है। तो चलिए बताते हैं, जलेबी और श्रीराम का कनेक्शन।
कहा जाता है कि भगवान राम को जलेबी बेहद पसंद थी। प्राचीन शास्त्रों में इसे शष्कुली कहा गया है, जो बेसन से बनाकर घी में तली जाती थी। मान्यता है कि जब भगवान राम रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे तो उनके स्वागत में उन्हें प्रिय शष्कुली परोसी गई। तभी से विजयदशमी पर जलेबी खाने की परंपरा शुरू हुई।
प्रसिद्ध शेफ संजीव कपूर के अनुसार, दशहरा जलेबी, फाफड़ा और श्रीखंड जैसे व्यंजनों के बिना अधूरा माना जाता है। खासकर गुजरात में दशहरे पर फाफड़ा-जलेबी का कॉम्बिनेशन एक सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।
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जलेबी का गोल और सर्पिल आकार जीवन चक्र और अनंतता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही यह मिठास और समृद्धि का प्रतीक भी है, जो विजय के साथ हमारे जीवन में आती है।
दशहरे के समय मौसम बदलने लगता है, सुबह-शाम हल्की ठंड महसूस होती है। इस मौसम में तैलीय और मीठे व्यंजन शरीर को एनर्जी और गर्मी देते हैं। इसलिए जलेबी खाना न सिर्फ परंपरा है, बल्कि मौसमी बदलाव में शरीर को ताकत देने का भी एक तरीका माना जाता है।
नवरात्रि के 9 दिनों तक भक्त साधना और संयम का पालन करते हैं। दशहरा उस तपस्या का समापन का प्रतीक है। इसलिए इस दिन मीठा उत्सव मनाया जाता है। जलेबी खाने की परंपरा आज भी लोगों को याद दिलाती है कि बुराई पर अच्छाई हमेशा भारी परड़ता है। हमें अपने जीवन में निगेटिविटी को हराकर सुख और मिठास की ओर बढ़ना चाहिए।
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