कबूतरों की वजह से दिल्लीवालों को इस बीमारी की खतरा,जानें लक्षण और ट्रीटमेंट, रहे पक्षियों से दूर

दिल्ली में कबूतरों की बढ़ती संख्या के कारण यहां की आबादी के फेफड़े संक्रमित हो रही है। जिसे बर्ड ब्रीडर्स लंग्स की बीमारी के रूप में जाना जाता हैं। कबूतर सड़क, मोहल्ले और लोगों के बालकनी में घूमते हैं और पूरे शहर में खतरा पैदा कर रहे हैं।

हेल्थ डेस्क.पक्षियों में कबूतर को शांति का प्रतीक माना जाता है। दिल्ली के किसी ना किसी कोने में आप कबूतरों को दाना देते हुए लोगों को देख सकते हैं। लेकिन इन्हीं कबूतरों के करीब रहने पर आपको कई जानलेवा बीमारियां (Diseases Caused by Pigeon) हो सकती हैं। दिल्ली के लोग कबूतरों से होने वाली खतरनाक बीमारी से अंजान हैं। आइए बताते हैं उस बीमारी के बारे में ताकी उससे वक्त रहते सावधान हो सकते हैं।

दरअसल कबूतर यहां-वहां चरते फिरते हैं। वो जहां-तहां बीट यानी मल त्याग करते हैं। उनका मल ही आपको बीमार कर सकता हैं। डॉक्टरों का भी कहना है कि कबूतर की बीट में ऐसे इंफेक्शन होते हैं जो आपके फेफड़ों को खासा नुकसान पहुंचाते हैं। उन लोगों को इस बीमारी की चपेट में आने की आशंका ज्यादा होती है जो पक्षियों को खिलाते हैं, उन्हें पालते हैं या फिर पालतू जानवरों के दुकान के कर्मचारी शामिल हैं। ये लोग पक्षियों के बीट के संपर्क में बार-बार आते हैं।

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बर्ड ब्रीडर का फेफड़ा या बर्ड फैनसीयर रोग, जिसे एवियन हाइपरसेंसेटीव न्यूमोनिटिस के रूप में भी जाना जाता है, एक श्वसन रोग है जो पक्षियों की बीट, पंखों और धूल के संपर्क में आने के कारण होता हैं। हाइपर सेंसेटीव न्यूमोनिटिस फेफड़े के पैरेन्काइमा (इंटरस्टीशियल लंग डिजीज- ILD) का एक प्रकार का रोग है,एक हवाई प्रतिजन के बार-बार सांस लेने के कारण फेफड़ों के निशान और फाइब्रोसिस का कारण बनता है। कई पर्यावरणीय कारक इससे जुड़े हैं अतिसंवेदनशीलता न्यूमोनिटिस का विकास, और उनमें से एक पक्षियों के संपर्क में होता है।

बर्ड ब्रीडर लंग्स की बीमारी के कारण

डॉक्टर की मानें तो बर्ड ब्रीडर के फेफड़ों की बीमारी एवियन एंटीजन के इनहेलेशन के कारण होती हैं। जो अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (immune response ) पैदा कर सकती हैं। एंटीजन पक्षियों के पंखों,बीट और धूल में पाए जाते हैं।

बर्ड ब्रीडर लंग्स की बीमारी के लक्षण

बर्ड ब्रीडर के फेफड़ों की बीमारी के लक्षणों में सांस की तकलीफ, खांसी, बुखार, सीने में जकड़न और थकान शामिल हैं। लक्षण आमतौर पर कई महीनों से लेकर वर्षों तक विकसित होते हैं और ट्रीटमेंट करना मुश्किल हो सकता हैं। इससे फेफड़े धीरे-धीरे डैमेज होने लगते हैं। जब तक इस बीमारी के बारे में पता चलता है फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंच गया होता है। जिससे फेफड़े का करना बंद कर देते हैं। ऐसे रोगी अपने रक्त में सामान्य ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखने के लिए सिलेंडर या कंसंट्रेटर जैसे बाहरी स्रोतों से ऑक्सीजन पर निर्भर हो सकते हैं।

बर्ड ब्रीडर लंग्स की बीमारी का इलाज

पक्षियों की बीट से होने वाली बीमारी को रोकने का सबसे उपयुक्त तरीका पक्षियों को दाना डालना और प्रजनन करना बंद करना है। जो लोग पक्षियों के साथ काम करते हैं या पालतू रूप से उन्हें पालते हैं उन्हें बर्ड ब्रीडर लंग्स बीमारी के बारे में पता होना चाहिए। ताकि वो उचित सावधानियां बरत सकें। जैसे सुरक्षात्मक उपकरण पहनना और नियमित रूप से पक्षी पिंजरों और आसपास के क्षेत्रों की सफाई करें। यह एवियन एंटीजन के संपर्क को रोकने या कम करने में मदद कर सकती है।

किसी व्यक्ति में यह बीमारी विकसित होने की स्थिति में, उन्हें पक्षियों और बीट के संपर्क में आने से बचना चाहिए। बीमारी के शुरुआत में ट्रीटमेंट हो सकता हैं। कुछ मामलों में, कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसी दवा को फेफड़ों के सूजन को कम करने के लिए दिया जा सकता है। गंभीर मामलों में फेफड़े के प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है।

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