एसोफैगल कैंसर कहीं बना ना ले आपको अपना शिकार, तुरंत बदल दें ये 4 आदतें

हेल्थ डेस्क. एसोफैगल एक प्रकार का कैंसर है जो एसोफैगस को प्रभावित करता है। इसे गले का कैंसर कहा जाता है। शुरुआती पहचान (esophageal cancer ke lakshan ) और ट्रीटमेंट होने पर इससे बचा जा सकता है। इस खतरनाक कैंसर के जोखिम को हमारी कुछ आदतें बढ़ाती है।

Nitu Kumari | Published : Feb 11, 2023 3:49 AM IST

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गर्म पानी पीने से लेकर एक्सरसाइज पर ध्यान नहीं देने तक जैसी कुछ आदतें हैं जो एसोफैगल कैंसर के जोखिम को बढ़ा रही है। इन आदतों के बारे में जानने से पहले इस कैंसर के बारे में जानते हैं। सबसे पहले यह जान लें कि कैंसर के 200 से अधिक प्रकार हैं जो शरीर के अंग पर निर्भर करता है। ट्रीटमेंट के बिना कैंसर शरीर के एक हिस्से से शुरू होकर अन्य अंगों में फैल सकता है। जो मौत की वजह बन जाती है। 

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क्या होता है एसोफैगल कैंसर 

हालांकि मेडिकल क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के प्रगति की वजह से कैंसर को शुरुआती स्टेज में पकड़ लिया जाता है जिसकी वजह से कैंसर पेशेंट के ऊपर मौत का जोखिम कम हो गया है। उनकी जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हुई है। मानव शरीर में भोजन को पेट तक ले जाने का काम आहार नली करती है। जिसे एसोफैगस कहते हैं। इसमें जब कैंसर होता है तो उसे एसोफैगल कैंसर कहते हैं। यह कैंसर तब होता है जब एसोफेजेल उत्तक (esophageal tissue) में असामान्य कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती है। जिसकी वजह से कोशिकाएं एक ट्यूमर बनाती हैं। जो कैंसर होता है।
 

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एसोफैगल कैंसर के प्रकार

एसोफैगल कैंसर दो प्रकार के होते हैं - एडेनोकार्सीनोमा (कैंसर एसोफैगस के नीचे शुरू होता है) और स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (कैंसर ऊपरी एसोफैगस से उत्पन्न होता है)। इस प्रकार का कैंसर महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक आम है। एसोफैगल कैंसर में जीवनशैली कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और धूम्रपान, अल्कोहल, क्रोनिक एसिड रिफ्लक्स, गैस्ट्रोसोफेजियल रीफ्लक्स बीमारी (जीईआरडी) जैसी आदतें एसोफेजेल कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

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एसोफैगल कैंसर के लक्षण
एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) के शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।  लेकिन जब निगलने में कठिनाई होने लगती है तो लोग इसे नोटिस करते हैं। कैंसर ट्यूमर जैसे-जैसे बढ़ता है यह भोजन नली के मुंह को संकुचित करता है। जिससे कोई भी चीज निगलने में कठिनाई होती है, दर्द होता है।
-गले या पीठ में दर्द
-ब्रेस्टबोन के पीछे, या कंधे के ब्लेड के बीच दर्द
-पेट में जलन होना
-खून की उल्टी या खांसी होना
-आवाज बंद होने लगना
-खांसी लगातारा आना
-बिना कारण वजन कम होना

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एसोफैगल कैंसर ट्रीटमेंट
एसोफैगल कैंसर का पता बेरियम स्वेलो,एसोफैगोस्कोपी,बायोप्सी के जरिए लगाया जाता है। इसके बाद ट्रीटमेंट सर्जरी, कीमोथेरपी, रेडिएशन थेरेपी के जरिए किया जाता है। टारगेट ड्रग थेरेपी  और इम्यूनोथेरेपी  से भी इसका इलाज किया जाता है। डॉक्टर तय करता है कि पेशेंट को किस तरीके से ठीक किया जा सकता है।

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1. डाइट
डाइट में कुछ चीजें ऐसी होती है तो इस कैंसर के जोखिम को हाई करती है। जैसे प्रोसेस्ड मीट खाने से एसोफैगल कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए प्रोसेस्ड फूड्स से दूरी बना लेनी चाहिए। आहार में ताजे फल, सब्जियों को शामिल करके इस कैंसर से बचा जा सकता है।

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2. बहुत गर्म तरल पदार्थ पीना
ज्यादा गर्म पानी, चाय या कॉफी पीना भी एसोफैगल कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।हाल ही के एक अध्ययन में गर्म पानी, चाय और कॉफी जैसे गर्म पेय पदार्थों के सेवन और एसोफैगल कैंसर के खतरे के बीच संबंध पाया गया है।
 

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3. तंबाकू-सिगरेट का सेवन
तम्बाकू और शराब का एक साथ सेवन भोजन नली सहित अधिकांश कैंसर के लिए घातक मिश्रण है। जितने लंबे वक्त तक इंसान इसका सेवन करता है उतना ही उसके ऊपर एसोफैगल कैंसर समेत अन्य कैंसर के होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए तुरंत इस आदत को बदल देना चाहिए।

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4.मोटापा
जो लोग अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं उन्हें एसोफेजेल कैंसर होने का अधिक खतरा होता है।मोटे लोगों में गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स होने की संभावना होती है।गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) वाले लोगों को अन्नप्रणाली के कैंसर होने का थोड़ा अधिक जोखिम होता है। मोटापा कम करने के लिए जरूरी है कि आप नियमित एक्सरसाइज करें। अच्छी डाइट लें। 

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