Janmashtami Cucumber Ritual: कृष्ण जन्माष्टमी पर खीरा क्यों चढ़ाया जाता है? क्या जानते हैं वजह

Published : Aug 12, 2025, 06:26 PM IST
How Cucumber Ritual Performed On Janmashtami and What is the significance

सार

Cucumber Ritual on Janmashtami:  जन्माष्टमी पर खीरा काटने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय का प्रतीक मानी जाती है। इसे करने का सही तरीका क्या है यहां जानें। 

जन्माष्टमी का त्योहार पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व सिर्फ उपवास, मटकी फोड़ और झांकी सजाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई पारंपरिक रीति-रिवाज भी निभाए जाते हैं। इनमें से एक है जन्माष्टमी पर खीरा काटना। आपने अक्सर देखा होगा कि मध्यरात्रि में जन्मोत्सव के दौरान भगवान को खीरा चढ़ाया जाता है और फिर उसे काटकर बांटा जाता है। लेकिन आखिर क्यों? आइए जानते हैं इस रीचुअल की असली वजह, जो धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक पहलू भी रखती है।

जन्माष्टमी की पौराणिक मान्यता 

हिंदू शास्त्रों में खीरे का संबंध जन्म और प्रजनन से जोड़ा गया है। कहा जाता है कि खीरे में बीज होते हैं और ये बीज जीवन के चक्र का प्रतीक माने जाते हैं। जन्माष्टमी पर खीरा काटने का अर्थ जीवन का जन्म और नवजीवन की शुरुआत है। जैसे खीरे में अनगिनत बीज होते हैं, वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि और संतान सुख बढ़ता है। साथ ही बीज का संरक्षित रहना वंश वृद्धि और परिवार की ग्रोथ का साइन है।

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जन्माष्टमी पर खीरा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण 

जन्माष्टमी आमतौर पर भाद्रपद मास में आती है, जब मौसम बरसात से बदलकर ठंड की ओर बढ़ रहा होता है। इस समय शरीर में गर्मी और नमी का संतुलन बिगड़ सकता है। ऐसे खीरा ठंडा होता है यह शरीर का तापमान कम करता है और डिहाइड्रेशन से बचाता है। उपवास के बाद खीरा खाना पाचन को आसान बनाता है और गैस्ट्रिक समस्याओं से बचाता है। वहीं खीरा डिटॉक्सिफिकेशन में मदद करता है। इसमें पानी की मात्रा 95% तक होती है, जिससे शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं।

भगवान कृष्णा के जन्म का प्रतीक खीरा काटना 

दरअसल, उस पौराणिक प्रसंग से जुड़ा है जिसमें कहा गया है कि श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में कारागार में हुआ और उन्हें सुरक्षित गोकुल पहुंचाया गया। खीरे का कठोर बाहरी आवरण और अंदर का मीठा-रसदार हिस्सा उस सुरक्षा और दिव्यता का प्रतीक है, जिसमें कठिन परिस्थितियों के बीच भी मधुरता और जीवन छिपा रहता है। 

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जन्माष्टमी की संस्कृति और परंपराएं 

उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में जन्माष्टमी पर खीरा काटना जरूरी रीति माना जाता है। कई जगह नवविवाहित जोड़े या निःसंतान दंपति विशेष पूजा कर खीरा अर्पित करते हैं, ताकि उन्हें संतान सुख प्राप्त हो। वहीं पूजा के बाद खीरा काटकर प्रसाद में बांटा जाता है, जिसे खाने से घर में सुख-शांति आने की मान्यता है।

खीरा काटने का आध्यात्मिक मैसेज 

खीरा काटने का रिवाज हमें यह भी सिखाता है कि बाहरी परिस्थितियां कैसी भी हों, भीतर शुद्धता, मधुरता और जीवनदायिनी ऊर्जा बनाए रखनी चाहिए। यह भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की ही तरह है, जो विपरीत हालात में भी आनंद, प्रेम और करुणा का संदेश देते हैं।

जन्माष्टमी पर खीरा कैसे काटा जाता है?

  1. एक ताजा खीरा चुनें जिसका डंठल (stem) सही सलामत हो।
  2. इसे अच्छे से धोकर उस पर हल्दी या कुमकुम से निशान लगाएं।
  3. खीरे को पानी से भरे एक बर्तन में या पूजा की थाली में रखें।
  4. रात 12 बजे जैसे ही श्रीकृष्ण का जन्म समय होता है, भजन, घंटी और शंख की ध्वनि के साथ पूजा करें।
  5. एक सिक्के की मदद से खीरे को लंबाई में (वर्टिकली) काटें।
  6. खीरे को अन्य भोग के साथ श्रीकृष्ण को अर्पित करें।
  7. बाद में इसे प्रसाद के रूप में सभी में बांट दें।

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