Ram Navami 2024: सफलता और खुशहाली का जीवन में होगा वास, जब श्रीराम से सीखें ये 5 गुण

भगवान राम सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि वो जीवन जीने का तरीका हैं। रिश्ते निभाना हो या फिर धर्म के मार्ग पर चलना या वचन निभाना, कोई उनसे सीखे।

Nitu Kumari | Published : Apr 13, 2024 8:19 AM IST

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राम का जन्मदिन 17 अप्रैल को पूरे देश भर में मनाया जाएगा। श्री राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुई थी। इसलिए इस तिथि को राम नवमी के रूप में मनाई जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का उल्लेख सिर्फ भगवान के रूप में नहीं किया जाता है, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में भी किया जाता है जो उत्तम और आदर्श से भरे थे। रिश्ते निभाने से लेकर वचन निभाने तक की कला इंसान को उनसे सिखनी चाहिए। कौशल्या नंदन ने अपने शत्रु का भी मान रखा। स्वयं रावण के ज्ञानी मानने में कोई गुरेज नहीं किया। तो चलिए बताते हैं अगर हम राम के कुछ बातों को जीवन में आत्मसात कर लें तो सफल इंसान होने से कोई रोक नहीं सकता है।

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राम की तरह सत्यवादी

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में प्रभु श्रीराम में 16 गुण बताए गए हैं। धर्म का ज्ञाता, कृतज्ञ, सत्यवादी, वचन का पक्का, चरित्र में संपन्न, सभी प्राणियों के लिए हितकारी,वीर्यवान, विलक्षण रूप से सुखदायक व संयमी, क्रोध पर विजय पाने वाला, ईर्ष्या रहित, तेजस्वी, डर को हराने वाला, सबका सम्मान करने वाला ये सभी गुण हर्षि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए श्रीराम में थे। अगर आप इन गुणों से कुछ गुण भी अपने अंदर विकसित कर लेते हैं तो फिर आपका मान-सम्मान बढ़ जाएगा।

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समरसात का पाठ पढ़ाने वाले राम

श्री राम किसी को भी बड़ा-छोटा नहीं मानते थे। उनके लिए सब प्रिय थे। शबरी का जूठा बेर खाना हो या फिर केवट का सम्मान करना। वो जात-पात का भेदभाव नहीं करते थे। आज के दौर में अगर एक बेहतर इंसान बनना है तो अपने अंदर पैदा हुए भेदभाव की भावना को नष्ट करके ही राम को पा सकते हैं।

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रिश्ते निभाना सीखें राम से

भगवान राम सिखाते हैं कि स्थिति चाहे जो भी हो रिश्तों को निभाने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।कैकयी जब राम का वनवास मांगती है तो पहले दशरद राम को जाने नहीं देते हैं, लेकिन राम उन्हें समझाते हैं। इसके बाद फिर राजा दशरथ उन्हें आज्ञा देते हैं जिसे वो सहर्ष स्वीकार करके छोटे भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ वनवास जाते हैं। वो वचन पिता के वचन का मान रखते हुए अपने वनवास की अवधि पूरी करते हैं। पत्नी के लिए वो रावण से लड़ जाते हैं। राम रिश्ते निभाना और वचन को पूर्ण करने की सीख देते हैं।

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शत्रु का भी रखा मान

श्री राम अपने शत्रु का भी मान रखते थे। कहते है कि युद्ध में जब रावण मृत्यु शैय्या पर था, तब श्री राम ने लक्ष्मण को उनके पास भेजा। उन्होंने कहा कि रावण बहुत ज्ञानी है अनुज आप वहां जाकर उनसे ज्ञान लों। तब रावण ने लक्ष्मण को 3 सीख दी थीं कि शुभ कार्यों में विलंब नहीं करना चाहिए, अशुभ कार्यों को टालने के प्रयास करने चाहिए और अहंकार में इतने अंधे नहीं होना चाहिए कि शत्रु को आप कम आंकने लगे। राम से यह सीख लें कि अगर शत्रु ज्ञानी हो तो उससे ज्ञान लेने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

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राजधर्म का पालन करना

श्रीराम अपने पिता राजा दशरथ द्वारा सिखाए गए राजधर्म का पालन करते थे। उन्होंने उनसे कहा ता कि एक राजा का अपना कुछ नहीं होता है। सबकुछ राज्य का हो जाता है। बल्कि आवश्यकता पड़ने पर यदि राजा को अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए अपनी स्त्री, संतान, मित्र यहां तक की प्राण भी त्यागने पड़े तो उसमें संकोच नहीं करना चाहिए। इसलिए माता सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी। उन्हें वन जाना पड़ा था, क्योंकि वो प्रजा में से एक भी इंसान को असंतुष्ट नहीं देख सकते थे। इसलिए अगर आप किसी ऊंचे पद पर है तो अपने सभी कर्मचारी के साथ समानता के साथ पेश आएं।

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