एक्यूपंचर चिकित्सा पद्धति क्या है, कैसे काम करती है, किन रोगों का होता है इलाज? जानिए सब कुछ

एक्यूपंक्चर चिकित्सा की एक प्राचीन प्रणाली है। यह प्रणाली मूलतः चीन में प्रचलित घाव भरने की प्रक्रिया पर आधारित हैं जो कि आजकल जापान, रुस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका व पश्चिमी देशों में भी काफी लोकप्रिय है। एक्यूपंक्चर दो विभिन्न शब्दों से बना है।

Rajkumar Upadhyay | Published : Apr 25, 2023 9:02 AM IST / Updated: Apr 25 2023, 03:11 PM IST

डॉ. जी. पार्थ प्रतिम। एक्यूपंक्चर चिकित्सा (Acupuncture) की एक प्राचीन प्रणाली है। यह प्रणाली मूलतः चीन में प्रचलित घाव भरने की प्रक्रिया पर आधारित हैं जो कि आजकल जापान, रुस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका व पश्चिमी देशों में भी काफी लोकप्रिय है। एक्यूपंक्चर दो विभिन्न शब्दों से बना है। 'एक्यू' एवं 'पंक्चर'। एक्यू का अर्थ है-सुइया एवं पंक्चर का अर्थ है चुभोना। एक्यूपंक्चर चिकित्सा में सुइयों को त्वचा के जिस बिन्दुओं पर चुभोया जाता है, उन बिन्दुओं को एक्यूपंक्चर बिन्दु कहते है। यह बिन्दुएं नाड़ी के अंतिम सिरे के पास होती है, जो कि एक-दूसरे से विभिन्न चैनल या मैरिडियन के द्वारा जुड़े होते हैं। यह चैनल या मैरिडियन वह रास्ता है, जिसके आस-पास शरीर के किसी रोगग्रस्त भाग की चिकित्सा के लिए एक्यूपंक्चर (Acupuncture) बिन्दु केन्द्रित होता है।

एक्यूपंक्चर की कार्य प्रणाली

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सुई को त्वचा के किसी विशेष भाग पर चुभोने के दो प्रभाव होते है। पहला यह नाड़ी को उत्तेजित करती है। जो मस्तिष्क तथा मेरुरज्जा द्वारा विद्युत आवेश को रोगग्रस्त क्षेत्र में प्रवाहित करती है। उत्तेजित होने पर कुछ नाड़ियां आंतो की क्रिया को बढ़ा देती है तो कुछ आंतो की क्रिया को घटा देती है। यह सिद्धांत हृदय की गति को बढ़ाने में तथा घटाने में, रक्त वाहिनियों के फैलने तथा सिकुड़ने में, आंसुओं के बहने में, हारमोन के स्त्रावित होने में लागू होते है। दूसरा प्रभाव यह है कि ये सुइयां मस्तिष्क एवं पीयूष ग्रंथि को रासयनिक पदार्थ स्त्रवित करने के लिए उत्तेजित करती है।

दर्द से मुक्ति दिलाने की स्वयं चलित प्रक्रिया

यह रासायनिक पदार्थ-'एनकिफिलिन/एन्डोरफिन, सिरोटोनिन' इत्यादि स्रवित करती है। यह रासयनिक पदार्थ रक्त में आत है और रक्त द्वारा एक स्थान से शरीर के दूसरे स्थान पर पहुँचाते है। यह शरीर के विभिन्न अंगों को दर्द से मुक्ति दिलाने की स्वयं चलित क्रिया है। जीवन कार्य एवं शारीरिक कार्य के लिए ऊर्जा का बहाव बिना किसी रुकावट के सरलता से होता है। जो कि मनुष्य को जीवित रखने के लिए आवश्यक है। अगर यह ऊर्जा कही रुक जाये या किसी भी कारण से बाधित हो जाय तो परिणामस्वरुप रोग की उत्पत्ति होने लगती है। एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ शरीर के उस सम्बन्धित भाग को उत्तेजित करके ऊर्जा और रक्त के बहाव को सामान्य एवं संतुलित बनाते हैं।

एक्यूपंक्चर चिकित्सा का समय एवं प्रभाव

साधारणतः सुई एक दर्द की अनुभूति कराने वाला शब्द है। जो सुइयां इस चिकित्सा में प्रयोग की जाती है, वे विशेष प्रकार से सोना, चांदी, ताम्र एवं स्टेनलेस स्टील से बनायी जाती है। मुख्य रुप से चांदी की सुईयां प्रयुक्त की जाती है। इनकी गोलाई धागे के आकार की होती है न तो यह रक्त को बहाती है न तो दर्द करती है। प्रयुक्त सूईयां शरीर के अंग के अनुुसार विभिन्न प्रकार की सुइयां ली जाती है जो आधे 'चुन' (इंच) से लेकर चार 'चुन' तक होती है। साधारणतः यह नियम है कि जितना अधिक पुराना रोग है, इलाज में उतना अधिक समय लगता है। प्रायः रोगी को 10-12 सीटिंग में आराम मिलना शुरु हो जाता है। तब रोगी को प्रतिदिन के बजाय एक दिन छोड़कर बुलाया जाता है। इस प्रकार रोगमुक्त होने की दशा में धीरे-धीरे चिकित्सा बंद कर दी जाती है।

एक्यूपंचर चिकित्सा से व्यक्ति की शारीरिक ऊर्जा बढ़ती है

इस चिकित्सा का प्राथमिक प्रभाव यह होता है कि इससे व्यक्ति की शारीरिक ऊर्जा बढ़ती है और वह प्रसन्नचित्त रहने लगता है एवं तनावमुक्त हो जाता है। यह अक्सर देखा गया है कि तनावग्रस्त रोगी चिकित्सा से ऊर्जा प्राप्त करता है तथा आराम प्राप्त करता है। जब इस प्रक्रिया को एक समय तक दोहराते हैं तब रोगी रोगमुक्त होने लगता है। इस प्रकार रोगी स्वस्थ होने लगता है। इस चिकित्सा पद्धति का सबसे सकारात्मक तथ्य यह है कि इस चिकित्सा विज्ञान का कोई दुष्प्रभाव नही है। परन्तु इस चिकित्सा में कुछ सावधानियां बरतना अनिवार्य होता है, जैसे यह चिकित्सा खाली पेट नही करानी चाहिए।

इन रोगों का सफलतापूर्वक इलाज

महिलाओं को मासिक धर्म के समय एवं गर्भकाल में यह चिकित्सा नही लेनी चाहिए। एक्यूपंक्चर (Acupuncture) एक दर्द रहित एवं सुरक्षित चिकित्सा पद्वति है। एक्यूपंक्चर चिकित्सा में विभिन्न तकनीकी भी प्रयुक्त होने लगी है। जिससे चिकित्सा के प्रभाव में वृद्धि होती है। यह है -इलेक्ट्रोस्टीमुलेटर, पल्सर, लेजर एक्यूपंक्चर, टेन्स, मोकिस-बुशन इत्यादि। इस चिकित्सा पद्धति द्वारा वैसे तो सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज किया जाता है पर मुख्य रुप से दिमाग एवं नाड़ी से सम्बन्धित रोग जैसे लकवा, अनिद्रा, डिप्रेशन, मंदबुद्धि, पार्किन्संस, एल्जाइमर, नाड़ी दौबिल्य, हाथ का कॅंपकॅंपाना आदि का सफल इलाज संभव है। 

इसके अलावा सभी दर्द जन्य बीमारियां जैसे सरवाईकल स्पाण्डीलाईटिस, स्लिप-डिस्क, शियाटिका, कमर दर्द, माईग्रेन, फ्रोजन शेल्डर, टेनिस एलबो, ट्राइजेमिनल न्यूरालजिया, पेरिफेरल न्यूराईटिस आदि इसके अलावा उच्च रक्तचाप, त्वचा रोग तथा बच्चों के मानसिक बीमारियों जैसे सेरेब्रल पैल्सी, आटिज्म आदि में भी बेहतर रिजल्ट मिलता है। एक्यूपंक्चर एक दर्दरहित, दवा रहित, साईड इफेक्ट रहित चिकित्सा पद्वति बनकर उभरी है। जिसे भारत सरकार ने भी स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति के रुप में मान्यता भी प्रदान कर दिया है।

—डॉ. जी. पार्थ प्रतिम, (डी.ए.एससी,एमडी एक्यूपंक्चर) एक्यूपंक्चर स्पेशलिस्टस एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष हैं।

 

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